वैश्विक घटनाक्रम और भारत
हाल ही में कनाडा के पी.एम. जस्टिन ट्रूडो को इस्तीफा देना पड़ा। पिछले कुछ समय से उन्होंने वोट बैंक की राजनीति के तहत भारत से संबंध नार्मल नहीं रहने दिये। भारत पर आरोप लगाते रहे। यहां से कनाडा जाने वालों के लिए हालात निम्न स्तर पर आ गये। भारतीयों के अमरीका जाने और काम करने पर भी संकट के बादल देखे गये। वहां धुर दक्षिणपंथी आन्दोलन के तहत ‘अमरीका फर्स्ट’ से बढ़ता हुआ ‘मेक अमरीका ग्रेट अगेन’ से अब नस्लीय तनाव की शक्ल साफ उभरने लगी है।
दौर वैश्वीकरण है, सो माहिर कह रहे हैं कि समय चक्र को पीछे करने का यह प्रयास अमरीका को ही नुकसान पहुंचाने वाला है। पिछली दो सदियों से दुनिया की प्रतिभाओं को सम्मान सहित देश की प्रगति के लिए इस्तेमाल करना अमरीका की एक विशेषता बनी रही है। इसी की सहायता से अमरीका की अर्थ-व्यवस्था को इज़ाफा मिलता रहा है। आरोप यह लग रहा है कि अमरीकी उद्यमी अपने मुनाफे के लिए एच.-1 बी वीज़ा के ज़रिये भारतीय इंजीनियर्स को कम वेतन पर लाकर अमरीकी युवाओं का रोज़गार छीन रहे हैं। इससे बेहतर होता यदि अमरीकी युवा वर्ग अपनी प्रतिभा से भारतीय इंजीनियर्स को मात देते। परन्तु वैसा हो न सका। सम्भावना यह बन सकती है कि अमरीकी उद्योगपति अपना डेरा-डंडा उठा कर भारत का रुख कर लें, जिससे ओर भी नुक्सान होगा। नस्लीय तनाव वैसे भी किसी देश का भला नहीं कर सकता। यह अनैतिक और मानवता विरोधी भी है।
ईरान और इज़रायल एक-दूसरे पर सीधे हमले कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरी बार चुनाव जीता है। भारत में नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार। दक्षिण कोरिया मार्शल लॉ के निकट है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान के रिश्ते लड़ाई तक पहुंच गए हैं। फ्रांस एक ही साल में चार सरकारें देख चुका है। सीरिया के नये घटनाक्रम के अनुसार असद सरकार का असर खत्म हो गया। इस परिवार ने पचास साल तक सत्ता सम्भाली। बांग्लादेश से शेख हसीना को पलायन करना पड़ा। वहां मजहब केन्द्रित अनुशासन हिन्दुओं के लिए आग में रहने जैसा हो गया। चुन-चुन कर हमले हुए हैं। सरकार सुन नहीं रही। शी जिनपिंग को अपनी ताकत को सीमित करना पड़ा। पिछले साल कितने ही घटनाक्रम नाटकीय ढंग से घटे। साल की शुरुआत जापान के भूकम्प से हुई। क्या हम इन तमाम रक्तपात वाली घटनाओं जिनमें मनुष्य की जान जा रही है या मनुष्यता के प्रति बेपरवाही का चलन देखा गया। नार्मल घटनाक्रम मान सकते हैं? युद्ध हमेशा मानवता को आहत करते हैं। युद्ध और सशस्त्र इस अराजकता के माहौल के बड़े कारण बताये जाते हैं। पश्चिम एशिया में संघर्ष को विस्तार मिला है। इज़रायल ने गाज़ा से लेबनान, ईरान और फिर यमन तक युद्ध को खींच दिया है।
उसने हमास और हिजबुल्ला के शीर्ष नेतृत्व को खत्म कर दिया है। सीरिया में बशर अल असद को सत्ता से हटा दिया गया और एक नया शासन सामने आ गया। लड़ाई जब लाल सागर तक चली गई वैश्विक शिपिंग में रुकावट बनी। इज़रायल को अमरीका से घातक हथियार मिलते रहे। गाज़ा में भी खाद्य सहायता गिराते रहे। नेतन्याहू पर कभी कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा। राजनीति के फैसले चेहरा देख कर बदल जाते हैं। मानदंड नैतिक हो या अनैतिक। यूक्रेन की हालत हमारे सामने हैं। समर्थन आधार अब खिसकने लगा है। युद्ध अपने दम पर लड़े जाते हैं। सहायक की उम्मीद पर नहीं।