किसानों के प्रति दरियादिली दिखानी होगी

हरियाणा-पंजाब की शंभू सीमा पर प्रर्दशन कर रहे एक किसान रेशम सिंह ने आत्म हत्या कर ली। 4 दिसम्बर 2023 को नेशनल क्त्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो द्वारा जारी किये गए आँकड़ों के अनुसार साल 2022 में 11290 किसानों ने आत्महत्या की। किसानों की आत्महत्या के ये आंकड़े काफी हैरानी भरे हैं। लगभग यही हाल 24 में भी रहा। यह किसानों की आत्महत्या का एक बड़ा कारण है। इसी असंतोष के चलते 2020 में किसानों ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के साथ किसानों की मांगों पर सहमति बनाने के लिए एक कमेटी बनाने की बात कही।कई दौर की मीटिंग के बाद भी आज तक उस कमेटी की रिपोर्ट का अता-पता नहीं है। अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय कमेटी के कुछ निष्कर्ष अवश्य प्रकाश में आए हैं, जिसके अनुसार किसानों की लागत और कृषि हेतु लिए गए कर्ज का बोझ बढ़ रहा है।समिति ने उन्हें इस संकट से मुक्ति दिलाने के लिए एमएसपी को कानूनी मान्यता सहित 11 मुद्दे चिह्नित किए हैं। हाल में कृषि उत्पादकता में गिरावट, बढ़ती कृषि लागत, अपर्याप्त मार्केटिंग सिस्टम और सिकुड़ते कृषि रोज़गार से कृषि आय में गिरावट आई है।घटता जलस्तर, बार-बार सूखा पड़ना, कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा का पैटर्न, भीषण गर्मी आदि जलवायु आपदाएं भी कृषि एवं खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर रही हैं। किसान अपनी आजीविका को बनाए रखने से संबंधित चुनौतियों से जूझ रहे हैं।इसी आर्थिक असुरक्षा के चलते पंजाब के किसान संगठनों ने स्वामीनाथन फार्मूले के अनुसार सभी फसलों पर एमएसपी के कानूनी अधिकार की मांग की है। उनका कहना है कि उन्हें बाजार की ताकतों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। देश के किसी ना किसी राज्य या फिर केन्द्र सरकार के खिलाफ दिल्ली तक होने वाले किसान आन्दोलन इस बात का प्रमाण है कि सरकार एवं सरकारे किसानों के प्रति न्याय नहीं कर पा रही है। ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकार को मिलकर किसानों के प्रति दरियादिली दिखानी चाहिए।
कृषि प्रधान देश भारत में आज़ादी के 77 साल बाद भी किसानों की समस्याएं दूर नहीं की जा सकी हैं। किसान अपने आप को आर्थिक रूप से सबसे कमज़ोर मान रहा है। समाज के हर वर्ग की आय साल-दर-साल बढ़ रही है लेकिन किसान कर्ज के जंजाल से बाहर नहीं निकल पा रहा है। किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य अभी कई चुनौतियों के बीच संघर्ष कर रहा है। भारत के अधिकांश किसान अब अपने बच्चों को खेती की ज़िम्मेदारी नहीं सौंपना चाहते हैं। भारतीय कृषि व्यवस्था में अपनी पूरी जिंदगी खपाने वाले किसान आज खेती को घाटे का सौदा बताते हैं। आखिर क्या कारण है कि तमाम प्रयासों के बावजूद कृषि क्षेत्र की समस्याओं का समाधान सरकार नहीं कर पाई है। इस पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।बड़ी विडंबना का विषय है कि किसानों का आंदोलन लंबे समय से जारी है। लेकिन सरकार कोई भी ऐसा ठोस कदम उठाने के प्रति उदासीन दिख रही है। क्या यह साफतौर पर सरकार के भीतर राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव को प्रदर्शित नहीं करता कि वह किसानों की मांग को लेकर इस हद तक अगंभीर दिख रही है कि आंदोलन के एक नेता की सेहत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है, उनके जीवन पर खतरा बढ़ता जा रहा है और वह हल के लिए सहमति बनाने के बजाय समस्या की अनदेखी करने में लगी है।
सवाल है कि आखिर किन वजहों से वह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर कानूनी गारंटी पर स्थिति स्पष्ट नहीं करना चाहती है और उसका यह रुख किसके हित में है। गौरतलब है कि एक ओर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल पिछले लम्बे अरसे से अनशन पर हैं और उनकी हालत लगातार नाजुक बनी हुई है, दूसरी ओर, इसी मसले पर सरकार द्वारा मांगे नहीं मानने की वजह से बीते तीन हफ्ते के भीतर दो किसानों ने आत्महत्या कर ली।किसानों की आय चार गुना बढ़ाने का दावा करने के बीच यह समझना मुश्किल है कि एक लोकतांत्रिक सरकार इस हद तक उदासीन कैसे हो सकती है कि अपनी समस्याओं की अनदेखी किए जाने की वजह से किसानों के जान देने की खबरें आ रही है। डल्लेवाल के अनशन और उनकी सेहत को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है।
मगर इसके बावजूद सरकार कोई ऐसी राह तलाशने को लेकर उत्सुक नहीं दिख रही है, जिससे किसान आंदोलन की मांगों पर सभी पक्षों के बीच कोई सहमति कायम हो सके और डल्लेवाल अपना अनशन फिलहाल खत्म करें। अगर सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किए जाने के मसले पर ईमानदार है तो वह इस संबंध में कानूनी गारंटी का प्रावधान करने से क्यों हिचक रही है ? जबकि खुद एक संसदीय समिति भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी देने की वकालत कर चुकी है।पिछली बार किसानों के कई महीने चले आंदोलन के बाद सरकार को विवश होकर विवादित तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी थी। तब यह उम्मीद की गई थी कि सरकार किसानों के साथ मिल-बैठ कर इस समस्या पर सहमति के बिंदुओं की तलाश करेगी और कोई ठोस हल उभर कर सामने आएगा। 

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