क्या जीवन और मृत्यु को नियंत्रित करना संभव है ?
पिछले दिनों अमरीका के एक अरबपति ब्रायन जॉनसन के भारत आने की चर्चा थी। उसका आना कोई विशेष घटना नहीं थी बल्कि यह था कि यह अपने को अठारह वर्ष की आयु का ही रखना चाहता है। चाहे उसकी वास्तविक उम्र कितनी भी हो। अभी वह साठ सत्तर के आसपास होगा। अब क्योंकि वह बहुत अमीर है तो सभी तरह के साधन उसके पास हैं। वह चिरयुवा बने रहने के लिए लगभग बीस करोड़ रुपये हर साल खर्च करता है। खाना-पीना सब कुछ एकदम नियंत्रित, नापतोल और कब क्या लेना है, उसका पूरा चार्ट, पालन करने को कर्मचारियों की फौज। सुबह ग्यारह बजे दिन का अंतिम भोजन, उसके बाद सौ के आसपास गोलियां खाना। नियत समय पर नियंत्रित वातावरण में जिसमें रोशनी से लेकर बिस्तर तक का आकार और उसकी बनावट शामिल है, नपी तुली नींद, जो आती है या नहीं, वही जाने क्योंकि वह अकेला सोता है।
यह बात मन में आना स्वाभाविक है कि अगर पैसा है तो क्या प्रकृति के नियमों को बदलने की ताकत मिल जाती है? जीवन और मरण दो ऐसी अवस्थाएं हैं जो निश्चित मानी जाती हैं और उनके घटित होने का अनुमान लगाया जा सकता है या गणना हो सकती है, लेकिन वास्तविक समय की भविष्यवाणी कोई नहीं कर पाया। तो फिर ऐसे लोगों को सनकी के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है! हमारे देश में भी बहुत से ऐसे लोग होंगे जो पैसे और ताकत के बल पर जीवन चक्र मनमाने तरीके से तोड़ना-मरोड़ना चाहते होंगे। इसका सबसे अधिक विपरीत प्रभाव उन लोगों पर पड़ता है जो उनकी नकल करने लगते हैं और उस जैसा दिखने के लिए अपना धन और समय नष्ट करते हैं। इंसान हो या कोई भी चेतन पदार्थ, जैसे पेड़ पौधे और असंख्य जीव-जंतु सब की आयु निश्चित है और सच यही है वह कितनी है, कोई नहीं जानता।
होता यह है कि हर कोई अपने आराध्य की छवि मन में गढ़ लेता है, किसी भी मुसीबत के समय उसका स्मरण करता है। परेशानी से बाहर निकल गया तब उनकी कृपा और नहीं निकल पाया और फंस गया तब भाग्य का दोष। जो धैर्य से सोच-विचार कर अपनी भूल या गलती ढूँढने का प्रयास करता है वह निश्चित रूप से किसी भी संकट से झूझते हुए बाहर निकल ही आता है।
आज का युग वैज्ञानिक सोच का है। विज्ञान ने ऐसी चीज़ों को सिद्ध किया है और कल्पना करते ही सामने प्रस्तुत भी किया है जिनके सामने बुद्धि चकरघिन्नी बन जाए। लेकिन आजतक कोई भी किसी की आयु की गणना नहीं कर पाया है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस) के दौर में अनहोनी को होनी सिद्ध करने के प्रयत्न हुए हैं, कोशिश हो रही है कि मशीनी इंसान पैदा किया जा सके जो सामान्य व्यक्ति की तरह कामकाज और व्यवहार कर सके। हो सकता है भविष्य में यह भी हो जाए और चारों ओर यही नज़र आयें, परन्तु कोई तो वह व्यक्ति होगा जो यह सब करवा रहा है। अब वह अपने को सर्वशक्तिमान समझे तो आश्चर्य नहीं होगा, लेकिन क्या कोई मनुष्य सर्वशक्तिमान बन सकता है?
क्या किसी को यह आश्चर्य नहीं होता कि देश के नागरिकों का प्रदूषण के करण साँस लेना मुश्किल हो रहा है, विशाल आबादी को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकार या दानवीरों की दया पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, वहां उन्हें बहकाये रखने का षड्यंत्र चल रहा है? हमारा भूतकाल चाहे जितना भी गौरवशाली रहा हो परन्तु वर्तमान यदि सुखी नहीं है तो फिर काहे को इतना गुलगपाडा। घोषणा वीरों की कही बातों का जब तक अपने-अपने तर्क की कसौटी पर न कस लें तब तक किसी पर विश्वास न करना ही आज के दौर में अभीष्ट है।