अनिश्चित है पाकिस्तान का भविष्य

पिछले महीने 22 नवम्बर से पाकिस्तान के एक सूबे ़खैबर पख़्तूऩख्वा में सुन्नी एवं शिया मुसलमानों के बीच आरम्भ हुए हिंसक टकराव में अब तक 130 से अधिक मौतें हो चुकी हैं तथा सैकड़ों ही बुरी तरह से घायल हुए तड़प रहे हैं। पाकिस्तान में लगातार घटित हो रहे ऐसे भयावह घटनाक्रम के दृष्टिगत यह ज़रूर महसूस होने लगा है कि धर्म के आधार पर बनाया गया यह देश बड़ी सीमा तक विफल हो चुका है। वर्ष 1947 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लम्बे संघर्ष के बाद भारत स्वतंत्र हुआ था, परन्तु उसी समय अंग्रेज़ों की शातिर चाल के कारण इसे दो भागों में विभाजित कर दिया गया था। ब्रिटिश शासकों द्वारा पहले ही अलग-अलग धार्मिक समुदायों के बीच सुनियोजित साजिश के तहत नफरत की आग को पूरी तरह भड़का दिया गया था, जिसमें लाखों ही लोग मारे गए थे। पाकिस्तान बनाने के समर्थकों के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने अंग्रेज़ों के साथ मिल कर एक योजना बनाई थी कि मुस्लिम बहुसंख्यक वाले क्षेत्रों के आधार पर एक नया देश बना दिया जाये। अंग्रेज़ भी ऐसा ही चाहते थे। उन्होंने जहां आपसी ऩफरत की आग को और हवा दी, वहीं तत्कालीन नेताओं में इस कद्र भय पैदा कर दिया कि यदि भारत को विभाजित करके नया देश न बनाया गया तो व्यापक स्तर पर हिंसा फैल जाएगी, जिसमें और भी बड़ी तबाही होगी।
पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के समय चाहे जिन्ना ने नये देश के संविधान में अल्प-संख्यकों को पूरे अधिकार देने एवं उनकी सुरक्षा के लिए लिखित वचनबद्धता प्रकट की थी परन्तु इस देश का अब तक का इतिहास यह गवाही देता है कि वहां अल्प-संख्यक कभी भी सुरक्षित नहीं रहे, अपितु बहुसंख्यक समुदाय के रहम-ओ-करम पर ही दिन गुज़ारते रहे हैं। पाकिस्तान के चार बड़े सूबे हैं, जिनमें पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान एवं ़खैबर पख़्तूऩख्वा आदि शामिल हैं। विभाजन के समय सिंध प्रांत में बड़ी संख्या में हिन्दू भाईचारे के लोग बसे हुये थे। वहां ईसाइयों और सिखों की संख्या नाम मात्र ही थी, परन्तु आंकड़े यह दर्शाते हैं कि अब हिन्दुओं सहित अन्य अल्प-संख्यकों की संख्या वहां पर भी लगातार कम होती जा रही है। उन्हें, खास तौर पर हिन्दुओं को हर ढंग-तरीके से धर्म छोड़ने के लिए विवश किया जा रहा है, जिसमें कट्टरवादी इस्लामिक विचारधारा के लोग बड़ी सीमा तक सफल भी हो रहे हैं, परन्तु इसके साथ-साथ पाकिस्तान का दुर्भाग्य यह भी रहा है कि इन चारों सूबों के लोगों में इस सीमा तक दूरियां हैं, जैसे वे एक नहीं अपितु चार देशों में रह रहे हों। एक दुर्भाग्य यह भी है कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान इससे टूट कर बांग्लादेश बन गया था। उस समय भी लाखों लोगों को अत्याचार का शिकार बनाया गया था। नया देश बनने पर भी यह ज़ाहिर हो गया था कि धर्म के आधार पर बनाये गये पाकिस्तान का संकल्प पूरी तरह से विफल हो चुका है। बात यहीं खत्म नहीं होती, पाकिस्तान के चारों ही प्रांतों में अविश्वास की भावना इस सीमा तक बढ़ चुकी है कि पाकिस्तान के लोग एक-दूसरे के प्रांत में जाने से कतराने लगे हैं। बलोचिस्तान में स्वतंत्र देश के लिए लड़ाई इस सीमा तक बढ़ चुकी है कि वहां विचरण कर रहे पंजाब सूबे के लोगों को चुन-चुन कर हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है।
धर्म के आधार पर बने इस देश में भिन्न-भिन्न बिरादरियां एक दूसरे के खून की प्यासी दिखाई देती हैं। एक ही धर्म से संबंधित सुन्नी एवं शिया समुदायों में बड़ी लड़ाई चल रही है, जिसके तहत लगातार सुन्नी आतंकवादी संगठनों द्वारा शिया लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। चुन-चुन कर उनकी मस्जिदों पर हमले किये जा रहे हैं। इस लड़ाई में अब तक हज़ारों ही लोग मारे जा चुके हैं। 22 नवम्बर से ़खैबर पख़्तूऩख्वा में शुरू हुई हिंसक झड़पें आपसी घृणा की इसी कड़ी का हिस्सा हैं। इन दोनों समुदायों के अतिरिक्त वहां अनेक ही अन्य ऐसे समुदाय हैं जिन्हें सुन्नी बहुसंख्यक के साथ संबंधित आतंकवादी संगठन लगातार अपना निशाना बना रहे हैं। राजनीतिक तौर पर भी यह देश पूरी तरह बिखरता दिखाई दे रहा है। भिन्न-भिन्न स्थानों से उठते विद्रोह को सैनिक शक्ति द्वारा नियन्त्रित करने का यत्न किया जा रहा है। पाकिस्तान की सरकारों द्वारा दशकों से पक्ष-पोषित किए गए अनेक तरह के आतंकवादी संगठन आज भी उसके अस्तित्व के लिए ़खतरा बने दिखाई देते हैं। वह स्थान-स्थान पर अपनी हिंसक गतिविधियां जारी रख कर पाकिस्तान को रक्त-रंजित करते आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में धर्म के आधार पर बनाया गया यह देश अपनी सैनिक शक्ति से कितना और कितने समय तक सुरक्षित रह सकेगा? वहां पर यह एक बड़ा प्रश्न बन चुका है। नि:संदेह इस देश का भविष्य बेहद अनिश्चित हुआ दिखाई दे रहा है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द
 

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