पंजाब सरकार के लिए जी का जंजाल बनता किसान आंदोलन
पंजाब-हरियाणा के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसान एक साल से धरने पर हैं और अब पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की परेशानी बढ़ रही है। हालात अब किसान और पंजाब सरकार के बीच टकराव के स्तर पर पहुंच गई है। आम आदमी पार्टी ने किसान आंदोलन को केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया मगर अब इन्हीं अन्नदाताओं ने पंजाब सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भगवंत मान का कहना है कि किसानों ने पंजाब को धरने वाला राज्य बना दिया है। पिछले सोमवार को वह किसान नेताओं की मीटिंग को बीच में ही छोड़कर चले आए। अरविंद केजरीवाल भी इन दिनों पंजाब में विपश्यना कर रहे हैं मगर किसानों की मांगों पर चुप हैं। दिल्ली चुनाव में हार के बाद हालात इतनी तेजी से बदले कि किसानों को दिल्ली में धरने के लिए निमंत्रण देने वाली आम आदमी पार्टी की मान सरकार ने किसानों को चंडीगढ़ में एंट्री नहीं दी।
पंजाब के किसान एमएसपी की गारंटी समेत अन्य मांगों के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की कई मांगें केंद्र के साथ राज्य सरकार से भी है। शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसानों का धरना एक साल से जारी है। माना जाता है कि पंजाब सरकार ने किसानों को दिल्ली का रास्ता दिखाकर आंदोलन को हवा दी थी। पंजाब सरकार को उम्मीद थी कि किसान एक बार फिर दिल्ली पहुंचेंगे और केंद्र सरकार की मुसीबत बढ़ जाएगी, मगर हरियाणा सरकार ने दोनों बॉर्डर को बंद कर दिया। जानकारों का कहना है कि अगर हरियाणा में सत्ता बदल जाती तो सियासी खेल आसान हो जाता मगर हरियाणा में भाजपा ने हैट्रिक लगा दी और बॉर्डर बंद ही रहा। किसान अभी भी पंजाब की सीमा के भीतर टेंट लगाकर अभी बैठे हैं। अब यह दांव उल्टा पड़ रहा है। किसान कुछ लिए बिना जाना नहीं चाहते, इसलिए किसान केंद्र से पहले पंजाब में किए गए वादों को पूरा करने की मांग कर रहे हैं हालांकि किसानों की केंद्रीय मंत्रियों से भी बातचीत जारी है।
3 मार्च को भगवंत मान के साथ 40 किसान नेताओं की मीटिंग भी हुई थी जिसमें गन लाइसेंस रिन्यू करना, एग्रीकल्चर पॉलिसी समेत प्रीपेड इलेक्ट्रिक मीटर समेत 18 मांगों पर चर्चा होनी थी। ये सारे मुद्दे पंजाब सरकार से जुड़े हैं। बैठक में माहौल इतना तल्ख हो गया कि भगवंत मान बीच में ही बैठक छोड़कर निकल गए। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने तल्ख अंदाज में कहा कि पहले भी जो मांगे माने गई हैं, वह भी अब रद्द हो गई हैं। बातचीत फेल होने के बाद किसानों ने बुधवार को चंडीगढ़ कूच का ऐलान किया और पंजाब सरकार से चंडीगढ़ के सेक्टर 34 में प्रदर्शन करने की मांग की। दिल्ली में धरने की वकालत करने वाली आम आदमी पार्टी ने किसानों को चंडीगढ़ में एंट्री की इजाजत नहीं दी। प्रदर्शन के दौरान कई किसान नेता गिरफ्तार किए गए। इसके बाद किसानों ने भगवंत मान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। किसानों ने आरोप लगाया है कि भगवंत मान सरकार भी वैसा ही व्यवहार कर रही है जैसा केंद्र सरकार करती आ रही है।
