योग्य और ईमानदार प्रत्याशी का चयन किया जाना चाहिए

70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के लिए मतदान 5 फरवरी, 2025 को होना है। निर्वाचन आयोग अपनी संवैधानिक शक्तियों एवं स्वतंत्र आयोग के स्तर पर निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है। विगत चुनावों के सर्वेक्षण से भी यह मत विकसित हुआ है कि भारत के लोकतंत्र में निर्वाचन आयोग की सक्रियता, सूझबूझ एवं नागरिक समाज के सक्रिय सहयोग से सफलतापूर्वक चुनाव करवाए गए हैं। विदेशी पर्यवेक्षकों ने भी निर्वाचन आयोग की कार्यक्षमता, कार्यप्रणाली एवं विश्वसनीयता की प्रशंसा की है।
सवाल यह है कि योग्य एवं ईमानदार प्रत्याशी का चुनाव कैसे हो? लोकतंत्र के मंदिर में ईमानदार एवं योग्य प्रत्याशी का प्रतिनिधित्व कैसे हो जिससे उनके व्यक्तित्व, बोलचाल एवं व्यवहार में लोकतांत्रिक मूल्यों एवं आदर्शों की खुशबू आए जिससे समाज का एक भद्र समूह (पढ़े लिखे लोगों का समूह) उनसे वार्तालाप, मुलाकात और विधाई शिष्टाचार के लिए जा सके। लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि बहुत-से अयोग्य एवं भ्रष्ट नेताओं के कारण संस्कारिक, पारदर्शी चरित्र एवं ईमानदार व्यक्तियों का समूह तटस्थ रहना पसंद करता है।  वैकल्पिक विवाद निवारण (एडीआर) के हालिया प्रतिवेदन के अनुसार  40 प्रतिशत सांसदों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में 30 प्रतिशत प्रत्याशी चुनाव जीत कर आए थे, वहीं 2014 में इनकी संख्या 34 प्रतिशत और 2019 में 45 प्रतिशत थी। ऐसे व्यक्ति लोकतंत्र के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं।
राजनीतिक दल और लोगों को प्रतिनिधियो को लोकतंत्र का पालन करना चाहिए। प्रत्याशी जन-हितैषी, संवैधानिक मूल्यों के प्रति आस्थावान, मौलिक कर्तव्यों के प्रति गम्भीर, जनता के हितों के प्रति उत्तरदाई होने चाहिए। ऐसा प्रतिनिधि चुना जाए जिसमे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों  का समावेश हो। इन मूल्यों और आदर्शों का व्यक्ति विजयश्री पाने के उपरांत भी प्राकृतिक न्याय में विश्वास करने वाला होगा एवं राजनीतिक संस्कृति के रक्षोपाय के लिए पूर्ण रूपेण ज़िम्मेदार होगा।
चुनावी प्रक्रिया में अब रेवड़ी संस्कृति को अधिक महत्व दिया जाता है। अपने प्रत्याशी को विजय दिलाने  के लिए राजनीतिक दल रेवड़ी संस्कृति का खूब सहारा हैं। मुफ्त सुविधाओं के प्रलोभन में आकर जनता अयोग्य उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान कर देता है। विजयी होने के पश्चात ऐसे उम्मीदवार विधानसभा क्षेत्र में दर्शन देना ही भूल जाते हैं क्योंकि उनका लक्ष्य सिर्फ चुनाव जीतना ही होता है।
कुछ राजनीतिक दल ऐसे भी हैं जो सामाजिक या क्षेत्रीय पक्षों को लेकर चलते हैं। भारत की संघीय और बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था ने भी वंशवाद या व्यक्तिगत प्रभाव के लोगों के प्रभुत्व को बढ़ावा दिया है, इसमें वित्तीय अनुदान भी महत्वपूर्ण हो जाता है, इसलिए अनेक दलों में आंतरिक चुनाव पर ज्यादा ज़ोर नहीं दिया जाता है। कांग्रेस दल में बहुत वर्षों के बाद लोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष का चुनाव हुआ है। (अदिति)

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