दिल्ली में एग्जिट पोल खरे उतरेंगे या गिरेंगे औंधे मुंह
एग्जिट पोल का करिश्मा एक बार फिर देशवासियों को देखने को मिल रहा है। हम बात कर रहे है दिल्ली विधानसभा के चुनावों की। लोग चर्चा कर रहे है कि दिल्ली में एग्जिट पोल खरे उतरेंगे या गिरेंगे औंधे मुंह। ये चुनाव 5 फरवरी को सम्पन्न हो गए और परिणाम 8 फरवरी को देखने को मिलेंगे। एग्जिट पोल में भाजपा अपने प्रतिद्वंदी पर बढ़त बनाये हुए है। एक दज़र्न एग्जिट पोल में से अधिकांश ने भाजपा के सरकार बनाने की भविष्यवाणी कर दी है। इसमें भाजपा दो दशक के बाद सत्ता में वापसी करती दिख रही है। इसी बीच खबरिया चैनलों में एग्जिट पोल को लेकर गरमागरम बहस सुनने को मिल रही है। तरह-तरह के तर्क और कुतर्कों से सजी धजी बहस में राजनीतिक पार्टियों के नेता और राजनीतिक विश्लेषक अपनी-अपनी बात रख रहे है। भाजपा अपनी जीत की भविष्यवाणी से बल्ले बल्ले है तो आम आदमी पार्टी इन्हें ठुकरा रही है। एग्जिट पोल करने वाली संस्थाएं अपने सर्वे को विश्वसनीय बता रहे है वहीं सियासी टीकाकार पिछले एग्जिट पोल का हवाला देकर इनकी हवा निकल रहे है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव का मतदान बुधवार शाम को सम्पन्न होते ही खबरिया चैनलों में एग्जिट पोल की होड़ लग गई। वोटिंग पूरी होने के कुछ ही समय बाद नतीजों को लेकर विभिन्न एजेंसियों, मीडिया संस्थानों के पूर्वानुमान, यानी एग्जिट पोल सामने आ गए। महाएग्जिट पोल में भाजपा की बम्पर जीत का दावा किया गया है। पोल ऑफ एग्जिटपोल्स के मुताबिक भाजपा दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है। एग्जिट पोल देखकर भाजपा में उत्साह का माहौल है, वहीं आम आदमी पार्टी के खेमे में चिंता की लहर है। लगभग एक दज़र्न एग्जिट पोल्स में दो तीन को छोड़कर लगभग सभी ने दिल्ली में भाजपा का परचम फहरा दिया है। एग्जिट पोल में कांग्रेस को एक दो सीटों दी जा रही है। हालांकि एग्जिट पोल का रिजल्ट से कोई लेना-देना नहीं है। कई बार एग्जिट पोल और चुनावी नतीजे में बड़े अंतर देखने को मिल जाता है।
एग्जिट पोल का झंडा बुलंद करने वाले मैट्राइज, चाणक्य स्ट्रैटजी, पी मार्क, पीपल्सइनसाइड, पोल डायरी, पीपुल्स प्लस और डीवी रिसर्च ने एक मत से भाजपा की जीत का अपना अनुमान व्यक्त किया है। पोल ऑ़फ पोल्स को देखकर लगता है मतदाताओं ने केजरीवाल को ठुकरा दिया है और उनके किसी भी वादे और घोषणा पर विश्वास नहीं किया है। लगता है भाजपा का 26 साल बाद वनवास समाप्त होने जा रहा है। मतदाताओं ने इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपना विश्वास व्यक्त किया है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आजकल चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने लगे है। चुनावी सर्वे करने वाली विभिन्न संस्थाओं से मिलकर किये जाने वाले सर्वेक्षणों में मतदाताओं का मूड जानने का प्रयास कर सटीक आकलन किया जाता है। कई बार ये सर्वे वास्तविकता के नज़दीक होते है तो कई बार फैल भी हो जाते है। एग्जिट पोल को भी हम चुनावी सर्वे कह सकते है। यह मतदान के दिन किया जाता है। इसमें मतदान करके बाहर निकले मतदाताओं से पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी या प्रत्याशी को वोट दिया है। इससे मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है, जिससे यह अनुमान लग जाता है कि चुनाव के नतीजे क्या होंगे? एग्जिट पोल एक तरह का तिलिस्म है। जिस पार्टी के पक्ष में जाता है वह इसे सही ठहराता है और जिसके विपक्ष में जाता है वह इसे गलत बताते देर नहीं करता। कई बार एग्जिट पोल सही निकले है। हालांकि अनेक बार एग्जिट पोल का यह तिलिस्म औंधे मुंह भी गिरा है।
टीवी चैनल टीआरपी के चक्कर में अपनी लोकप्रियता दांव पर लगा देते है। यदि एग्जिट पोल सही जाता है तो बल्ले बल्ले अन्यथा साख पर विपरीत असर देखने को मिलता है। चुनाव के पहले और मतदान के बाद कई एजेंसियां सर्वेक्षण कराती हैं और संभावित जीत-हार के अनुमान पेश करती हैं। कई बार इन सर्वेक्षणों के नतीजे चुनावी नतीजों के करीब बैठते हैं तो कई बार औंधे मुंह गिर जाते हैं। मतदाताओं का मूड भांपने का दावा करने वाले ऐसे सर्वेक्षणों में कई बार लोगों और राजनीतिक दलों की दिलचस्पी दिखाई देती है। कोई दावा नहीं कर सकता कि हमारे देश में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण तरह विश्वसनीय होते हैं। एक बात निर्विवाद रूप से कही जा सकती है की दिल्ली में भाजपा की संभावित जीत का समूचा श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया जा सकता है।