कुछ नगर ही क्यों, भारत का तो कण-कण पवित्र है !
चुनावों से पहले भी और चुनाव निकट आने के साथ ज्यादा तुष्टिकरण की राजनीति अपनाते हुए या एक सम्प्रदाय विशेष को प्रसन्न करने के लिए बहुत-से नेता जगह-जगह मार्च, जलसे, प्रदर्शन करते सरकारों को मांग-पत्र देते हैं कि किसी विशेष नगर को पवित्र नगरी घोषित किया जाए। अभी इसी सप्ताह पंजाब में प्रशासन से राजनीति में आए नेता ने दल-बल सहित मार्च किया और मांग की कि हरिद्वार, द्वारकापुरी की तरह अमृतसर को भी पवित्र नगरी घोषित किया जाए। पवित्र नगरी की परिभाषा देते हुए वे कहते हैं कि अमुक नगरी से एक किलोमीटर के घेरे में चारों ओर मांस, शराब, बीड़ी आदि की दुकानें नहीं होनी चाहिएं। यह अच्छी बात है, परन्तु यह मांग करने वाले नेता क्यों भूल जाते हैं कि हमारे बच्चों के स्कूल, कालेज सभी शिक्षा केंद्र भी इन कुरीतियों से मुक्त होने चाहिएं। सरकार ने कागज़ों में एक कानून बनाया है। संभवत: उसमें स्कूल से 200 मीटर के घेरे में शराब का ठेका नहीं खोलने की बात कही गई है, परन्तु वास्तविकता यह है कि स्कूलों की किसी को परवाह ही नहीं। कहीं-कहीं तो स्कूलों से ठेके बस इतनी दूर हैं कि स्कूल की छत के ऊपर से ही शराब बिकते और पीते-पिलाते लोगों को देखा जा सकता है जबकि स्कूलों को भी तो हम शिक्षा के मंदिर कहते हैं।
एक दूसरा पक्ष भी है, और वह यह कि हमारे लिए तो भारत की धरती का कण-कण पवित्र है। क्या यह अच्छा न होगा कि सारे भारत से ही शराब के ठेकों और बूचड़खानों को बंद कर दिया जाए? ज़रा यह तो बताइए कि आखिर किस संत महापुरुष ने यह संदेश दिया है कि शराब, मांस का सेवन करना चाहिए?
देश के अनेक स्थानों पर बूचड़खानों में लाखों जीवों की हत्या होती है। यहां तक कि गाय की पूजा करने वाले देश से विश्व मार्केट में अरबों रुपये का गाय का मांस भी बेचा जाता है।
जो लोग धर्मिक स्थानों पर नतमस्तक होने के लिए आते हैं, क्या उन्हें यह शपथ दिलाई जाएगी कि पवित्र नगरी में पवित्र धर्मिक स्थान पर शराब मांस का सेवन करने वाले नहीं आएंगे? इसलिए उनको या तो अपने धर्म स्थान छोड़ने चाहिएं या नशों का सेवन छोड़ना होगा। ऐसी कोई आवाज़ इस देश में सुनाई नहीं देती। इसके साथ ही बहुत ही निराशाजनक स्थिति यह है कि अधिकतर नगरों को पवित्र घोषित करने की मांग करने वाले, उसके लिए आंदोलन करने वाले जब चुनाव लड़ते या लड़ाते हैं तो शायद ही पूरे देश में कोई एक प्रतिशत वीर योद्धा हों जो चुनाव में शराब की नदी बहाए बिना और नोटों की नावें चलाए बिना चुनाव जीत जाते हैं। चुनाव बिना रिश्वत, बिना शराब और बिना भ्रष्ट कार्यों के भी जीता जा सकता है, लेकिन पहल कौन करेगा?
पंजाब में नगर निगम चुनाव निकट आ रहे हैं। देश में बिहार विधानसभा के चुनाव तथा अन्य कुछ प्रदेशों के चुनाव होने वाले हैं। जहां चुनाव हो चुके, उनसे तो अगले चुनावों के लिए प्रश्न किया जा सकता है, परन्तु जहां अब चुनाव होने वाले हैं, वहां के चुनावी वीर कम से कम यही कह दें कि जिन नगरों या महानगरों को वे पवित्र घोषित करवाना चाहते हैं, उन नगरों में नशे की दलदल के बिना ही चुनाव लड़े जाएंगे।
कोई चाहे इस बात को स्वीकार करे या न करे, मेरा आंखों देखा अनुभव है कि 1990 के दशक में जब मैं गुजरात गई तो शराब-बंदी के बावजूद वहां के होटलों में नेताओं और पुलिस वालों की मदद से भी शराब मिलती थी। क्या ऐसा हो सकता है कि जिस तरह सरकारी व गैर-सरकारी अस्पतालों के बाहर लिखा जाता है कि यहां लिंग निर्धारण टैस्ट नहीं होता, या लिंग निर्धारण टैस्ट कानूनी अपराध है, ऐसे ही जिन नगरों या जिन प्रांतों को हमने शराब मुक्त किया है, वहां के हर होटल, रेस्तरां के बाहर, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन पर यह लिखवा दिया जाए कि यहां शराब का सेवन अपराध है। कुछ अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों में भी लोग शराब का आनंद लेते हैं। तब इन्हें यह याद नहीं आता कि वे किसी पवित्र नगरी के नागरिक हैं या वे वहां जा रहे हैं। सभी बड़े विमानपत्तनों पर शराब की बिक्री होती है। मैंने स्वयं आंखों देखा है कि सभी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों में विमान परिचारिकाएं शराब पिलाती हैं। भारत सरकार को पता है कि अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को शराब नहीं पिलाएंगे तो वे हमारे हवाई जहाज़ों में चढ़ेंगे नहीं। हम समझते हैं कि अगर और सभी सुविधाएं पूरी दी जाएं, भारत के हर प्रांत का बढ़िया भोजन दिया जाए तो दुनिया भारतीय भोजन का आनंद लेने के लिए हमारे विमानों की तरफ दौड़ेगी, परन्तु मैं कहना इतना चाहती हूं कि किसी भी नगर, शहर में शराब-मांस की बिक्री न किये जाने की मांग करने वाले पहले यह पवित्रता अपने भीतर लायें। आंदोलन करने वालों को यह संकल्प लेना होगा कि वे स्वयं जीवन भर शराब, मांस का सेवन नहीं करेंगे—फिर चाहे यह चुनाव लड़ने का अवसर हो, बेटे-बेटी की शादी हो या कोई अन्य जश्न हो। विष विष होता है। मौसम के बदलाव से या चुनाव के पहले या चुनाव के बाद उसका दुष्प्रभाव नहीं बदलता।
यह भी विचार कीजिए कि भ्रष्टाचार, रिश्वत, महिलाओं का अपमान क्या अपवित्रता नहीं है? जनता से झूठे वायदे करना और बिमारों को फुटपाथ पर छोड़ देना क्या भ्रष्टाचार नहीं है? देश इस भ्रष्टाचार से भी जब तक मुक्त नहीं होता, पवित्रता कैसे आ सकती है?