किसानों को संकट में से कैसे निकाला जाए ?

पंजाब के किसानों तथा कृषि को गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। फसलों के उत्पादन में ठहराव आ गया है। ज़मीन की उपजाऊ शक्ति लगातार प्रभावित हो रही है। भू-जल का स्तर नीचे जा रहा है। पर्यावरण एवं प्रदूषण की समस्याएं हैं। जलवायु परिवर्तन का सामना करना पड़ रहा है। किसान ऋण के नीचे दबे जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त कृषि अनुसंधान में अपेक्षित निवेश नहीं बढ़ रहा। कृषि अनुसंधान धान के स्थान पर वैकल्पिक किस्में जो उतना ही लाभ दें, किसानों को उपलब्ध कराने में विफल रहा है, जिस कारण धान की काश्त के अधीन प्रत्येक वर्ष रकबा बढ़ रहा है। कृषि के साथ उद्योग एवं व्यापार भी संबंधित हैं, जिनका आधार भी ज़्यादातर कृषि है। पहले सब्ज़ इन्कलाब के दौरान कृषि का विकास तो हुआ परन्तु वह दीर्घकालिक नहीं था। बहुसंख्या का विकास तथा रोज़ी-रोटी का आधार आज भी कृषि है।
आर्थिक सुरक्षा एवं संतुलन हेतु तथा गरीबी एवं बेरोज़गारी कम करने के लिए प्राकृतिक स्रोतों का समझदारी से इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। पंजाब के कुल भौगोलिक रकबे का 82 प्रतिशत रकबा बिजाई के अधीन है। कृषि योग्य रकबे में कोई वृद्धि होना संभव नहीं। विगत कई वर्षों से कृषि योग्य रकबा वहीं खड़ा है। पंजाब में धान के अवशेष को आग लगाए जाने के कारण तथा खादों का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल किये जाने से ज़मीन की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है। फसलों के उत्पादन में ठहराव आना एक गम्भीर समस्या बन कर सामने आया है, जिसे दूर करने की आवश्यकता है। पानी की बचत को भी महत्व देने की ज़रूरत है।
उत्पादन बढ़ाने में बीजों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। किसानों में बीजों के प्रति पिछले वर्षों में अधिक चेतना होने के कारण गेहूं का उत्पादन 182 लाख टन को छू गया था और धान संबंधी भी केन्द्र के अनाज भंडार में इसका योगदान प्रभावशाली रहा और बासमती के निर्यात में अग्रणी प्रदेश रहा, परन्तु इस वर्ष प्रतीत होता है कि किसानों द्वारा नये बीजों का कम इस्तेमाल होगा। नये बीजों संबंधी किसानों की खरीद शक्ति प्रभावित हुई है। प्रदेश के बड़े बीज बिक्रेता बराड़ सीड्स तथा भट्ठल बीज फार्म लुधियाना पर पहले वर्षों के मुकाबले आधे बीज भी नहीं बिके। कुछ किसानों से मिलीं रिपोर्टों के अनुसार उन्होंने खरीद शक्ति न होने के कारण अपने पास भंडार की हुई गेहूं को ही बीज बना लिया। इससे भविष्य में उत्पादन और कम होने की सम्भावना है। नई एवं सफल किस्मों के बीजों के इस्तेमाल तथा बांटने हेतु योग्य प्रबंध एवं निपुण योजनाबंदी करने की ज़रूरत है। किसानों को चाहिए कि वे कृषि को दीर्घकालिक बनाने तथा इसे व्यापार के तौर पर अधिक से अधिक उत्पादन हासिल करके लाभदायक बनाएं। उनकी ओर से कृषि को मुनाफा कमाने एवं आय बढ़ाने के लिए अपनाया जाए, सिर्फ गुज़ारे के लिए नहीं। किसानों की बहुसंख्या के पास 10 एकड़ से भी कम ज़मीन है और एक-तिहाई किसानों के पास पांच एकड़ ज़मीन भी नहीं। छोटे आकार वाले खेतों से किसानों की कृषि आय काफी कम है। जिन छोटे किसानों ने ज़मीन ठेके पर ली हुई है, वे गरीबी की ओर बढ़ते जा रहे हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार 12.9 प्रतिशत भारत के लोग 2.15 डॉलर प्रति दिन से भी कम पर अपना गुज़ारा कर रहे हैं। ये अति गरीबी की हालत में अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। 
सबसे अधिक संकट से बचने के लिए पानी का उचित इस्तेमाल ज़रूरी है। लेज़र लैंड लैवलर कराहे के इस्तेमाल के बड़े स्तर पर शुरू किया जाना चाहिए, जिसे सफल बनाने के लिए छोटे किसानों को मदद दिये जाने की आवश्यकता होगी। इससे पानी की बचत होगी और उत्पादन बढ़ेगा। लेज़र लैंड लैवविंग के बाद खेत को पानी एक समान जाता है और खाद व यूरिया का संतुलित इस्तेमाल होता है। बीजों के उगने की शक्ति बढ़ती है, जिसके बाद प्रति हैक्टेयर उत्पादन में वृद्धि होती है। पानी की बचत के लिए फसलों का उत्पादन बैड्ड प्लांटिंग विधि अपना कर भी किया जा सकता है। छोटे किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हेें पॉली हाऊस में सब्ज़ियां लगाने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए। सब्ज़ियां पैदा करके वे अपना अच्छा गुज़ारा कर सकते हैं।  

#कैसे निकाला जाए ?