त्याग की भावना दिखाएं

विगत दशकों में अनेक अकाली दल बने परन्तु इनमें सिर्फ शिरोमणि अकाली दल (ब) ही ऐसा अकाली दल था, जिसे लोगों का अधिक समर्थन मिला तथा वह लम्बी अवधि तक पंजाब की राजनीति में भारी रहा। इस हैसियत से यह स्वयं को लगभग 105 वर्ष पहले बने अकाली दल का प्रतिनिधि भी कहलाता रहा है। इसने बहुत लम्बा स़फर तय किया है। समय-समय पर इसके नेतृत्व में आपसी विवाद भी बने रहे। आपसी नाराज़गियां भी हुईं और पार्टी में कई गुट भी बनते रहे, परन्तु हर समय और कठिन परिस्थितियों में इससे पंथ और पंजाब के हितों की रक्षा की उम्मीद की जाती रही है। चाहे राजनीतिक तौर पर इसने अपना दायरा और बढ़ा कर पार्टी को पंथक हितों के साथ-साथ साझी पंजाबीयत की प्रतिनिधिता करने वाला संगठन होने की घोषणा भी कर दी थी। ऐतिहासिक शिरोमणि कमेटी से एक तरह से इसका संबंध अनभिज्ञ बना रहा। शिरोमणि कमेटी के ज्यादातर सदस्य अकाली दल की व़फादारी का दम भरते रहे हैं, वह इसके प्रतिनिधियों के रूप में ही चुने जाते रहे हैं। कई बार इसे पंजाब पर शासन करने का अवसर मिला।
 विगत लम्बी अवधि इसने राष्ट्रीय और प्रदेश की राजनीति में भाजपा के साथ साझेदारी भी बनाए रखी। स. प्रकाश सिंह बादल वरिष्ठ नेता के रूप में उभरे। बहुसंख्यक पंजाबियों ने उनमें अपना विश्वास जताया और वह 5 बार मुख्यमंत्री भी बने। उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में पंजाब के विकास के लिए अनेक कार्यों को पूरा किया। धार्मिक क्षेत्र में उनकी ओर से करवाए गए कार्यों को भी भुलाया नहीं जा सकता। उनके इसी क्षेत्र में योगदान के कारण ही उन्हें श्री अकाल तख्त साहिब से ‘पंथ रत्न’ के ़िखताब से नवाज़ा गया था। लम्बी अवधि तक प्रशासन चलाने के कारण अनेक गलतियां भी हो जाती हैं और नमोशी भी सहन करती पड़ती है, परन्तु स. बादल की नम्रता, समर्पण और अपने लोगों के साथ जुड़े रहने की इच्छा ने उन्हें लम्बी अवधि तक राजनीति और धार्मिक क्षेत्रों में प्रासंगिक बनाए रखा। इस पूरे समय में उनके अनेक साथी भी उनके साथ प्रत्येक पक्ष से जुड़े रहे। 
वह समय-समय पर पैदा होने वाले विवादों को समेटने के सामर्थ्य थे, परन्तु अपने अंतिम समय में अपने पूरे यत्नों के बावजूद भी वह एक तरह से प्रभावहीन दिखाई देने लगे थे। नि:संदेह अपनी राजनीतिक विरासत का वह सुखबीर सिंह बादल को उत्तराधिकारी बनाने के इच्छुक रहे। ऐसे यत्न वह करते भी रहे, परन्तु उनकी ओर से उठाए गए कई कदमों ने जहां उनके राजनीतिक प्रभाव को कम किया, वहीं उनकी छवि भी धूमिल होने लगी और ऐसे विवाद उनके लिए भारी अवसान वाले सिद्ध हुए। उनके निधन के बाद पैदा हुई समूची स्थिति को देखते हुए मौजूदा नेतृत्व को अकाली दल को पुन: मज़बूत करने के लिए नई योजनाबंदी करने की ज़रूरत थी, जिसमें कि वह असमर्थ रहा और वह पंथक भावनाओं की तज़र्मानी से भी पिछड़ गया। सुखबीर सिंह बादल पार्टी के प्रधान थे। उनसे यह उम्मीद की जाती थी कि वह बड़ी सीमा तक कार्यकर्ताओं के टूटे विश्वास को पुन: स्थापित करने में सहायक होंगे, परन्तु ऐसा न हो सका। इसके बावजूद उनकी पार्टी का प्रधान बने रहने की हठ ने पार्टी के समूचे ढांचे को ही हिला कर रख दिया। वह हालात को समझने में असमर्थ रहे। अंतत: जहां उनके ज्यादातर साथी निराश हो गए, वहीं अकाली दल के कार्यकर्ताओं के हौसले भी एक तरह से गिर गए। इस समय उनसे जिस तरह के समर्पण और त्याग की उम्मीद की जाती थी, उस पर पूरा न उतर सके, जिस कारण विगत लम्बी अवधि में पंथक परम्पराओं और उच्च धार्मिक संस्थाओं को भी नुक्सान पहुंचा।
विगत दिवस शिरोमणि कमेटी की कार्यकारिणी कमेटी द्वारा तख़्त साहिबान के जत्थेदारों को उनके  पद से जिस तरीके से उतारा गया, उससे जत्थेदार साहिबान के पदों की छवि भी धूमिल हुई और धार्मिक क्षेत्र में उठा विवाद भी और गहरा हो गया। ऐसे हालात में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी भी अपनी छवि गंवा चुकी है। निराश होकर इसके प्रधान ने त्याग-पत्र दे दिया है। अकाली कतारों में बड़ी सीमा तक निराशा के साथ-साथ ऐसी बगावत भी उठ खड़ी हुई है, जिसे सम्भाल पाना बेहद कठिन प्रतीत होता है। आज गम्भीर होकर सोचने वाली बात यह है कि इस संकट में से कैसे निकला जा सके और वर्षों से स्थापित शानदार परम्पराओं को किस तरह पुन: बहाल किया जा सके? इसलिए आज के नेतृत्व से लोग त्याग की भावना की उम्मीद कर रहे हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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