भारत ने लिया 25 साल पुराना बदला, तीसरी बार जीती चैम्पियन्स ट्राफी
25 साल पहले 15 अक्तूबर 2000 की बात है कि केन्या की राजधानी नैरोबी में न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध चैम्पियन्स ट्राफी का फाइनल खेलते हुए भारत की तरफ से दो व्यक्तिगत 50 से अधिक रनों के स्कोर किये गये थे कि सौरव गांगुली ने 117 और सचिन तेंदुलकर ने 69 का स्कोर किया था, इसके बावजूद भारत ट्राफी न उठा सका था। इसी तरह 18 जून, 2017 को ओवल में पाकिस्तान के विरुद्ध चैम्पियन्स ट्राफी में हार्दिक पंड्या का अर्द्धशतक (76 रन) बेकार गया था। लेकिन 9 मार्च 2025 को दुबई में नक्शा एकदम बदल गया। भारत के कप्तान रोहित शर्मा ने आईसीसी एकदिवसीय प्रतियोगिता के फाइनल में अपना पहला अर्द्धशतक (76 रन) रिकॉर्ड किया, वह भी न्यूज़ीलैंड के खिलाफ और 25 वर्ष पुराना बदला लेते हुए भारत ने चैम्पियन्स ट्राफी अपने नाम कर ली। चैम्पियन्स ट्राफी के 9 संस्करणों में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी टीम ने बिना कोई मैच हारे हुए यह ट्राफी जीती है। भारत चैम्पियन्स ट्राफी के फाइनल में 5 बार पहुंचा है और इस बार वह लगातार तीसरी बार फाइनल में पहुंचा था। चैम्पियन्स ट्राफी में भारत का यह तीसरा खिताब है कि वह 2002 व 2013 में भी विजेता था। भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश ने इस ट्राफी पर तीन बार कब्ज़ा नहीं किया है। 2002 में भारत ने यह ट्राफी श्रीलंका के साथ शेयर की थी, क्योंकि बारिश की वजह से फाइनल रद्द हो गया था और 2013 के लो स्कोरिंग फाइनल में भारत (129/7) ने इंग्लैंड (124/8) को 5 रन से पराजित किया था।
साल 2013 में भारत के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी थे और तब उन्हें यह श्रेय प्राप्त हुआ था कि वह वाइट बॉल क्रिकेट के आईसीसी के तीनों छोटे फॉर्मेट- टी-20 (2007), एकदिवसीय विश्व कप (2011) व चैम्पियन्स ट्राफी (2013) जीतने वाले एकमात्र भारतीय कप्तान बने। रोहित शर्मा भी यह श्रेय प्राप्त कर लेते, लेकिन 2023 के विश्व कप फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा, जबकि पूरी प्रतियोगिता में बिना कोई मैच गंवाये भारत फाइनल में पहुंचा था। अब रोहित शर्मा के नाम दो आईसीसी खिताब हैं- टी-20 (2024) और चैम्पियन्स ट्राफी (2025)। गौरतलब है कि 2013 के बाद भारत आईसीसी प्रतियोगिताएं जीत नहीं पा रहा था, अच्छे प्रदर्शन व फाइनल्स में पहुंचने के बावजूद कि इस बीच वह दो बार विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में भी पहुंचा, लेकिन अब उसने आईसीसी की सीमित ओवरों की दो लगातार प्रतियोगिताएं जीत ली हैं- ब्रिजटाउन में 29 जून, 2025 को टी-20 विश्व कप और दुबई में 9 मार्च, 2025 को चैम्पियन्स ट्राफी, जोकि 2017 के बाद समाप्त कर दी गई थी, लेकिन एकदिवसीय में पुन: दिलचस्पी जागृत करने के लिए फिर से शुरू की गई है।
