बिहार में पार्टी का आधार मज़बूत करने में जुटे राहुल

बिहार में विधानसभा चुनाव से पूर्व राहुल गांधी कांग्रेस का आधार मजबूत करने की कवायद में भिड़ गए हैं। बिहार में इस साल अक्तूबर-नवम्बर में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसे लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां चुनावी रणनीति तैयार करने में जुटी हुई हैं। एक तरफ  राज्य के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ‘प्रगति यात्रा’ के माध्यम से एक बार फिर अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ  तेजस्वी यादव भी ‘कार्यकर्ता दर्शन सह संवाद’ कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश के अलग-अलग जिलों में जाकर पार्टी को मज़बूत करने में जुटे हैं। इसी बीच कांग्रेस भी चुनावी रणनीति के तहत कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। इसी वजह से राहुल गांधी को 18 दिनों के अंतराल में दूसरी बार बिहार दौरे पर गए। कांग्रेस बिहार में अपना खोया हुआ आधार हासिल करना चाहती है, इसलिए राहुल गांधी भी बिहार को लेकर काफी सक्रिय हैं। कांग्रेस पिछड़े और दलित वोटरों को लुभाने पर ज़ोर दे रही है।
पिछले दिनों पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन में भी राज्यभर के दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछले वर्ग के लोग शामिल हुए थे। जगलाल चौधरी जयंती समारोह को भी कांग्रेस की चुनावी रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है। जातीय जनगणना के सवाल पर लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी के बिहार में लगातार सक्रिय होने की स्थिति में राष्ट्रीय जनता दल असहज महसूस करने लगी है। इसकी मूल बजह है कि राष्ट्रीय जनता दल इसका श्रेय स्वयं ले रहा है। राहल गांधी बिहार के जातीय जनगणना को फर्जी करार दे रहे हैं। पटना के श्री कृष्ण ममोरियल हॉल में आयोजित जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती समारोह में राहुल गांधी शामिल हुए। उन्होंने केंद्र सरकार और आरएसएस पर निशाना साधते हुए दलितों को साधने की भरपूर कोशिश की। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि लोकसभा का सांसद एक निर्णय नहीं ले सकता। 
राहुल ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आप निजी अस्पताल में जाते हैं तो वह पूंजीपतियों का है। इनको सरकारी ज़मीन दी जाती है। 
बिहार में पिछले कुछ समय से कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो राष्ट्रीय जनता दल ने कुल 243 में 144 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 75 सीटें जीतकर राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनी थी लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन सवालों के घेरे में था। कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव ज़रूर लड़ा था, लेकिन जीत सिर्फ 19 सीटों पर मिली थी। तब महागठबंधन में भी यह प्रदर्शन मुद्दा बना था। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार वीआईपी के मुकेश साहनी तेजस्वी यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं, तो कुछ सीटें वीआईपी के खाते में जा सकती हैं, तो क्या ये सीटें कांग्रेस के खाते से काट कर दी जाएगी? कांग्रेस की पूरी जद्दोजहद महागठबंधन में सम्मानजनक स्थान पाने और बिहार में अपनी खोया हुआ राजनीतिक आधार मजबूत करने के लिए है। (युवराज)

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