आज भी न्यूनतम मज़दूरी से कम है आम आदमी की आय

निश्चित तौर से राज्य एवं केन्द्र की सरकार आम आदमी को मूलभूत सुविधाएं देने का दावा करती है। यह दावा कितना सच होता है सभी जानते हैं। आज़ादी के इतने सालों बाद भी आम आदमी का जीवन बहुत कठिन दौर से गुज़र रहा है। सरकारी की मुफ्त खाद्यान्न, मुफ्त आवास जैसी तमाम योजनाओं के बावजूद आम आदमी आज भी प्रति व्यक्ति आय सरकार की न्यूनतम मज़दूरी से कम है। यही कारण है कि बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए रिज़र्व बैंक कई बार रेपो दर में कटौती कर चुका है लेकिन इसका व्यापक असर नहीं दिख रहा है। केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों ने रोज़गार देने के नाम पर लाखों लोगों को जो ठेका प्रथा के तहत नौकरी दी है, उनका स्थिति अच्छी नहीं है। एक ही तरह के कार्य के लिए सरकार द्वारा अलग-अलग तरह के अल्प मानदेय का भुगतान किया जा रहा है। लाखों की संख्या तो ऐसी है जिन्हें सरकार की जानकारी में ठेकेदारों के माध्यम से सरकारी सेवा पर दस हजार रुपये से कम मासिक मानदेय दिया जा रहा है जबकि केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम मज़दूरी दरों में बढ़ोतरी की जा चुकी है। ये नई दरें 1 अक्तूबर, 2024 से लागू हो गई हैं। इन दरों के मुताबिक अकुशल श्रमिकों को 783 रुपये प्रति दिन, अर्ध-कुशल श्रमिकों को 868 रुपये प्रति दिन, कुशल श्रमिकों को 954 रुपये प्रति दिन, और हथियारबंद निगरानी कर्मियों को 1,035 रुपये प्रति दिन मिलेंगे। इसका अनुपालन नहीं हो पा रहा है। जब सरकार की नाक के नीचे यह हाल है तो निजी प्रतिष्ठानों, कम्पनियों, निजी सामान्य सेवाओं में आम मज़दूरों की हालत क्या होगी इसका अनुमान स्वंय लगाया जा सकता है। सरकार को यह बात अच्छे से समझनी होगी की उसके मानक का पैमाना पांच फीसदी उच्च वेतनमान पाने वाले कर्मचारी अधिकारी, पांच प्रतिशत व्यापारी और पांच प्रतिशत धनी लोगों के आधार पर न होकर उसका पैमाना 75 प्रतिशत आम आदमी होना चाहिए।  वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी से इन्कार नहीं किया जा सकता, लेकिन न्यूनतम मज़दूरी को लेकर अगर सरकार सख्त कदम नहीं उठायेगी तो निश्चित तौर पर बाज़ार में सुस्ती और मांग की कमी को रोकना बहुत मुश्किल होगा। यही नही देश में पटरी, रेहड़ी आदि के माध्यम से चाय, पान, सब्ज़ी आदि बेचने वालों की संख्या करोड़ों के आसपास होगी। उनमें से अधिकतर मासिक आय भी न्यूनतम से कम है इसके लिए वे दोषी नहीं बल्कि सरकार की अनदेखी है। कारण स्पष्ट है कि इन लोगों के सामने कभी पुलिस, कभी नगर निगम तो कभी जिला प्रशासन की अतिक्रमण हटाओ जैसी व्यवस्था के चलते इनका व्यवसाय आए दिन प्रभावित रहता है। 
बहरहाल कोरोना काल के बाद से आम आदमी के जीवन में बढ़ती मुश्किलों के बीच बाज़ार में छाई मंदी और महंगाई पर लगाम लगाने के प्रयास जारी है। बाज़ार में छाई सुस्ती और मांग में कमी आने की वजह केवल ऊंची रेपो दर नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी है। कोरोना की तालबंदी के बाद बाज़ार तेज़ी से पटरी पर तो लौटा, मगर लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी नहीं हो पाई। भारतीय रिज़र्व बैंक ने आखिरकार लंबे इंतजार के बाद रेपो दर में पच्चीस आधार अंक की कटौती की है। करीब पांच वर्ष पहले चालीस आधार अंक की कटौती की गई थी, जिससे ब्याज  दर चार फीसदी पर पहुंच गई थी। मगर बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के मकसद से तीन वर्ष पहले थोड़े-थोड़े अंतराल पर पांच बार पच्चीस-पच्चीस आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई, जिससे ब्याज दर साढ़े छह फीसदी पर पहुंच गई। तब से यह दर इसी स्तर पर बनी हुई थी। 
देखने की बात है कि केवल पच्चीस आधार अंक की कटौती से बाजार में छाई सुस्ती कितनी टूट पाएगी? सबसे चिंता की बात पिछले कुछ समय से विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट बनी हुई थी। जिस विनिर्माण क्षेत्र के बल पर सकल घरेलू उत्पादन ऊंचा बना हुआ था, वह मांग घटने की वजह से तीन फीसदी के आसपास सिमट गया है। तेज़ी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद की बिक्री पर भी बुरा असर देखा जाने लगा है। ऐसे में रेपो दर में कटौती का कुछ अच्छा असर विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ने की उम्मीद है।
रेपो दर में कटौती से ज़रूर लोगों की जेब पर पड़ने वाला बोझ कुछ कम होगा, मगर पच्चीस आधार अंक की कटौती इतनी मामूली है कि वह लोगों के उपभोग व्यय के रूप में रूपांतरित हो पाएगी, कहना मुश्किल है। बहरहाल में केन्द्र सरकार की गलत नीतियों के कारण लगातार बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई ने निम्न और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए जीवन को को बहुत कठिन कर दिया है। वास्तविक विकास तब होगा, जब हर कोई प्रगति करेगा। व्यापार के लिए उचित माहौल होता है, निष्पक्ष कर प्रणाली होती है और श्रमिकों की आय बढ़ती है। कृषि क्षेत्र में गलत नीतियों ने किसान और खेत मज़दूर की स्थिति बदहाल की है। वे मुश्किल से अपना गुज़ारा कर पा रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में श्रमिकों की वास्तविक आमदनी या तो स्थिर है या कम हुई है। वास्तविक विकास वह है जहां सबकी उन्नति हो। व्यापार के लिए निष्पक्ष माहौल मिले, उचित टैक्स सिस्टम हो और श्रमिकों की आमदनी बढ़े। इससे ही देश समृद्ध और मजबूत बनेगा।

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