क्या ‘आप’ दिल्ली में लगा पाएगी जीत का चौका ?
आगामी पांच फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा। चुनाव जीतने के लिए सभी राजनीतिक दल जोड़-तोड़ करने में जुटे हुए हैं। चुनाव में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), आम आदमी पार्टी (आप) व कांग्रेस पार्टी के बीच होना तय माना जा रहा है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में मुख्य मुकाबला ‘आप’ व भाजपा के बीच हुआ था। कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब रहा था। मगर इस बार कांग्रेस पार्टी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने जा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, वहीं विधानसभा चुनाव कांग्रेस अकेले ही लड़ेगी। कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने व पिछले लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के कारण दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुकाबला त्रिकोणात्मक होने की संभावना बनने लगी है। दिल्ली में तीन बार सरकार बनाकर ‘आप’ ने मज़बूत पकड़ बनायी हैं। वहीं लोकसभा चुनाव में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद भाजपा ‘आप’ के सामने टिक नहीं पा रही है।
‘आप’ संयोजक के अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस पार्टी के समर्थन से 28 दिसम्बर, 2013 को पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। मगर कांग्रेस द्वारा समर्थन वापिस लेने के कारण 49 दिन में ही सरकार गिर गई थी। फरवरी 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में ‘आप’ ने 70 में से 67 सीटें जीतकर एक नया इतिहास रच दिया था। ‘आप’ को 54.34 प्रतिशत वोट मिले थे। अरविंद केजरीवाल ने 14 फरवरी 2015 को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उस चुनाव में भाजपा को मात्र तीन सीट तथा 32.19 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली तथा वोट भी घटकर 9.65 प्रतिशत रह गया था।
2020 के विधानसभा चुनाव में ‘आप’ ने 62 सीटे जीतकर 53.57 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। 16 फरवरी, 2020 को अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे। 2020 के चुनाव में भाजपा की सीट तीन से बढ़ कर आठ तक पहुंच गई थी तथा वोट प्रतिशत भी बढ़कर 38.51 प्रतिशत हो गया था। कांग्रेस को इस बार भी कुछ नहीं मिला था। कांग्रेस को 4.26 प्रतिशत वोट ही मिले थे। कांग्रेस के अधिकांश प्रत्याशियों की ज़मानत जब्त हो गई थी।
2 अक्तूबर, 2012 को गांधी जयंती के दिन आम आदमी पार्टी का गठन किया गया था। पार्टी के गठन के ठीक एक साल एक महीने और दो दिन बाद 4 दिसम्बर, 2013 को दिल्ली विधानसभा के लिए मतदान हुआ था। 8 दिसम्बर, 2013 को चुनाव के नतीजे आए तो ‘आप’ को 28 सीटें तथा 29.49 प्रतिशत वोट मिले थे। पार्टी अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उनकी नई दिल्ली सीट पर करीब 26000 वोटों से हराया था। उस चुनाव में भाजपा को 31 सीट व 33.07 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस को 8 सीट व 24.55 प्रतिशत वोट मिले थे।
उस वक्त कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए ‘आप’ को समर्थन देकर अरविंद केजरीवाल को पहली बार मुख्यमंत्री बनवाया था। कांग्रेस की यही भूल अब तक कांग्रेस को लगातार ज़ीरो पर आउट कर रही है। उस वक्त यदि कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन नहीं दिया होता तो आगे विधानसभा चुनाव के नतीजे अलग हो सकते थे। मगर अपनी भूल का कांग्रेस आज तक खमियाज़ा भुगत रही है। 1998 से 2008 तक लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीत कर सरकार बनाने वाली कांग्रेस 2013 में मात्र 8 सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस की एक भूल उस पर इतनी भारी पड़ गई कि वह आज तक संभल नहीं पा रही है।
दिल्ली में लोकसभा चुनाव के करीब 8 महीने बाद विधानसभा चुनाव होते हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा 2014 से 2024 तक लगातार दिल्ली की सातों सीटों पर जीत दर्ज करवाती आ रही है। वहीं विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के वोट डालने का रूझान बदल जाता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लगातार तीसरी बार सभी सातों सीटों को जीतकर 54.35 प्रतिशत यानी 48 लाख 44 हजार 180 वोट प्राप्त किए थे। वहीं 52 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी। ‘आप’को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। पार्टी को 24.17 प्रतिशत यानी 21 लाख 54 हज़ार एक वोट मिले थे। पार्टी 10 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी।
पिछले दो विधानसभा चुनाव के मतदान का रूझान देखे तो दिल्ली में करीबन 16 से 18 प्रतिशत मतदाता ऐसे होते हैं जो किसी भी पार्टी के समर्थन नहीं हैं। वह हवा का रूख देख कर मतदान करते हैं। ‘आप’ को स्विंग वाटरों की बदौलत दो बार भारी बहुमत मिल चुका है। स्विंग वोटर का झुकाव जिधर होता है, उसी की जीत तय होती है। लोकसभा चुनाव में तो राष्ट्रीय मुद्दों के चलते स्विंग वोटर भाजपा की तरफ झुक जाता है, मगर विधानसभा चुनाव में उसका मूड बदल जाता है जिसका लाभ आम आदमी पार्टी को मिलता है।
पांच फरवरी को होने वाले मतदान में सबसे बड़ी भूमिका इन फ्लोटिंग वोटरों की होगी। इनका झुकाव जिस तरफ होगा उसी पार्टी को जीत मिलेगी। चुनाव में बहुत कम समय बचा है। ऐसे में सभी पार्टियों के दिग्गज नेता चुनावी मैदान में उतरकर अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को जीत दिलाने के लिए जुटे हुए हैं। जेल जाने के कारण अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उनके स्थान पर अतिशी मार्लेना को 21 सितम्बर, 2024 को मुख्यमंत्री बनाया गया था। उसके बाद से आम आदमी पार्टी में बड़ी उठा-पटक मची हुई है। इसी के चलते पार्टी ने बड़ी संख्या में पुराने विधायकों की टिकट काटी है। दूसरे दलों से आने वाले दलबदलुओं को भी बड़ी संख्या में टिकट दी गई है।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव ने तो ‘इंडिया’ गठबंधन की नींव तक हिला डाली है। जहां गठबंधन में शामिल कांग्रेस व ‘आप’ आमने-सामने चुनाव लड़ रहे है। वहीं तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (यूबीटी) ने ‘आप’ को समर्थन देने की घोषणा कर कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया है। ‘आप’ के लिए लगातार चौथी बार जीत का चौका लगाने का सुनहरा मौका है। वहीं भाजपा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अपनी सरकार बना कर डबल इंजन की सरकार का नारा सार्थक करना चाहती है। कांग्रेस का भी प्रयास है कि कुछ सीट जीत कर अपनी खोई प्रतिष्ठा को फिर से हासिल किया जाए। बहरहाल सभी दलों के लिए इस बार का चुनाव बड़ा ही रोमांचक व कड़ी टक्कर वाला होने जा रहा है। मगर दिल्ली का मुख्यमंत्री वही बनेगा जिसे दिल्ली की जनता चाहेगी।
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