संसद में उम्मीद से ज्यादा प्रभावी दिखीं प्रियंका गांधी

लोकसभा में अपना पहला भाषण देने के तौर पर ही जब प्रियंका गांधी साफ जुबान और खनकदार उच्चारण वाले राजनाथ सिंह के भाषण का जवाब देने के लिए खड़ी हुईं तो काफी दिनों से उनकी राजनीतिक गतिविधियों को फालो करने वाले पत्रकारों को भी थोड़ी हैरानी हुई कि संविधान के 75 साल पूरे होने पर संसद में हो रही दो दिवसीय विशेष चर्चा में अपने भाषण के तहत प्रियंका गांधी कहीं नौसिखियापन तो नहीं दिखाएंगी? क्योंकि आम जनता के बीच आकर्षक चुनावी भाषण देना अलग बात है और देशभर के सांसदों के बीच संविधान जैसे गंभीर मुद्दे पर लाइव कैमरे के सामने व्यवस्थित तकरीर करना दूसरी बात। लेकिन कहना न होगा कि राजनाथ सिंह के 1 घंटे 10 मिनट के भाषण को जिस तरह से महज 31 मिनट के अपने प्रतिउत्तर भाषण में प्रियंका गांधी ने काउंटर किया, वह आश्चर्यजनक रहा। राजनाथ सिंह से आधे से भी कम समय में उन्होंने उनके भाषण में उठाये गये हर सवाल का सीधा और सटीक जवाब दिया।  प्रियंका ने अपने भाषण को कहानी का अंदाज़ देते हुए कहा कि एक ज़माने में राजा वेष बदलकर बाज़ार में अपनी आलोचना सुनने जाते थे, लेकिन आज के राजा वेष तो बदलते हैं, लेकिन जनता के बीच अपनी आलोचना सुनने नहीं जाते। जब राजनाथ सिंह ने पंडित नेहरू से शुरु करके इंदिरा, राजीव और मनमोहन सिंह तक पर संवैधानिक संशोधन के जरिये इसके दुरुपयोग का आरोप लगाया तो प्रियंका गांधी ने कहा, ‘आप लोग पंडित नेहरू का नाम उनके अच्छे कामों के लिए नहीं लेते। पंडित नेहरू की आज़ादी और देश के निर्माण में जो भूमिका रही है, उसे कोई नहीं मिटा सकता और न ही धुंधला सकता है।’ प्रियंका ने मौजूदा सरकार पर आरोप लगाया कि वह अतीत का ढोल पीटती रहती है, वर्तमान की बात नहीं करती। उन्होंने कहा कि आप आज की तारीख में क्या कर रहे हैं, देशवासियों को यह बताइये।
जब राजनाथ सिंह ने निजी स्वार्थों के लिए इंदिरा गांधी पर आपातकाल लगाने की बात कही, तो प्रियंका गांधी ने आपातकाल का बचाव करने की बजाय कहा कि आप भी 1975 की बातों से सीख लीजिए। शायद उनके कहने का मतलब यह था कि जो गलतियां पिछली सरकारों ने की है, उसे मत दोहराइये और यह बात उन्होंने किस संदर्भ में कही, इसका हैरान करने वाला संदर्भ इस बात से सामने आता है कि प्रियंका ने साफ तौर पर कहा, ‘बैलेट पर चुनाव कर लीजिए दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।’ मतलब साफ है कि प्रियंका गांधी ने सरकार पर चुनाव में धांधली का आरोप लगाया, इस तरह जिस ईवीएम का मुद्दा लग रहा था कि चुनाव आयोग के वीवीपैट प्रदर्शन के बाद खत्म हो गया है, उसे वह फिर से राजनीतिक सरगर्मी के बीच खींच लाईं। इस तरह देखें तो अपने पहले भाषण में ही प्रियंका गांधी ने जिस आत्मविश्वास और हर सवाल का जवाब देने के अंदाज में संक्षिप्त मगर ज़ोरदार भाषण दिया, वह सचमुच में ध्यान खींचने वाला रहा। 
कुल मिलाकर देखें तो प्रियंका गांधी से जिस तरह की उम्मीद राजनीतिक विश्लेषक सदन में उनके पहुंचने के पहले से ही लगा रहे थे, वह उनके सदन में दिये गये पहले भाषण से सही साबित हुई है। हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि प्रियंका राजनीति में नई हैं या नौसिखिया हैं, क्योंकि भले वह अब के पहले संसद न पहुंची हों, लेकिन वह अनौपचारिक रूप से पिछले 20 सालों से और औपचारिक रूप से पिछले 5 सालों से सियासत में मौजूद हैं। पिछले दिनों राहुल गांधी द्वारा छोड़ी गई केरल की वायनाड लोकसभा सीट से उप-चुनाव जीतकर संसद पहुंची प्रियंका गांधी 2009 से ही राजनीतिक परिदृश्य में मौजूद हैं, लेकिन पहले वह अपने परिवार के सदस्यों मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए चुनाव प्रचार करने और इनके चुनावों का प्रबंधन देखने तक ही सीमित रहती थीं। 
अब वह बकायदा केंद्र की राजनीति में रहकर कांग्रेस की सियासत में सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद बन कर आयी हैं। हालांकि, फिलहाल प्रियंका गांधी मल्लिकार्जुन खड़गे की टीम में महासचिव की भूमिका में हैं, लेकिन उनके पास किसी राज्य विशेष का प्रभार नहीं है। इसलिए उनसे किसी सीमित भूमिका की जगह ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका की उम्मीद की जा रही है। वास्तव में राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि प्रियंका गांधी संसद में पहुंचने के बाद कांग्रेस में कुछ बदलाव अवश्य करेंगी। पहला बदलाव वह संसद में फ्लोर मैनेजमेंट की भूमिका संभालने के रूप में करेंगी, क्योंकि हाल के सालों में देखा जाए तो कांग्रेस का संसद के भीतर यह सबसे कमजोर पक्ष रहा है। हैरानी की बात यह है कि 2019 में जब सदन में सरकार जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का बिल पेश कर रही थी, उस समय राज्यसभा में  कांग्रेस के सचेतक ने दल-बदल कर लिया था। यह हार से ज्यादा अपमान करने वाली राजनीतिक स्थिति थी। 
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रियंका के संसद में पहुंचने से कांग्रेस का फ्लोर मैनेजमेंट मजबूत होगा।  कांग्रेस को प्रियंका गांधी के संसद में पहुंचने का एक बड़ा फायदा यह भी हुआ है कि उसे साफ और बेधड़क हिंदी बोलने वाला वक्ता मिल गया है। प्रियंका का तीसरा बड़ा फायदा न सिर्फ कांग्रेस बल्कि विपक्षी इंडिया गठबंधन को इस बात के लिए मिल सकता है कि वह राहुल गांधी से कहीं ज्यादा स्वीकार्य नेता के रूप में उभरी हैं। बहरहाल अपने पहले ही भाषण से संसद में प्रियंका गांधी ने जो प्रभाव छोड़ा है, उससे लग रहा है कि वह कांग्रेस के लिए ही नहीं बल्कि विपक्ष की राजनीति के लिए भी आने वाले दिनों में प्रभावशाली धुरी साबित होंगी। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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