अकाली दल के पुनर्जीवन के लिए 

सुखबीर सिंह बादल और अन्य अकाली नेताओं द्वारा 2007 से 2017 के समय में सत्तारूढ़ होते और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की कार्यकारिणी में होते हुए की गई अनेक तरह की धार्मिक और राजनीतिक गलतियों के बारे में श्री अकाल तख्त साहिब पर पहुंचे मामले संबंधी अकाल तख्त साहिब और अन्य तख्तों के जत्थेदार साहिबान द्वारा सुनाये जाने वाले फैसले की लम्बे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। शिरोमणि अकाली दल का पंजाब की राजनीति पर हमेशा बड़ा प्रभाव रहा है। इसका जन्म ही मुख्य रूप में ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिबान को महंतों से मुक्ति करवाने संबंधी 1920 के दौर में हुए आंदोलन में से हुआ था। सौ वर्ष से भी अधिक समय पहले अस्तित्व में आई इस पार्टी ने विदेशी शासन के समय भी धार्मिक क्षेत्र के साथ-साथ आज़ादी के संघर्ष में भी बड़ा योगदान डाला था। जहां शिरोमणि कमेटी का मुख्य काम ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिबान की सेवा-सम्भाल करना था, वहीं अकाली दल पंथ और पंजाब के हितों की रक्षा के लिए निरंतर राजनीति के क्षेत्र में भी विचरण करता आया है। प्रत्येक क्षेत्र में सक्रिय होकर इसने देश और कौम के लिए गौरवमयी प्राप्तियां की हैं। देश की आज़ादी के बाद भी यह पार्टी लगातार अपने भाईचारे, समूचे समाज और पंजाब के साथ-साथ देश की राजनीति में अपना बनता योगदान डालने के समर्थ रही है।
वर्ष 2007 से लेकर 2017 तक पंजाब में सरदार प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में अकाली-भाजपा सरकारें कायम रहीं। सुखबीर सिंह बादल ने भी इनमें महत्वपूर्ण रोल निभाया, लेकिन इस समय में अकाली दल की सरकार ने अनेक प्राप्तियां की पर साथ-साथ अकाली दल की कई पक्ष से आलोचना भी होती रही और इसकी सरकारें लोगों की आशाओं और इच्छाओं पर कई पक्षों से पूरी नहीं उतर सकीं। पंजाब को दरपेश अहम मामलों, जैसे बेरोज़गारी, बढ़ता अपराध, भ्रष्टाचार तथा लगातार बढ़ते नशे के रूझान को नियंत्रित करने में इसकी पकड़ बेहद ढीली दिखाई देने लगी। नि:संदेह इस समय पंजाब में विकास के बड़े कार्य भी हुए। बहुत से ऐतिहासिक निर्माण भी किए गए। बहुत से धार्मिक अस्थानों को और सुंदर रूप भी प्रदान किया गया, परन्तु सरकार की रह गईं प्रशासनिक कमियां इसकी उपलब्धियों से अधिक उभरने लगीं। इसके साथ ही धार्मिक क्षेत्र में जो बड़े विवाद शुरू  हुए, सरकार उनसे संतोषजनक ढंग से नहीं निपट सकी, जिस कारण ये विवाद और भी बड़े हो गए, जिन्होंने अकाली सरकारों के प्रभाव को बेहद धूमिल कर दिया। ऐसे घटनाक्रम के कारण अकाली दल को हो रहे नुकसान को इसके नेता सम्भाल सकने में असमर्थ रहे, जिस कारण लगातार इस पार्टी को प्रत्येक स्तर के हुए चुनावों में निराशा का मुंह देखना पड़ा। परन्तु दीवार पर जो लिखा जा चुका था, नेता उसे पढ़ न सके, जिस कारण पहले ही कमज़ोर हो रहे तथा डावांडोल होते अकाली दल का और भी नुकसान होता गया। 
पार्टी में सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता को लेकर उठी ब़गावत तथा दल की आंतरिक कलह के कारण ही अकाल तख्त साहिब के जत्थेदारों को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा, जिन्होंने आज अकाली नेतृत्व को एक प्रकार से आइना दिखाने का यत्न किया है। सिंह साहिबान ने अकाली दल की वर्किंग कमेटी को सुखबीर सिंह बादल का अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा स्वीकार करने तथा नये सिरे से भर्ती करके अकाली दल का नया अध्यक्ष चुनने का आदेश दिया है। इस  उद्देश्य के लिए सिंह साहिबान द्वारा एक कमेटी का भी गठन किया गया है। इसके अतिरिक्त सुखबीर सिंह बादल सहित अन्य अकाली नेताओं, शिरोमणि कमेटी के पूर्व कार्यकारिणी सदस्यों को धांिर्मक सज़ा भी लगाई गई है। पूर्व सिंह साहिबान के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। यदि पूरी विनम्रता से अकाली नेतृत्व सिंह साहिबान के आदेशों पर क्रियान्वयन करता है और भविष्य में एकजुट होकर चलता है तो वह एक बार फिर पार्टी के पुनर्जीवन में सफल हो सकेगा। इस समय पंथ तथा पंजाब के शुभचिंतकों द्वारा पंथक नेताओं से ऐसी ही आशा की जा रही है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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