‘इंडिया’ गठबंधन में उठने लगी नेतृत्व परिवर्तन की मांग
भाजपा का मुकाबला करने के लिए बने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में दरार बढ़ती ही जा रही है। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी से सपा के अलग होने और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी के गठबंधन के कामकाज से असंतुष्ट होने से साफ है कि गठबंधन का भविष्य सवालों में है। विपक्षी गठबंधन में सबसे ज्यादा मतभेद कांग्रेस की स्थिति को लेकर है। गठबंधन अब भाजपा को छोड़कर आपस में ही उलझता नज़र आ रहा है। विपक्षी गठबंधन का गठन जून 2023 में लोकसभा चुनाव से पहले ‘भाजपा हटाओ, देश बचाओ’ के नारे के साथ किया गया था। हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली करारी हार के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन बिखर-सा गया है। बड़ी बात यह है ‘इंडिया’ गठबंधन के ही कई नेता कांग्रेस को चुनौती देने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस के लोकसभा चुनाव प्रदर्शन के बाद जो हैसियत बढ़ गई थी, एक बार फिर वह पतन की ओर दिखाई दे रही है।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने तो उसके नेतृत्व पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए है। तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल के सभी 6 विधानसभा उप-चुनावों में जीत हासिल की है, वहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार को लेकर ‘इंडिया’ गठबंधन के नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी उठा दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा है कि कांग्रेस को अपना अहंकार किनारे रखना चाहिए और ममता बनर्जी को ‘इंडिया’ गठबंधन का नेता घोषित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि गठबंधन को एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की ज़रूरत है।
टीएमसी सांसद ने दावा किया कि ममता बनर्जी के पास मज़बूत नेतृत्व है। साथ ही, उनके ज़मीनी स्तर से जुड़ाव ने उन्हें विपक्षी गठबंधन के लिए सबसे कारगर नेता बना दिया है। कल्याण बनर्जी ने कहा, ‘कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को हाल के चुनावों में मिली विफलता को स्वीकार करना होगा। अब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर एकता को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है। उन्हें ममता बनर्जी को इंडिया गुट के नेता के रूप में स्वीकार करना चाहिए।’ तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने मुख्यमंत्री ममता के भाजपा से लड़ने के ट्रैक रिकॉर्ड का ज़िक्र किया। उन्होंने ममता बनर्जी को सिद्ध नेता बताते हुए कहा कि वह पूरे देश में एक तेज़तर्रार नेता के रूप में पहचानी जाती हैं। उनका नेतृत्व और जनता से जुड़ने की क्षमता उन्हें आदर्श चेहरा बनाती है। इसलिए एकजुट और व्यावहारिक दृष्टिकोण के बिना विपक्ष के प्रयास लड़खड़ाते रहेंगे।
दरअसल ममता बनर्जी की छवि एक आंदोलनकारी के रूप में भी देखने को मिली है, जब पश्चिम बंगाल में वामपंथी की सरकार थी, जब कई सालों तक टीएमसी को संघर्ष करना पड़ा था, तब ममता बनर्जी का अलग ही सियासी रूप सामने आया था। पैरों में चप्पल पहनकर उन्होंने कई किलोमीटर का आंदोलन किया था। सिंगूर में उन्होंने जनता के लिए जिस तरह से वामपंथी सरकार से टक्कर ली थी, उसने उनकी सियासी पहचान हमेशा के लिए बदल दी थी। उस एक आंदोलन ने बता दिया था कि ममता बनर्जी ज़मीन से जुड़ी नेता हैं, उनकी भी कॉमन मैन वाली छवि है। उनका यह अंदाज राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी के सियासी कद को चुनौती दे सकता है।
जब भी राहुल गांधी से ममता बनर्जी की तुलना की जाती है, अनुभव के मामले में नेता प्रतिपक्ष हमेशा पीछे छूटते हैं। जिस नेता को लगातार तीन बार सरकार बनाने का मौका मिला, जिसने पिछले 15 सालों से किसी राज्य की कमान संभाल रखी हो, उसका अनुभव सियासी तौर पर अप्रत्याशित होता है, प्रशस्तिक ज़िम्मेदारी निभाने में भी वह काफी निपुण माना जाता है। ऐसे में यह सियासी अनुभव भी ममता बनर्जी को ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए मुफीद बना सकता है। पिछले दिनों एक समाचार चैनल से बात करते हुए ममता बनर्जी ने गठबंधन के नेतृत्व और समन्वय को लेकर निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘मैंने ‘इंडिया’ ब्लॉक का गठन किया था, अब इसका प्रबंधन करना उन लोगों पर निर्भर है जो इसका नेतृत्व कर रहे हैं। अगर वे इसे नहीं चला सकते, तो मैं क्या कर सकती हूं? मैं बस यही कहूंगी कि सभी को साथ लेकर चलने की ज़रूरत है।’
विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व करने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हालिया टिप्पणी को लेकर गठबंधन के सहयोगियों की ओर से समर्थन किया गया है। पहले समाजवादी पार्टी और अब शरद पवार। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान पर शरद पवार ने कहा कि हां, निश्चित रूप से वह गठबंधन का नेतृत्व करने में सक्षम हैं, वह इस देश की एक प्रमुख नेता हैं। उनमें वह क्षमता है।
ममता के बयान पर कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। बंगाल कांग्रेस के प्रवक्ता सौम्य राय आइच ने कहा कि कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां पूरे भारत में भाजपा के खिलाफ लड़ रही हैं जबकि ममता का भाजपा विरोध मौसमी राजनीति की तरह है। वह कभी ‘इंडिया’ गठबंधन में हैं तो कभी नहीं। उनकी पार्टी संसद में अडाणी के खिलाफ कुछ नहीं बोल रही। ममता भाजपा के खिलाफ चुप रहेंगी और गठबंधन का नेतृत्व भी करना चाहेंगी, ये दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकतीं। वहीं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने कहा कि 80 से ज्यादा बार रिलांच होने के बावजूद राहुल व प्रियंका गांधी वाड्रा को अगर उनके गठबंधन के नेता ही गंभीरता से नहीं लेते तो देश की जनता कैसे लेगी?
संभल के मुद्दे पर भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में अनबन जारी है। उत्तर प्रदेश में दोनों पार्टियों का गठबंधन है, लेकिन संभल को लेकर दोनों में किसी तरह का कोई तालमेल नहीं है।
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