अपनी गति खो रहा है भारत का आर्थिक विकास इंजन

चालू वित्त वर्ष के दौरान मुद्रास्फीति समायोजन के बाद भारत की शुद्ध आर्थिक वृद्धि की जो दर शेष रह जायेगी वह भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक के अलावा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक जैसी अन्तर्राष्ट्रीय एजंसियों द्वारा लगाए गए अनुमानों से काफी कम हो सकती है। 
शुद्ध आर्थिक वृद्धि की गणना जीडीपी वृद्धि दर से वर्तमान मुद्रास्फीति दर को घटाने के बाद की जाती है। नवीनतम अनुमानों के अनुसार यह वित्त वर्ष 2024-25 के लिए लगभग 5.8 प्रतिशत हो सकता है। सांख्यिकी मंत्रालय के पहले अग्रिम अनुमानों के आधार पर इस वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि 6.4 प्रतिशत होगी जो पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में दर्ज 8.2 प्रतिशत की वृद्धि से काफी कम है। 
एशियाई विकास बैंक ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा कि निजी निवेश और आवास मांग में अपेक्षा से कम वृद्धि के कारण एशियाई विकास बैंक ने भारत के विकास परिदृश्य को सात प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत और अगले वर्ष 7.2 प्रतिशत से घटाकर सात प्रतिशत कर दिया है। पिछले वर्ष सितम्बर में विश्व बैंक को उम्मीद थी कि चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की जीडीपी वृद्धि लगभग सात प्रतिशत रहेगी और देश के दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बने रहने की उम्मीद है। विश्व बैंक ने विकास परिदृश्य के लिए मजबूत कृषि उत्पादन और मज़बूत निजी खपत को बढ़ावा देने वाली सरकार की रोज़गार वृद्धि नीतियों को प्रमुख कारण बताया था।  दुर्भाग्य से देश की रोज़गार वृद्धि और निजी खपत दर मूल अपेक्षा से काफी नीचे गिर गयी है। हाल ही में रिज़र्व बैंक ने भी चालू वित्त वर्ष के लिए विकास अनुमान को पहले के 7.2 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया और आर्थिक गतिविधियों में मंदी के साथ-साथ खाद्य कीमतों में अस्थिरता को देखते हुए मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान को बढ़ाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया। चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितम्बर तिमाही में देश की जीडीपी वृद्धि दर सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ गयी जबकि आरबीआई ने खुद 7 प्रतिशत का अनुमान लगाया था। 
हैरानी की बात है कि आईएमएफ  ने वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के जीडीपी पूर्वानुमान को 20 आधार अंकों से बढ़ाकर सात प्रतिशत कर दिया है। आईएमएफ  ने अप्रैल में अपने पिछले अनुमान 6.8 प्रतिशत से अपने पूर्वानुमान को संशोधित किया है। आईएमएफ की विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि चालू वर्ष के लिए भारत के आर्थिक विकास पूर्वानुमान को भी बढ़ाकर 7.0 प्रतिशत कर दिया गया है। यह विकास विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग की संभावनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि की पृष्ठभूमि में हुआ है। इसके साथ ही भारत उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति बनाये रखता है। हालांकि इनमें से किसी भी अनुमान में मुद्रास्फीति दर को ध्यान में नहीं रखा गया है जबकि देश की वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर मुद्रास्फीति दर को घटाकर विकसित देशों की तुलना में अभी भी मज़बूत दिखायी देगी, यह आंकड़ा अभी भी स्पष्ट रूप से भारत में आर्थिक मंदी की प्रवृत्ति का संकेत देता है। इसके कई कारण हैं। 
भारत का सबसे बड़ा उपभोक्ता आधार मध्यम आय वर्ग अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन की कमी से जूझ रहा है। उच्च और लगभग सर्वव्यापी जीएसटी और आयकर दरें एक बड़ा बोझ बन गयी हैं। आय और रोज़गार नहीं बढ़ रहे हैं। दवाओं की लागत सहित बढ़ते स्वास्थ्य सेवा खर्च एक बड़ी चिंता का विषय है। निजी निवेश वर्षों से सुस्त रहा है और सरकारी खर्च (हाल के वर्ष में एक आवश्यक चालक) वापिस ले लिया गया है। भारत के माल निर्यात लम्बे समय से संघर्ष कर रहे हैं तथा 2023 में उनका वैश्विक हिस्सा मात्र दो प्रतिशत है। 
बड़े पैमाने पर आयात स्थानीय नौकरियों को छीन रहा है। अमीर लोग अपने अधिशेष रुपये के स्टॉक को सोने में बदल रहे हैं, जिसकी कीमत पिछले साल सरकार द्वारा आयात शुल्क में कटौती के बाद से रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गयी है। इस साल देश की आर्थिक वृद्धि दर को सबसे ज्यादा नीचे खींचने वाले क्षेत्र विनिर्माण और खनन हैं। आयात से प्रभावित दोनों क्षेत्रों को पिछले वर्षों की तुलना में विकास में मंदी का सामना करना पड़ रहा है। हाल के वर्षों में पहली बार निर्माण क्षेत्र में धीमी वृद्धि दर देखी जा रही है। होटल क्षेत्र, यात्रा और सामान्य रूप से व्यापार भी इस वर्ष अपेक्षित स्तर पर नहीं बढ़ रहे हैं।  विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि में सबसे महत्वपूर्ण गिरावट देखने को मिल सकती है। अनुमानों के अनुसार यह दर पिछले वर्ष के 9.9 प्रतिशत से घटकर 5.3 प्रतिशत रह जायेगी। खनन उद्योग में भी काफी मंदी आने का अनुमान है, जिसमें पिछले वर्ष के 7.1 प्रतिशत की तुलना में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। आयात में बेतहाशा वृद्धि हो रही है जबकि निर्यात पर लगातार दबाव बना हुआ है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में उतार-चढ़ाव के कारण अधिकांश देश अनुकूल व्यापार संतुलन के लिए प्रयास कर रहे हैं। 
अगले वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए पूरा ध्यान पूरे वर्ष और उसके बाद के लिए उच्च आर्थिक विकास में बाधाओं को दूर करने के लिए आगामी बजट में किये जाने वाले उपायों पर है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार बुनियादी ढांचे पर खर्च को कैसे बढ़ाती और तेज़ करती है, निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने में मदद करती है और हरित पहल को बढ़ावा देती है। 
यह सही समय है कि आगामी राष्ट्रीय बजट में विनिर्माण, खनन और आयात नियंत्रण जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देते हुए उपभोग और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कर सुधारों को और अधिक कारगर बनाने का वास्तविक प्रयास किया जाये। बजट में नये व्यवसायों के लिए कर प्रोत्साहन और एआई और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उभरते क्षेत्रों के लिए समर्थन जैसे उपायों के माध्यम से ग्रामीण विकासए कौशल विकास और रोजगार सृजन पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। अंत में, सरकार-आरबीआई के दोहरे प्रयास के साथ बजट प्रावधानों को देश में प्रत्यक्ष औद्योगिक निवेशकों (विदेशी और स्थानीय) का विश्वास सुनिश्चित करने के लिए रुपये को स्थिर करने में मदद करनी चाहिए। (संवाद)

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