किसानों की हालत में कैसे सुधार किया जाए ? 

कृषि की हालत दयनीय है। खर्च बढ़ रहा है। उपज की कीमत उसके अनुसार नहीं बढ़ रही। परिणामस्वरूप किसानों की आय कम होती जा रही है। गेहूं-धान का फसली चक्र ही प्रधान है। प्राकृतिक स्रोतों का समुचित इस्तेमाल नहीं हो रहा। गेहूं-धान के फसली चक्र के कारण भू-जल का स्तर कम हो जाने से नई समस्याएं उभर कर सामने आ रही हैं। इन फसलों के लिए भूमि पर खाद एवं कीटनाशकों का इस्तेमाल भी अधिक हो रहा है। भूमि पर इनके दुष्प्रभाव दिखाई दे रहे हैं। बासमती में मंदी के कारण इसकी काश्त का रकबा कम होने की सम्भावना दिखाई दे रही है। निश्चित ही यह रकबा धान की काश्त के अधीन चला जाएगा, क्योंकि किसानों के पास इसके मुकाबले इतना ही लाभदायक कोई विकल्प नहीं। किसानों की मशीनरी पर लागत सीमा से अधिक बढ़ चुकी है। पंजाब में 65 प्रतिशत से अधिक छोटे खेत हैं, परन्तु यहां ट्रैक्टरों की संख्या बहुत अधिक है, जो बहुत महंगे पड़ते हैं।
इसके अतिरिक्त मौसमी बदलाव किसानों के लिए सबसे बड़ा खलनायक बन कर आया है। गेहूं व धान का उत्पादन वहीं खड़ा है। भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है। सहकारी सेवा सोसायटियां ज़रूरतमंद किसानों को समय पर औज़ार व मशीनरी उपलब्ध नहीं करवातीं। वास्तव में किराये पर मशीनरी लेकर काम चलाने की परम्परा ने पंजाब में ज़ोर ही नहीं पकड़ा। सहकारी सेवा केन्द्र तथा किसान एग्रो केन्द्र ऐसी सेवा देने के लिए किसानों के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं हुए। सहकारी सभाओं का क्षेत्र खाद तथा ऋण के वितरण तक सीमित है। अनेक स्थानों पर जैसे पटियाला ज़िला में विगत 8 वर्षों से सहकारी सोसायटियों में ‘सीमा ऋण’ (ऋण की लिमिट) ही नहीं बने, जिस कारण नये सदस्यों को ऋण की सुविधा सहकारी सभाओं से नहीं मिल रही। छोटे तथा भूमिहीन किसान कृषि में काम आने वाली सामग्री उधार लेकर अपना काम चलाते हैं और इसके लिए दुकानदारों, आढ़तियों व व्यापारियों पर निर्भर हैं। व्यापारिक बैंकों तक छोटे व भूमिहीन किसानों की पहुंच बहुत कम होती है।
इन सभी समस्याओं को हल करने के लिए किसानों में कृषि ज्ञान एवं विज्ञान बढ़ाने की ज़रूरत है। कृषि प्रसार सेवा जो सब्ज़ इंकलाब शुरू होते समय किसानों के पास खेतों में पहुंचती थी, अब ब्लाकों व कृषि विभाग के कार्यालयों तक ही सीमित है। नई तकनीक, अनुसंधान तथा नए बीज दूरवर्ती गांवों में विशेषकर छोटे किसानों तक अभी भी नहीं पहुंच रहे। इसीलिए अलग-अलग किसानों द्वारा विभिन्न गांवों में प्राप्त किया जा रहा फसलों का प्रति एकड़ उत्पादन अलग-अलग है। पी.ए.यू. तथा कृषि विभाग द्वारा किसान मेले तथा किसान प्रशिक्षण शिविर लगाए जा रहे हैं, परन्तु उनमें प्रत्येक वर्ष वही पहले वाले चेहरे पहुंचे दिखाई देते हैं। जो किसान नये ज्ञान, विज्ञान से वंचित रह गए, उनकी इन मेलों तक पहुंच नहीं होती। ऐसे किसानों का ज्ञान एवं आय बढ़ाने के लिए उन्हें गांवों में ही नई कृषि अनुसंधान एवं कृषि प्रसार सेवा पहुंचानी चाहिए। 
चाहे पंजाब का उत्पादन देश के दूसरे राज्यों से अधिक है, परन्तु यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कम है। चीन की अनाज की उपज भारत से कहीं अधिक है जबकि काश्त के अधीन रकबा कम है। चीन की कृषि क्षेत्र में आश्चर्यजनक उपलब्धि का राज़ उसके द्वारा किसानों को दी गई सहायता का स्तर है। पंजाब तथा भारत में कीमियाई खाद, मशीनरी, पानी आदि पर दी जा रही सब्सिडियां चीन द्वारा अपने किसानों को दी जा रही सहायता से बहुत कम है, जो यहां उपज का सरकारी मूल्य निर्धारित किया जा रहा है, वह भी चीन से कम है। किसानों को केन्द्र द्वारा उचित सहायता दिये जाने की ज़रूरत है। बासमती का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाना बहुत ज़रूरी है ताकि धान की काश्त का कुछ रकबा कम हो और बासमती के माध्यम से किसानों की आय में कुछ वृद्धि हो। भारत में तैयार किए जा रहे एग्रोकैमिकल्स विदेशों को निर्यात किए जा रहे हैं। इस निर्यात को बढ़ा कर और अधिक विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है, जो कृषि के विकास हेतु काम आएगी। जो कृषि अनुसंधान में कमी आई है, उसे बढ़ाने करने के लिए केन्द्र को पी.ए.यू. तथा आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई. जैसी अनुसंधान संस्थाओं को अधिक आर्थिक सहायता देकर अनुसंधान को मज़बूत करना चाहिए। इस प्रकार किसानों की दयनीय हालत में सुधार आ सकता है और कृषि संकट को दूर किया जा सकता है। 

#किसानों की हालत में कैसे सुधार किया जाए ?