ईवीएम पर फूटा कांग्रेस का गुस्सा, हार के लिए बताया ज़िम्मेदार
हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में शर्मनाक हार के बाद आखिर कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों का गुस्सा एक बार फिर ईवीएम पर फूट पड़ा है। देश में फिर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का जिन्न बोतल से बाहर आ चुका है। इसे लेकर बयानबाजी शुरू हो चुकी हैं। कांग्रेस ने ईवीएम के जरिए आया जनता का फैसला स्वीकार नहीं किया है। पार्टी का कहना है, जनता ने तो उन्हें वोट दिया, लेकिन भाजपा ने ईवीएम का खेल कर दिया। हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों में हारने के बाद विपक्ष ने एक बार फिर ईवीएम पर दोष मढ़ा है और इसे भाजपा की चाल बताने का राग अलापना शुरू कर दिया है। हालांकि 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्तासीन होने के बाद कांग्रेस लगातार ईवीएम पर सवाल उठा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ईवीएम के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन का आह्वान किया है। खड़गे ने बैलट पेपर से चुनाव कराने के लिए राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की तरह अभियान चलाने की घोषणा की है। वहीं गत सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका खारिज करते हुए कहा था जब चुनाव हार जाते हैं, तो ईवीएम से छेड़छाड़ होती है। जब जीतते हैं, तो ईवीएम में सब ठीक रहता है। इससे पूर्व भी देश की सर्वोच्च अदालत ने कई दफा ईवीएम के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर चुकी है। कहते है विपक्ष को ईवीएम पर संदेह जताने का कोई न कोई बहाना चाहिए। कांग्रेस को अब ईवीएम में खराबी नज़र आती है, लेकिन पार्टी वह भूल जाती है कि वोटिंग की यह प्रक्रिया उसी के शासन काल में शुरू हुई थी। कांग्रेस के शासन काल में पहली बार ईवीएम से मतदान कराया गया था। आश्चर्य तो इस बात का है कि कांग्रेस ने देश को ईवीएम से इंट्रोडूस कराया और आज कांग्रेस ही इसे खारिज करने पर उतारू है। कांग्रेस सहित विपक्ष बार-बार यह तर्क देता है कि कई देशों में अब भी बैलट पेपर से चुनाव हो रहा है। इसके लिए जर्मनी, जापान, नीदरलैंड, आयरलैंड और इंग्लैंड जैसे कई देशों के नाम गिनाये जाते है। यह तर्क देते समय विपक्ष भूल जाता है कि 140 करोड़ जनसंख्या वाले भारत में अभी तकरीबन 97 करोड़ वोटर हैं। जिन देशों का हवाला दिया जाता है, उन देशों की आबादी भारत के मुकाबले कितनी है, यह सबको पता है। यदि भारत में बैलट पेपर से वोटिंग हुई तो मतपत्रों को गिनने में ही पसीने छूट जाएंगे।
गौरतलब है चुनाव आयोग की तरफ से वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ की आशंका से साफ इनकार किया जाता रहा है। कांग्रेस के नेता ऊलजलूल बयान भी देने लगे है। हालिया लोकसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कह रहे थे मोदी जीता तो यह अंतिम चुनाव होगा। मोदी के 400 पार के नारे को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियां ईवीएम को लेकर संदेह व्यक्त करने लगी थी। भाजपा को अपने बुते बहुमत नहीं मिलने से ईवीएम पर आरोप लगाने ठहर चुके थे। दिग्विजय सिंह सरीखे नेता तो खुलमखुला ईवीएम का विरोध करते है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पांच राज्यों के आए नतीजों के बाद एक बार फिर से विपक्ष ने अपनी हार ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा था। सपा मुखिया अखिलेश यादव समेत तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने ईवीएम पर सवाल उठाते हुए बैलेट से चुनाव कराने की मांग की है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार देश में ईवीएम के जरिए अलग-अलग राज्यों के 142 से ज्यादा विधानसभा चुनाव कराए जा चुके है। इनमें से करीब 34 चुनावों में अब तक कांग्रेस जीती है जबकि करीब 30 चुनाव भाजपा ने जीते है। भारत में पहली बार ईवीएम का प्रयोग 1982 में केरल से शुरू हुआ था। फिर 1999 में लोकसभा चुनाव के दौरान कुछ स्थानों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। यानी 2004 के पहले तक ईवीएम व बैलेट दोनों से चुनाव कराया जाने लगा, लेकिन 2004 लोकसभा चुनाव का ईवीएम से कराया था। अब पूरे देश में ईवीएम के जरिए लोकसभा व विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं। 2004 से 2024 तक 5 लोकसभा चुनाव ईवीएम से हुए हैं। इसमें 2 बार कांग्रेस और 3 बार भाजपा जीती है।
पुराने कागजी मतपत्र प्रणाली की तुलना में ईवीएम के द्वारा वोट डालने और परिणामों की घोषणा करने में कम समय लगता है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन दो इकाइयों से बनी होती हैं- एक कंट्रोल यूनिट और एक बैलेटिंग यूनिट- जो पांच-मीटर केबल से जुड़ी होती हैं। नियंत्रण इकाई पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी के पास रखी जाती है और बैलेट यूनिट को मतदान कम्पार्टमेंट के अंदर रखा जाता है। मतपत्र जारी करने के बजाय, कंट्रोल यूनिट के प्रभारी मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट पर मतपत्र बटन दबाकर एक मतपत्र जारी करेंगे। इससे मतदाता अपनी पसंद के अभ्यर्थी और प्रतीक के सामने बैलेट यूनिट पर नीले बटन को दबाकर अपना वोट डाल सकेगा।