जलवायु परिवर्तन का परिणाम है अमरीकी जंगलों में लगी आग
अमरीका के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया के लॉस एंजिल्स में लगी आग ने विश्व को हिला कर रख दिया है। लगभग दो सप्ताह पहले रात को लगी इस आग में कम से कम दस लोगों की मौत हो गई है और हज़ारों घर जल कर खाक हो गए हैं। लॉस एंजिल्स के अलग-अलग इलाकों में 1,30,000 से ज्यादा लोगों को घर खाली करने का आदेश दिया गया है। कैलिफोर्निया की अग्नि सुरक्षा विभाग के मुताबिक सबसे पहले 7 जनवरी को सुबह करीब साढ़े दस बजे आग लगने की खबर मिली थी। लॉस एंजिल्स के पैसिफिक पैलिसेड्स में लगी यह आग तब तक विकराल रूप ले चुकी थी। अधिकारी आग लगने के शुरुआती वजहों का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। 2025 की शुरुआत ही प्रलय की दस्तक के साथ हुई है। अमरीका में लॉस एंजिल्स के जंगलों में लगी भयानक आग बढ़ती ही जा रही है। मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि तेड़ हवाएं आग को और भड़का सकती हैं।
इस आग का कारण खोजने पर कई उत्तर मिलते है। दरअसल मनुष्यों ने जब से तापमान नापना सीखा है, तबसे लेकर आज तक 2024 सबसे गर्म साल रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है, ‘हम पिछले एक दशक से घातक गर्मी का सामना कर रहे हैं।’ जापान, भारत, इंडोनेशिया, चीन, ताइवान, जर्मनी और ब्राज़ील सभी में अधिकतम तापमान के नए रिकार्ड कायम हुए। यह बढ़ती गर्मी अब पृथ्वी के जल-चक्र पर असर डालने लगी है। सन् 2024 में पानी से जुड़ी त्रासदियों और संकटों के कारण कम से 8,700 लोगों ने अपनी जान गंवाई, चार करोड़ लोग विस्थापित हुए और 550 अरब डालर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ।
लास एंजिल्स इसलिए जल रहा है क्योंकि पिछले नौ महीनों के दौरान कोई खास बारिश नहीं हुई। तेज़ हवाएं सात जनवरी को कई जंगली आगों का कारण बनीं। इसी तरहए वैश्विक तापमान में वृद्धि से उत्तरी अमरीका में बर्फीले तूफानों की संख्या बढ़ती जा रही है। अत्यंत ठंडी हवा का जो बवंडर सामान्यत: उत्तरी ध्रुव के आसपास आर्कटिक तक सीमित रहता है, आगे बढ़ने लगा है जिससे अमरीका, यूरोप और एशिया में भयानक सर्दी पड़ने लगी है। इस बीच हमारे अपने देश में अभी दो धूप भरे दिनों का जश्न मनाया गया। किसी को भी इस बात अहसास नहीं है कि हालांकि उत्तर भारत का कोहरे की चादर में लिपट जाना और यहां ठिठुरन भरी सर्दी पड़ना सामान्य है, लेकिन जो हो रहा है, वह सामान्य नहीं है।
आंकड़ों के मुताबिक 2024 के शुरूआती नौ महीनों में 90 प्रतिशत से अधिक दिनों में भारत में कम से कम एक अत्यंत गंभीर जलवायु संबंधी घटना, जैसे बाढ़ या तूफान का आना रहा। उपलब्ध रिकार्ड के अनुसार जुलाई से अक्तूबर तक की अवधि में 1901 के बाद का सर्वाधिक न्यूनतम तापमान दर्ज किया गया। दिल्ली के बाद अब मुंबई, पुणे और बंगलौर जैसे शहरों सहित दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में भी हवा ज़हरीली हो रही है।
भारत में आगे चलकर जलवायु के हालात और बिगड़ने वाले हैं। भारत वैश्विक औसत से अधिक गर्म है। यह दुनिया का अपेक्षाकृत निर्धन इलाका है जहां 140 करोड़ लोग रहते हैं। आने वाले समय में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन का वैश्विक स्तर चाहे जो भी हो और मोदी सरकार ने भले ही प्लास्टिक, बीएस तीन और बीएस चार वाहनों पर रोक लगा दी हो, मगर आने वाले सालों में जलवायु संकट की स्थिति और बिगड़ना तय है। इंस्टीच्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स नाम की एक शोध संस्था के मुताबिक जलवायु संबंधी परियोजनाओं पर होने वाला खर्च जो 2015 में जीडीपी का 3.7 प्रतिशत था, 2021 में बढ़कर 5.6 प्रतिशत हो गया है, लेकिन इसे बहुत कम माना जा रहा है।
ऐसा माना जा रहा है कि 2025 भी उतना ही गर्म होगा, जितना साल 2024 था। शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 2025 की मौसम संबंधी भविष्यवाणियों और वर्तमान स्थितियां यह संकेत कर रही हैं कि उत्तरी दक्षिण अमरीका, दक्षिण अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों में सूखे के हालात और बदतर होंगे। सहेल और यूरोप के अधिक वर्षा वाले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढेगा। बल्कि शायद 2025, पिछले साल से भी अधिक झुलसाने वाला साल साबित हो सकता है। प्रशांत महासागर के ला नीना चरण में पहुंचने के बावजूद, जिसमें समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम रहता है और कुल मिलाकर अपेक्षाकृत ठंडक रहती है, तापमान अधिक रहने की संभावना है।