कौन लागू करवाएगा दक्षिण चीन सागर में आचार संहिता ?

दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीनी दबदबे को नियंत्रित करने के लिए एक आदर्श आचार संहिता लागू करने की मांग सही है, लेकिन वहां पर इसे लागू कौन करवाएगा, इस बात का उत्तर भारत समेत विभिन्न आसियान देशों के पास नहीं है। वे तो सिर्फ वकालत कर रहे हैं कि दक्षिण चीन सागर ऐसा होना चाहिए जबकि चीन अपनी हठधर्मिता के चलते सैन्य कार्रवाई करने पर उतारू हो जाता है। इसी दृष्टि से वह लगातार अपनी तैयारी पुख्ता करता जा रहा है, लेकिन उसे रोकने में संयुक्त रार्ष्ट संघ भी यहां असहाय प्रतीत हो रहा है। 
देखा जाए तो चाहे चीन विरोधी अमरीका हो या चीन समर्थक रूस या फिर इनके समर्थक विभिन्न विकसित और विकासशील देश, सबकी नीति इस मामले में अभी तक ढुलमुल वाली ही रही है। इसलिए भारत की भूमिका इस मामले में भी अहम और निर्णायक बताई जा रही है क्योंकि भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न देशों के बहुत पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध भी हैं।  वैश्विक दुनियादारी में चीन को संतुलित रखने के लिए भी भारत और आसियान देशों को एक-दूसरे की ज़रूरत है। इसलिए आसियान देशों के साथ भारत की निकटता जगजाहिर है। समझा जाता है कि भारत ही अमरीका और रूस दोनों देशों पर दबाव डालकर आसियान देशों के दक्षिण चीन सागर सम्बन्धी दूरगामी हितों की रक्षा कर सकता है। जानकारों की माने तो चीन की विस्तारवादी नीति से न केवल भारत बल्कि आसियान देशों के विभिन्न हित प्रभावित हो रहे हैं। उधर जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमरीका की चिंता भी किसी से छिपी हुई नहीं है। हालांकि, इन देशों में अमरीका के बाद भारत ही एक ऐसा मुल्क है जो चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षा को नियंत्रित कर सकता है। इसी नज़रिए से क्वाड देशों में भी भारत की भागीदारी प्रमुख है। 
इधर भारत-चीन सम्बन्धों में भी ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। यही वजह है कि गत 25-26 जनवरी, 2025 को भारत ने चीन के खिलाफ एक और बड़ी चाल चलते हुए दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में आचार संहिता लागू करने का आह्वान किया है। इसके दूरगामी वैश्विक मायने को समझते हुए इंडोनेशिया जैसे प्रभावशाली देश ने भी भारत का साथ दिया है। उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति भारत के 76वें गणतंत्र समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे। इसी दौरान हुई विभिन्न बैठकों के क्रम में उपर्युक्त आशय की सहमति बनी है।
दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच भारत और इंडोनेशिया ने प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार इस क्षेत्र में ‘पूर्ण और प्रभावी’ आचार संहिता लागू करने की वकालत की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो के बीच पिछले दिनों में हुई व्यापक बातचीत में दक्षिण चीन सागर की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा हुई। इस बैठक में दोनों पक्षों ने भारत के हिंद महासागर क्षेत्र स्थित सूचना संलयन केंद्र (इन्फार्मेशन फ्यूजन सेंटर) में इंडोनेशिया से एक संपर्क अधिकारी तैनात करने पर सहमति व्यक्त की। बता दें कि भारतीय नौसेना ने समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोगात्मक ढांचे के तहत जहाज़ों की आवाजाही के साथ-साथ क्षेत्र में अन्य महत्वपूर्ण विकास पर नज़र रखने के लिए वर्ष 2018 में गुरुग्राम में इन्फार्मेशन फ्यूजन सेंटर की स्थापना की थी। चूंकि आसियान देश भी दक्षिण चीन सागर पर एक बाध्यकारी आचार संहिता पर ज़ोर दे रहे हैं क्योंकि चीन द्वारा इस क्षेत्र पर अपने व्यापक दावों को स्थापित करने के लगातार प्रयास जारी हैं। वहीं, इस मुद्दे पर भारत की अगुवाई में चल रहे कीप एंड बैलेंस की नीति पर चीन का बौखलाना स्वाभाविक है। बीजिंग इस प्रस्तावित आचार संहिता का कड़ा विरोध करता रहा है। वह पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है जो हाइड्रोकार्बन का एक बड़ा स्त्रोत है जबकि वियतनाम, फिलिपींस और ब्रूनेई सहित कई आसियान सदस्य देशों ने चीन के इस दावे पर आपत्ति जताई है। 
गौरतलब है कि एक ओर दक्षिण चीन सागर में जहां चीन अपनी सैन्य ताकत में निरंतर इजाफा करने में जुटा हुआ है जिससे आसपास के छोटे देश भयभीत हैं, वहीं अब भारत ने चीन के खिलाफ अपनी चाल चलते हुए दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में आचार संहिता लागू करने का आह्वान किया है। सुकून की बात यह है कि भारत को इस मुद्दे पर इंडोनेशिया जैसे महत्वपूर्ण देश का भी साथ मिल गया है जबकि दूसरी तरफ चीन इस क्षेत्र में आचार संहिता का खुलकर विरोध करता है। इसलिए दक्षिण चीन सागर से जुड़े हुए विभिन्न प्रभावित देशों के साथ-साथ भारत और अमरीका की चिंताएं स्वाभाविक हैं।
बता दें कि अक्तूबर 2024 में भी जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व एशिया सम्मेलन में हिस्सा लिया तो उन्होंने चीन पर इस बाबत निशाना साधा था। इससे एक दिन पहले आसियान-भारत वार्षिक सम्मेलन में भी उन्होंने चीन की तरफ इशारा करते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर को लेकर जो सारी बातें कहीं, वे इस क्षेत्र में आक्रामक रवैया अपना रहे चीन को नागवार गुज़र सकती है। यह स्पष्ट है कि देर-सबेर भारत चीन पर दबाव बढ़ाने की अपनी रणनीति में सफल रहेगा, क्योंकि इस मसले पर उसे अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के अलावा आसियान देशों का भी साथ मिल रहा है। चूंकि रूस भारत का मित्र देश है, इसलिए उसकी तटस्थता भी भारत के लिए मायने रखेगी। (अदिति)
 

#चीन सागर में आचार संहिता ?