दुखद एवं चिन्ताजनक घटना-क्रम

सुखबीर सिंह बादल पर श्री दरबार साहिब के बाहर उस समय हमला होना जब वह श्री अकाल तख्त की ओर से लगाई गई धार्मिक तन्खाह का पालन कर रहे थे, को प्रदेश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना कहा जा सकता है जिसकी हर तरफ से कड़ी आलोचना हुई है। सरकार की ओर से इस घटना की तह तक जाना एवं वास्तविकता सामने लाना बेहद ज़रूरी है। पिछले कुछ समय से वह बड़ी चर्चा में थे। शिरोमणि अकाली दल से अलग हुए गुट ने श्री अकाल तख्त साहिब तक अकाली-भाजपा सरकारों के समय हुईं कुछ बड़ी गलतियों संबंधी उनकी जवाबदेही करने के लिए पहुंच की थी। उन्होंने अकाली-भाजपा सरकार के 2007 से 2017 तक के कार्यकाल के दौरान हुई कुछ बड़ी गलतियों के लिए अपना दोष माना भी था। सुखबीर सिंह बादल को सिंह साहिबान की ओर से अधिक ज़िम्मेदार माना गया था, क्योंकि उस समय के दौरान वह सरकार में अहम् पद पर विराजमान रहे थे तथा अकाली दल के अध्यक्ष के रूप में भी उनका अकाली राजनीति में बड़ा प्रभाव माना जाता था। 
उस समय के बाद उनके पार्टी के भीतरी विरोधियों की ओर से इसलिए भी त्याग-पत्र मांगा जाने लगा था क्योंकि अकाली दल का प्रभाव लगातार कम हो रहा था तथा पार्टी का प्रतिनिधित्व विधानसभा में बेहद कम हो गया था तथा अन्य हुये कई चुनावों में पार्टी को बार-बार निराशा का मुंह देखना पड़ा था परन्तु इनके अपने पद पर बने रहने के लिए बज़िद होने के कारण कुछ नेताओं ने अपने ब़ागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे। नि:संदेह आज इस पार्टी में जहां बड़ा बिखराव देखा जा सकता है, वहीं यह अनिश्चितता की अवस्था में चौराहे पर खड़ी भी दिखाई दे रही है। श्री अकाल तख्त साहिब से लम्बे विचार-विमर्श के बाद उस समय से संबंधित बड़े अकाली नेताओं को सिंह साहिब ने जहां धार्मिक तन्खाह लगाने की घोषणा की है, वहीं अकाली दल के पुनर्जीवन के लिए भी सिंह साहिबान द्वारा एक कमेटी का गठन किया गया है, जो पुन: पार्टी की भर्ती करके इसे नया स्वरूप दे सकेगी। पंजाब की राजनीति में विगत लम्बी अवधि  से अकाली दल का विशेष प्रभाव बना रहा है। इसने दशकों से आपसी भाईचारे एवं पंजाब के हितों के लिए तरह-तरह के संघर्ष किए हैं। यही कारण था कि इस पार्टी के कमज़ोर होने से व्यापक स्तर पर चिन्ता पैदा हुई थी। ऐसी चिन्ता के कारण ही यह मामला श्री अकाल तख्त साहिब तक पहुंचा था। सिंह साहिबान के फैसले के बाद यह उम्मीद पैदा हुई है कि पुन: अपने यत्नों से यह पार्टी मज़बूत होकर प्रदेश एवं कौम के हितों की पहले की तरह रक्षा करने के समर्थ हो सकेगी।
देश की आज़ादी से पहले एवं बाद में भी, अब तक इसके समक्ष अनेक चुनौतियां आती रही हैं, जिनका अपनी सामर्थ्य अनुसार समय-समय पर यह पार्टी मुकाबला करती रही है। खाड़कूवाद के दौर के दौरान एवं उसके बाद भी प्रदेश का कई पक्षों से नुक्सान होता रहा है। उस स्थिति में से भी यह पार्टी पुन: उभर कर सामने आ गई थी, परन्तु जिस अवस्था में अब विचरण करती दिखाई दे रही है, उसमें से बाहर निकलने के लिए इस पार्टी के नेताओं को एकता एवं सौहार्द के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा, परन्तु ऐसे समय में पावन धार्मिक स्थान पर स. सुखबीर सिंह बादल पर हमला होने की घटना का घटित होना निश्चय की दुर्भाग्यपूर्ण भी है तथा चिन्ताजनक भी। इस घटना-क्रम के बाद अकाली दल के पुनर्जीवन की और भी बड़ी ज़रूरत महसूस होती है, जो प्रदेश के अधिकारों एवं हितों के लिए अपनी प्रभावशाली एवं सार्थक भूमिका अदा करने के समर्थ हो सके तथा पंथ और पंजाब का पुन: विश्वास भी हासिल कर सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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