...ताकि वह बन सके आसमान की परी
* मेरे कदमों की आवाज़ नहीं पर मेरी उड़ान का शोर सुनो।
* ज़िंदगी को रंगीन बनाने के लिए असली रंग मैं खुद हूं।
* बालिका मुस्कराती है तो भगवान हंसते हैं।
वाकई में भगवान हंसते होंगे इंसान पर, उसके कार्यों पर, उसकी सोच पर, क्योंकि भगवान ने तो इंसान के लिए, उसकी ज़िंदगी में रोशनी लाने वाली, उसके दर्द को बांटने के लिए, उसके बुढ़ापे के सहारे के लिए ‘बालिका’ को धरती पर भेजा। परन्तु आज ज्यादातर बुरे हालात हैं बालिकाओं के, कई लोग अपनी बालिका को उसका बनता स्थान, उसका मान-सम्मान नहीं दे पा रहे, मिसाल के तौर पर :-
* प्रत्येक पांच में से एक लड़की की शादी 20 साल से भी पहले हो जाती है।
* प्रत्येक तीन में से एक लड़की अनीमिया का शिकार है, जो अपूर्ण खुराक का ही रूप है।
* लड़कों से लड़कियां पढ़ाई, ट्रेनिंग या रोज़गार के किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं।
हमारे देश में राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी, 2008 को महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा मनाना शुरू हुआ था, इसको मनाने का उद्देश्य है कि लोग बालिकाओं के साथ होती नाइंसाफी से अवगत हो सकें। इस दिन को मनाने के लिए सरकारी और ़गैर-सरकारी संस्थाएं, कैंप, कार्यक्रम जगह-जगह पर करवाते हैं। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ मुहिम भी इस जागरूकता को बढ़ाने के लिए ही बनाई गई थी। बालिकाओं के लिए उपलब्ध होती शिक्षा, खाद्य, डाक्टरी सुविधा और बाल विवाह आदि इन सभी बातों के प्रति लोगों में जागरूक होना बहुत ज़रूरी है। बालिका सदियों से ही बहुत लम्बा रास्ता तय करती आई हैं। पुराने रीति-रिवाज़, वहम-भ्रम जो बालिका के जन्म लेते ही उसको घेरा डाल लेते हैं, इन सभी रीति-रिवाज़ों ने आज उसे एक इंसान से एक जायदाद बनाकर रख दिया है।
हमारे देश के लगभग प्रत्येक राज्य में विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में बालिका की ज़िंदगी में बहुत सुधार नहीं आया है। इसका सबसे बड़ा कारण है लोगों की अनपढ़ता, शिक्षा की कमी, अभी भी बेटे को बेटी से ऊंचा समझा जाता है और हर सुविधा के लिए बेटे को प्राथमिकता दी जा रही है। भारत की ज्यादातर जनसंख्या के यह हालात हैं कि जब घर के बढ़े पढ़े-लिखे नहीं होते, तो वह लड़का-लड़की में बहुत भेदभाव करते हैं, जो लड़की बचपन से भेदभाव सहती है। वह आगे अन्य महिलाओं के साथ भी उसी तरह पेश आकर ऊंच-नीच करके इस रीत को चलाती है। क्योंकि वह जो व्यवहार अपने घर की महिलाओं के साथ बचपन से होता देखती हैं, अपनी इच्छाएं दबा लेती हैं और मन में एक धारना बना लेती हैं कि शायद इसी तरह का ही जीवन है एक नारी का।
क्योंकि विद्या की कमी के कारण, दिमाग की खुली और विशाल सोच न होने के कारण वह गलत और सही का फैसला नहीं ले पातीं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी ऊंच-नीच का अंतर चलता रहता है।
सोशल मीडिया के गलत प्रभाव के कारण बहुत सारे नौजवान लड़के लड़कियों का सम्मान नहीं करते बल्कि उसको फालतू की चीज़ समझते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने घरों में किसी से न सीखा होता है, न देखा होता है कि एक लड़की के साथ कैसे पेश आना है, उसे कैसे मान-सम्मान देना है, इसलिए वह लड़की पर अत्याचार तक करने से भी गुरेज़ नहीं करते।
आज बहुत ज़रूरत है प्रत्येक घर छोटे-बड़े, गरीब या अमीर, लड़कियों को जागरूक करने, उनको लड़कियों का सम्मान करना सिखाएं, चाहे वह मां है, बनते हैं, पत्नी है घर या बाहर की कोई भी महिला है। आज महिला बहुत तरक्की कर गई है। प्रत्येक ऊंचे से ऊंचे पद पर पहुंच गई है और इसका श्रेय समाज के उस वर्ग को जाता है, जिसको समझ आ गया है कि एक लड़की जब पढ़-लिख जाएगी, वह मां-बाप का नाम तो रोशन करेगी ही, साथ ही जहां-जहां वह रहेगी, वहां-वहां समाज के लिए अच्छा ही होगा। एक लड़की में इतनी शक्ति होती है कि वह दुनिया बदल सकती है। जो लोग इस बात को समझते हैं, वह समाज का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से सुधार करने में सहायता करते हैं।
आज ज़रूरत है जोरदार ढंग से जागरूकता लहर चलाने की, इसमें स्कूल और कालेज बहुत रोल अदा कर सकते हैं। स्कूल में सीखी बातें बच्चे के मन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है।
ज्यादातर घरों में मां-बाप कमाने के लिए चले जाते हैं, लड़के स्कूल चले जाते हैं और घर संभालने के लिए बेटी को छोड़ जाते हैं, जिसके अरमान, सपने उस चार-दीवारी के अंदर ही दब कर रह जाते हैं। ऐसे लोगों को जागरूक करने की ज़रूरत है, लड़की सिर्फ शादी करके बच्चों को जन्म देने और घर संभालने के लिए नहीं है। आज उस पर किया निवेश ही भविष्य की असली पूंजी है।
आज की बालिका बहुत मज़बूत है। उसका बचपन बिना किसी नुकसान के, बिना कड़वी यादों के होना चाहिए। बालिका को आज ज़रूरत है आत्मनिर्भर बनाने की, रास्ता दिखाने की है, मंज़िल वह खुद तय कर लेगी।
यह इसी लहर का हिस्सा है जो लड़की, महिला एक-दूसरे के कंदों पर खड़ी हैं। ऐसी महिला अपनी कहानी की लेखिका बनना चाहती है, अपनी किश्ती की मल्लाह बनना चाहती है, ज़ंज़ीरें तोड़कर आकाश में उड़ना चाहती है, पर उड़ नहीं सकती क्योंकि कई नीचे खींचने के लिए तैयार हैं। क्योंकि हम समझकर भी न समझ बन रहे हैं, क्यों हम जानकर भी अनजान बन रहे हैं?
आओ, सभी मिलकर इकट्ठे होकर बेटियों को शिक्षित करें, उत्साहित करें और हौसला बढ़ाएं। इन बालिकाओं को आत्म-विश्वास से भर दें ताकि वह बड़ी होकर कल की नेता बन सकें। बालिकाओं के लिए हर पल, हर समय बेहतरी की इच्छा, कामना और शुभकामनाएं।
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