दिल्ली चुनावों की हलचल
5 फरवरी को महानगर दिल्ली में चुनाव होने जा रहे हैं, जिनके परिणाम 8 फरवरी को सामने आएंगे। दिल्ली विधानसभा की 70 सीटे हैं। पिछले लगभग एक दशक से यहां आम आदमी पार्टी प्रशासन चला रही है। आम आदमी पार्टी राजनीति में एकाएक आंधी की तरह उभरी थी, इसकी तेज़ हवा का ज्यादा प्रभाव दिल्ली पर पड़ा। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में इस पार्टी को पूरी सफलता नहीं मिली थी, परन्तु 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसे भारी जीत प्राप्त हुई थी। इन विधानसभा चुनावों में उसे कुल 70 में से 67 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी तथा उसके बाद वर्ष 2020 में हुए चुनावों में यह पार्टी 62 विधानसभा सीटें जीत गई थी। अनुमान के अनुसार दोनों बार ही इसे ़गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों से अधिक समर्थन मिला था।
इससे पहले 15 वर्ष तक कांग्रेस ने दिल्ली राज्य का प्रशासन सम्भाले रखा था। तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के आधारभूत निर्माण कार्यों को आज भी याद किया जाता है। पिछली लम्बी अवधि से चाहे आम आदमी पार्टी अनेक तरह के विवादों में घिरी रही, परन्तु इसने वर्ष 2022 में हुये पंजाब विधानसभा चुनावों में भी आश्चर्यजनक जीत हासिल की थी। पंजाब में उसे कुल 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता अरविन्द केजरीवाल अब होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी चुनाव-वृत्तांत का केन्द्र बिन्दु बने दिखाई दे रहे हैं। इस तरह प्रतीत होता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी द्वारा चुनाव केजरीवाल के नाम पर ही लड़े जा रहे हैं।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी चाहे अपनी पूरी ताकत से इन चुनावों में उतरी है, परन्तु उसकी ओर से कोई मुख्यमंत्री का चेहरा आगे नहीं किया गया, अपितु इन चुनावों का पूरा दारोमदार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ही है। चाहे राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ गठबंधन की पार्टियों में समझौता तो औपचारिक रूप से अभी नहीं टूटा, परन्तु क्रियात्मक रूप में इन दर्जन से अधिक बड़ी पार्टियों ने अपने-अपने मार्ग चुनने को ही बेहतर समझा है। दिल्ली में भी उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव आम आदमी पार्टी के समर्थन में आ गए हैं। दूसरी ओर पिछले विधानसभा चुनाव तो चाहे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अलग-अलग लड़े थे परन्तु लोकसभा चुनाव दिल्ली में उन्होंने इकट्ठे लड़े थे। इसके बाद इन दोनों पार्टियों के बीच आपस में दूरियां भी बढ़ी हुई दिखाई दी हैं। विगत दिवस चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर के चुनाव में भी इन दोनों पार्टियों की आपसी दरार और भी बढ़ी हुई दिखाई दी है। अब कांग्रेस दिल्ली चुनावों में तीसरी बड़ी पार्टी के रूप में चुनाव मैदान में उतरी हुई है, परन्तु इस समय मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी तथा भाजपा के बीच ही दिखाई देता है।
मौजूदा समय में तीनों ही पार्टियां पूरे ज़ोर-शोर से चुनाव मैदान में उतरी हुई हैं तथा उनका यह प्रचार मैदान-ए-जंग में लड़ाई की तरह दिखाई दे रहा है। तीनों ही पार्टियां एक-दूसरे पर दोष लगाती दिखाई दे रही हैं। जहां आम आदमी पार्टी दो पारियों के बाद पूरे हौसले के साथ तीसरी बार इन चुनावों में उतरी है। वह पिछले 10 वर्षों में दिल्ली सरकार की क्रियात्मक रूप में हासिल की गई उपलब्धियां गिना रही है। दूसरी तरफ भाजपा जिसे पिछले दो लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी, इस बार विधानसभा चुनावों के लिए वह भी पूरी तरह हमलावर हुई नज़र आ रही है। सभी पार्टियों ने मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की अनेक तरह की घोषणाएं भी की हुई हैं। इनके लिए पैसा कहां से आएगा तथा इन्हें पूर्ण कैसे किया जाएगा, इस संबंध में सभी पार्टियां ब़ेखबर बनी हुई हैं। समय नज़दीक आने के कारण यह अपनी-अपनी जीत के दावे भी कर रही हैं।
दिल्ली क्योंकि देश की राजधानी भी है तथा इसके साथ-साथ इन चुनावों को तीनों ही पार्टियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल भी बनाया हुआ है, इसलिए यह दौड़ और भी तेज़ हुई दिखाई दे रही है। चुनाव परिणामों के बाद जो भी पार्टी जीत प्राप्त करती है, उसकी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ी हुई दिखाई देगी, क्योंकि इस समय दिल्ली के चुनावों पर देश भर की नज़रें केन्द्रित हैं तथा इनका बड़ा प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में देश की राजनीति पर पड़ना भी स्वाभाविक है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द