दुबई की स्पिन लेती पिच पर बैटर्स के लिए स्कोर करना आसान न था। इसलिए रोहित की प्रति रन एक गेंद की पारी विशेष प्रशंसा की अधिकारी हो जाती है। इस कठिन पिच पर न्यूज़ीलैंड ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए डेरिल मिचेल (63 रन) व माइकल ब्रेसवेल (53 रन) की अर्द्धशतकीये पारियों की बदौलत अपने निर्धारित 50 ओवर में 7 विकेट खोकर 251 रन बनाये। भारत की स्पिन चौकड़ी वरुण चक्रवर्ती (45/2), कुलदीप यादव (40/2), रविन्द्र जडेजा (30/1) व अक्षर पटेल (29/0) - न्यूज़ीलैंड के बैटर्स के लिए रन बनाना मुश्किल कर दिया था। हालांकि आजकल एकदिवसीय मैचों में जो लम्बे-लम्बे स्कोर किये जा रहे हैं कि 350 प्लस के स्कोर को भी आसानी से चेज़ कर लिया जाता है, उससे 252 का लक्ष्य कुछ खास नज़र नहीं आ रहा था, विशेषकर इसलिए भी कि रोहित शर्मा व शुभम गिल की सलामी जोड़ी ने पहले विकेट के लिए तेज़ रफ्तार से 18 ओवर में ही 105 रन की साझेदारी कर ली थी (जोकि चैम्पियन्स ट्राफी के फाइनल में गांगुली व तेंदुलकर की 141 रन की साझेदारी के बाद सबसे बड़ी है, जो उन्होंने नैरोबी 2000 में की थी), लेकिन पिच की कठिनाई का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शेष 147 रन बनाने के लिए भारत को 31 ओवर खेलने व 5 अतिरिक्त विकेट गंवाने पड़े और भारत 6 गेंद शेष रहते हुए 4 विकेट से ही यह मैच जीत सका।
यह दिलचस्प है कि बिना कोई मैच गंवाये चैम्पियन्स ट्राफी पर कब्ज़ा तो भारत ने किया, लेकिन प्लेयर ऑ़फ द सीरीज़ की ट्राफी न्यूज़ीलैंड के हरफनमौला खिलाड़ी रचिन रविन्द्र (जोकि बेंग्लुरु में जन्मे भारतीय मूल के हैं) ले गये। रचिन के करियर का यह पहला प्लेयर ऑ़फ द सीरीज़ अवार्ड है। उन्होंने इस प्रतियोगिता में दो शतकों के साथ 65.75 की औसत से सर्वाधिक 263 रन बनाये, 3 विकेट लिए और 5 कैच भी लपके। एक अन्य दिलचस्प आंकड़ा यह है कि अहमदाबाद विश्व कप फाइनल (19 नवम्बर, 2023) और दुबई चैम्पियन्स ट्राफी फाइनल (9 मार्च 2025) के बीच रोहित शर्मा ने लगातार 12 टॉस हारे हैं। अगर वह टॉस हारकर भारत को ट्राफी जिताते रहें तो यह किसी भी सूरत में घाटे का सौदा नहीं है। बहरहाल, न्यूज़ीलैंड से अपने ही बैकयार्ड में टेस्ट सीरीज़ अप्रत्याशित रूप से 0-3 से हारने और फिर ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट श्रृंखला 1-3 से हारने के बाद (जबकि उससे पहले लगातार दो टेस्ट श्रृंखलाएं भारत ने ऑस्ट्रेलिया में ही जीती थीं) भारत के लिए यह ज़रूरी था कि वह धमाकेदार वापसी करता, जो उसने की और वह भी युवा टैलेंट के साथ क्योंकि टीम में सिर्फ छह ही स्थापित व अनुभवी खिलाड़ी (रोहित, विराट कोहली, केएल राहुल, अजय जडेजा, हार्दिक व मुहम्मद शमी) थे। अगर एक मैच में रोहित नहीं चले तो कोहली का बल्ला बोला और दूसरे मैच में अगर गिल जल्दी आउट हो गये तो राहुल ने कमाल किया। इसी तरह गेंदबाज़ी में कभी शमी ने पांच विकेट लिए तो कभी वरुण ने। वैसे थोड़ा-थोड़ा योगदान तो हर मैच में हर खिलाड़ी का रहा और वो कहते हैं न कि बूंद-बूंद से सागर भर जाता है तो उसी तरह छोटे-छोटे योगदान से भारत बन गया चैम्पियन। बहरहाल, एक समय था जब वेस्टइंडीज की तेज़ रफ्तार चौकड़ी (एंडी रोबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, माल्कम मार्शल व जोएल गार्नर) बैटर्स के लिए सिरदर्द बन जाया करते थे, इसी तरह चैम्पियन्स ट्राफी में भारत की स्पिन चौकड़ी (वरुण, कुलदीप, जडेजा व पटेल) ने बैटर्स की नाक में दम किया। बिशन सिंह बेदी, भगवत चंद्रशेखर, इराप्ल्ली प्रसन्ना व वेंकटराघवन के बाद पहली बार चार स्पिन गेंदबाज़ों ने एक साथ खेलते हुए ऐसा धमाल मचाया है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर