डॉलर का प्रभुत्व बनाए रखना अमरीका के लिए बन रहा चुनौती
चीन दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनना चाहता है और ऐसा वह उस अमरीका की कीमत पर करना चाहता है जिसने उसके नवनिर्माण और समुत्थान में महती भूमिका निभाई है। हालांकि अमरीका भी इसे भली-भांति समझ चुका है और विभिन्न परिस्थितियों से निपटने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और विदेश मंत्री मार्को रूबियो के डॉलर की चिंता और उसके लिए ज़िम्मेदार चीन सम्बन्धी हालिया बयानों पर जब आप गौर करेंगे तो यह समझ जाएंगे कि अमरीका की चिंता सिर्फ डॉलर की गिरती साख को ही बचाने की नहीं है, बल्कि वह सोवियत संघ की भांति ही अब चीन को भी निबटाने की रणनीति पर ध्यान केन्द्रित कर चुका है।
ऐसे में सुलगता सवाल यह है कि क्या अमरीका सिर्फ डॉलर के दम पर चीन से निबटेगा या फिर कुछ अन्य उपाय भी करेगा। उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमरीकी डॉलर की जगह किसी और मुद्रा के इस्तेमाल की कवायद जिस तरह से चीन कर या करवा रहा है और इस नज़रिए से ब्रिक्स देशों को ढाल बनाए हुए है, उससे अमरीका भड़क चुका है और सम्बन्धित देशों को चेतावनियां देनी भी शुरू कर दी हैं। चीन के खिलाफ ताइवान का हथकंडा और दक्षिण चीन सागर विवाद को बढ़ना और रूस के खिलाफ यूक्रेन को भड़काते रहने और नाटो देशों से सहयोग दिलवाने के पीछे की व्यापक रणनीति भी तो इसी बात का संकेत है। ब्रिक्स देशों की सम्भावित वैकल्पिक मुद्रा से डॉलर के समक्ष उतपन्न होने वाले खतरे के सम्भावित दुष्परिणामों के बारे में अमरीका ने जिस तरह से आगाह करना शुरू कर दिया है, उससे भारत समेत कतिपय ब्रिक्स देश भी सकते में हैं, आशंकित हैं और अपने बचाव में तर्क भी दे चुके हैं।
गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में जब ब्रिक्स के कुछ सदस्य देश विशेष रूप से चीन-रूस अमरीकी डॉलर का विकल्प या ब्रिक्स मुद्रा की मांग कर रहे हैं, तब भारत ‘डी.डॉलराइजेशन’ यानी ‘विश्व व्यापार और वित्तीय लेन-देन में डॉलर के उपयोग में कमी’ के खिलाफ है। दिसम्बर 2024 में ही भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि भारत कभी भी ‘डी.डॉलराइजेशन’ के पक्ष में नहीं रहा है व ब्रिक्स मुद्रा बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
बता दें कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चेतावनी दी है कि अगर ब्रिक्स देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमरीकी डॉलर की जगह किसी और मुद्रा के इस्तेमाल का प्रयास करेंगे तो वह उन पर 100 प्रतिशत शुल्क लगा देंगे। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि ब्रिक्स देश डॉलर से दूर जाने की कोशिश करें और हम खड़े होकर बस देखते रहें, इस तरह के विचारों के दिन लद चुके हैं। लिहाजा, वह ब्रिक्स देशों से यह प्रतिबद्धता चाहते हैं कि वे न तो नई मुद्रा बनाएंगे और न ही किसी अन्य मुद्रा का समर्थन करेंगे। वहीं, अमरीका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भी कहा है कि इस मसले पर चीन से हमें निबटना होगा। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया है कि हम इस मुद्दे पर युद्ध नहीं चाहते हैं, लेकिन हम इस पर गौर करने जा रहे हैं क्योंकि चीन दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनना चाहता है और वह ऐसा हमारी कीमत पर करना चाहते हैं। इससे निपटना होगा। बता दें कि चीन की वैश्विक रणनीति को लेकर अमरीका अब सजग हो चुका है और आर्कटिक व दक्षिण अमरीका में चीनी गतिविधियों से उतपन्न खतरे को निर्मूल करने के लिए ही ग्रीनलैंड पर कब्ज़ा करने, पनामा नहर पर पुन: नियंत्रण पाने और कनाडा को अमरीका में मिलाने जैसी दूरदर्शिता भरी रणनीति का आगाज़ समय रहते ही कर चुका है, भले ही वह पहले जितना आसान नहीं हो।
जानकार बताते हैं कि रूस-चीन-ब्राज़ील जैसे ब्रिक्स देश अमरीकी डॉलर और यूरो पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं। इसी नज़रिए से साल 2022 में 14वें ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि सदस्य देश नई रिज़र्व करंसी शुरू करने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने भी डॉलर के प्रभुत्व को कम करने के लिए ब्रिक्स करंसी बनाने का सुझाव दिया था, क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि वैश्विक मुद्रा भंडार के रूप में डॉलर का हिस्सा 59 प्रतिशत है जबकि दुनिया के कुल कज़र् में 64 प्रतिशत का लेन-देन डॉलर में होता है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में भी डॉलर की 58 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
खास बात यह है कि यूरोपीय संघ बनने और उसकी मुद्रा यूरो के अस्तित्व में आने के बाद से डॉलर के दबदबे में कमी आई है, लेकिन अभी भी यह सबसे अधिक चलन वाली मुद्रा बना हुआ है। ऐसे में यदि ब्रिक्स देश भी कोई नई मुद्रा ले आते हैं तो इससे डॉलर का मूल्य घटेगा। शायद इसलिए अमरीका अब सतर्क हो चुका है और इस नए सम्भावित संकट से निबटने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति अख्तियार कर लिया है। उसकी ताज़ा चेतावनियां इसी बात का संकेत हैं। ब्रिक्स देशों के बीच भारत के परिवर्तित स्टैंड से भी उसे राहत मिली है। (युवराज)