फिर परीक्षा की घड़ी
एक बार फिर राजनीतिक पार्टियां मैदान में हैं। इससे पहले प्रदेश में चार स्थानों पर हुये विधानसभा के उप-चुनावों में भी भारी उत्साह देखने को मिला था। चाहे अकाली दल ने अपनी भीतरी फूट के चलते इन उप-चुनावों का बहिष्कार किया था परन्तु प्रशासन चला रही आम आदमी पार्टी के अतिरिक्त कांग्रेस एवं भाजपा ने इन चुनावों के लिए भारी सक्रियता एवं उत्साह दिखाया था। प्रदेश के नहीं अपितु इनसे संबंधित वरिष्ठ राष्ट्रीय धुरंधर नेता भी प्रचार के लिए पहुंचे थे। इन चुनावों में आम आदमी पार्टी को तीन एवं कांग्रेस को एक सीट प्राप्त हुई थी। इन परिणामों से जहां आम आदमी पार्टी का उत्साह बढ़ा था, वहीं प्रदेश कांग्रेस और इसकी हाईकमान के भीतर चिन्ता पैदा हो गई थी। उनकी ओर से प्रत्येक स्तर पर इस हार का पूरी तरह मंथन किया गया था। भाजपा ने चाहे पुराने राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले एवं अब पार्टी में शामिल हुए वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतारा था परन्तु उसके पल्ले निराशा ही पड़ी थी। अब नगर निगमों एवं नगर कौंसिलों के चुनावों की घोषणा ने राजनीति को एक बार फिर गर्मा दिया है। चाहे पांच नगर निगमों एवं 44 नगर कौंसिलों/नगर पंचायतों के चुनाव ही होने जा रहे हैं तथा इनके लिए मतदाताओं की संख्या भी 37 लाख से कुछ अधिक है, फिर भी कई पक्षों से राजनीतिक पार्टियों के लिए इन चुनावों का विशेष महत्त्व है। शहरी नागरिकों की ओर से भी इनमें विशेष रूप से बड़ी दिलचस्पी दिखाई जाएगी।
स्थानीय निकाय कहे जाते इन संस्थाओं की अवधि दो वर्ष पूर्व ही पूरी हो चुकी थी, जिस कारण लगातार चुनाव करवाने की मांग उठती रही थी तथा मामला अदालत तक भी पहुंचा था। इन चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी की भी एक बार फिर बड़ी परीक्षा होने जा रही है। कई शहरी क्षेत्रों में कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा का भी प्रभाव बना रहा है। चाहे बसपा के नये बने अध्यक्ष अवतार सिंह करीमपुरी ने भी इन चुनावों में भाग लेने की घोषणा कर दी है तथा अकाली दल के नेता डा. दलजीत सिंह चीमा ने भी यह बयान दिया है कि वे इन चुनावों को लड़ेंगे परन्तु पार्टी के भीतर आज बड़ी उलझनें दरपेश हैं, जिस कारण इसमें मौजूदा समय में अनिश्चितता ही बनी दिखाई देती है। जहां तक बड़े शहरों एवं कस्बों का संबंध है, इनमें मूलभूत ढांचे एवं शहरी सुविधाओं की बड़ी कमी दिखाई देती है। बहुत-से शहरों एवं कस्बों की हालत दयनीय बनी हुई है, जिनमें बड़े सुधार करने की ज़रूरत है, जो प्रशासन के लिए चुनौती बने दिखाई देते हैं। चाहे प्रदेश सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार भी इस क्षेत्र में बड़ी सहायता प्रदान करती है परन्तु शहरों और कस्बों की सुन्दरता के लिए इनकी साफ सफाई, सुरक्षा के कड़े प्रबन्ध तथा आम सुविधाएं प्रदान किये जाने के लिए स्थानीय चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा कड़ी मेहनत एवं जन-समस्याओं में पूरी दिलचस्पी दिखाने जाने से ही शहरों की हालत में सुधार आ सकता है।
चाहे प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सरकार होने के कारण इन चुनावों में इसे कुछ लाभ ज़रूर मिल सकता है परन्तु कांग्रेस एवं भाजपा की ओर से भी इन चुनावों को पूरी शिद्दत के साथ लड़े जाने की सम्भावना है। इन पार्टियों के लिए भी ये चुनाव परीक्षा की भांति होंगे। इनके परिणामों का प्रभाव वर्ष 2027 में होने वाले चुनावों पर भी पड़ेगा तथा आम आदमी पार्टी को इनसे प्राप्त हुई उपलब्धियों का अगले कुछ मास में दिल्ली में होने जा रहे चुनावों पर भी प्रभाव देखा जा सकेगा। ये चुनाव प्रत्येक पार्टी के लिए लोगों की नब्ज़ टटोलने का भी ज़रिया बनेंगे। प्रशासन को इस बात के प्रति सचेत होने की ज़रूरत होगी कि ये चुनाव निष्पक्ष एवं पारदर्शी ढंग से करवाये जाएं तथा इनमें किसी तरह की गड़बड़ की गुंजाइश न रहे। ऐसा प्रभाव भी प्रदेश सरकार की बेहतर कारगुज़ारी का उदाहरण बन सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द