जानकारों का कहना है कि पांच साल पहले जब 2020 में अरविंद केजरीवाल सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे। तब उन्होंने कहा था कि वह किसानों के बीच मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि सेवादार बनकर आए हैं। मनीष सिसोदिया ने आंदोलन कर रहे किसानों को बिजली, पानी समेत तमाम सुविधाएं दिलाने का वादा किया था और सुविधाएं दी भी थी। राजनीतिक दलों के समर्थन के कारण 2020-21 के बीच किसान 379 दिनों तक दिल्ली में जमे रहे। ट्रैक्टर मार्च निकाला और लाल किले में उपद्रव भी हुए। यह बात अलग है कि इस किसान आंदोलन से जनता को भारी परेशानियां होने के साथ-साथ अरबों रुपयों का नुकसान भी हुआ था।
2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में ‘आप’ को दिल्ली में किसानों की सेवा का फल भी मिला। पार्टी शहरी क्षेत्रों के अलावा ग्रामीण इलाकों में विजयी रही हालांकि इस जीत में मुफ्त बिजली, किसानों को लोन माफी और महिलाओं को 1000 रुपये देने जैसे वादों का भी बड़ा रोल रहा था। बताया जा रहा है कि इन वादों को पूरा करने के लिए पंजाब सरकार आज भी बजट का इंतजाम नहीं कर पाई है। अब भगवंत मान सरकार के लिए चुनावी वादे ही गले की हड्डी बन गए हैं। किसानों की मीटिंग से निकलने के बाद भगवंत मान ने कहा कि उनकी सरकार को सिर्फ किसानों का ही नहीं बल्कि सभी 3.5 करोड़ पंजाबियों के हितों का भी ध्यान रखना है। उनका कहना था कि प्रदर्शनों से व्यापारियों, व्यवसायियों, छात्रों, कर्मचारियों एवं आमजन को अत्यधिक परेशानी हो रही है। पंजाब की अर्थव्यवस्था रसातल में जाने के साथ-साथ इसकी पहचान धरने वाले स्टेट की बनकर रह गई है। उनका कहना है कि वे किसानों से बातचीत करने को तैयार है लेकिन उन्हें (किसानों को) अराजकता फैलाने की छूट नहीं दी जा सकती।
जानकारों की माने तो दिल्ली में जब अरविंद केजरीवाल की सरकार थी, तब किसान आंदोलन के लिए उन्होंने दिल्ली को केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ मंच की तरह इस्तेमाल किया था। अब दिल्ली में सरकार बदल चुकी है। हरियाणा सरकार ने भी रास्ता बंद कर दिया है। ऐसे में किसानों के पास चंडीगढ़ में ही आंदोलन का नया स्टेज बनाने की मजबूरी है। अगर चंडीगढ़ में एक बार किसानों का धरना शुरू हो गया तो केंद्र के बजाय भगवंत मान सरकार निशाने पर आ जाएगी। वहां आम लोगों के लिए आंदोलन से होने वाली परेशानियों का बोझ उठाना भी आसान नहीं है। अब किसान आंदोलन को पहले जैसा राजनेताओं का समर्थन हासिल नहीं है। पंजाब में चुनावी साल होने के कारण किसान आंदोलन का लम्बे समय तक चलना मान सरकार के लिए किसी भी स्तर पर हितकर नहीं है।
वैसे भी दिल्ली में ‘आप’ सरकार नहीं रहने से समय-समय पर चिल्लाने वाले नेताओं की आवाज़ अब बंद हो गई है। यही नहीं, केन्द्र सरकार को कोसने के बहाने जो पार्टियां ‘आप’ नेताओं को प्रोटेक्शन देती थी, उनके सुरों में भी परिवर्तन देखा जा रहा है। ऐसे में जो कुछ करना होगा, भगवंत मान को ही करना होगा। लोगों का कहना है कि पंजाब सरकार यदि किसानों की कर्ज माफी और इलेक्ट्रॉनिक बिजली के मीटर पर फैसला लेने की मांग पर अड़े है, को मानती है तो उन्हें पूरा करना बहुत ही मुश्किल हैं। यदि नहीं करती है तो किसानों का लम्बा होता विरोध पंजाब की अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह खा रहा है।