दिल्ली में मिली हार के बावजूद ‘आप’ एक राजनीतिक ताकत बनी रहेगी

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार और भाजपा के हाथों सत्ता गंवाने के बावजूद ‘आप’ एक राजनीतिक ताकत बनी रहेगी। आप का विशाल मतदाता समर्थन आधार बरकरार है और चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि भाजपा केवल 1.99 प्रतिशत वोटों के मामूली अंतर से जीत सकी है जो आप की स्थानीय और राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को जीवित रखेगा। ‘आप’ और उसके सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के अनिश्चित राजनीतिक भविष्य, उनके अन्त की शुरुआत, मतदाताओं और भारतीय समुदाय के बीच उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता में कमी और उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के टूटने की भविष्यवाणी करने वाले राजनीतिक विश्लेषक शायद अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। 
दिल्ली चुनाव परिणाम के अंतिम आंकड़ों से पता चलता है कि ‘आप’ को 43.57 प्रतिशत वोट मिले, जबकि भाजपा को 45.56 प्रतिशत। मात्र 1.99 प्रतिशत के मामूली अंतर से ‘आप’ को हुआ यह नुकसान दर्शाता है कि ‘आप’ भाजपा के अत्यंत शक्तिशाली राजनीतिक और प्रशासनिक जाल में फंसने के बावजूद शानदार प्रदर्शन कर सकी है। चुनाव प्रचार के दौरान ‘आप’ आरोप लगाती रही है कि दिल्ली पुलिस और भाजपा के गुंडों द्वारा उनके कार्यकर्ताओं को डराया-धमकाया जा रहा है, केंद्रीय जांच एजेंसियां उन्हें निशाना बना रही हैं, उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के अधिकारी उनके खिलाफ काम कर रहे हैं और चुनाव मशीनरी उन्हें निशाना बना रही है, जो अभी भी जांच के विषय हैं।
‘आप’ इसके सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और पार्टी के कई नेताओं को पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था, हालांकि वे सभी जमानत पर थे। न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा नेतृत्व, बल्कि कांग्रेस नेताओं, यहां तक कि राहुल गांधी ने भी केजरीवाल और उनकी पार्टी को भ्रष्ट बताते हुए निशाना बनाया। अगर वोटों के प्रतिशत को देखें तो ‘आप’ को ऐसे राजनीतिक हमलों के बावजूद अपना विशाल जनाधार बचाने में सफल रही है।
चुनाव हारने के बावजूद केजरीवाल ने दिल्ली में एक राजनीतिक नायक के रूप में अपनी स्थिति को बचाए रखा है, जिन्होंने भाजपा नेतृत्व खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कड़ी चुनावी टक्कर दी जो केजरीवाल और ‘आप’ के खिलाफ प्रचार करते रहे हैं। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, तो उसे केवल 6.34 प्रतिशत वोट ही मिल पाये, जोकि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में पार्टी को मिले वोटों की तुलना में लगभग दो प्रतिशत की मामूली वृद्धि है। दिल्ली में कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी का प्रभाव नगण्य है।
इस प्रकार दिल्ली चुनाव परिणाम से पता चलता है कि ‘आप’ और केजरीवाल अभी भी सबसे बड़ी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक ताकत हैं और भाजपा शासन और उसके सांप्रदायिक राजनीतिक एजंडे के मुख्य विपक्ष हैं। इसलिए देश की धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक संघीय राजनीति में, ‘आप’ स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत बनी रहेगी।
‘आप’ का बहुत बड़ा वोट शेयर यह भी दर्शाता है कि लोगों के कल्याण के लिए केजरीवाल का राजनीतिक रुख सही दिशा में और अटल था। भाजपा ने वास्तव में सामाजिक कल्याण योजनाओं के संबंध में वायदे करने की ‘आप’ की लाइन का पालन किया है। भाजपा ने आप से ज्यादा का वादा किया और दिल्ली में ‘आप’ की सभी कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने का भी वायदा किया। ‘आप’ की राजनीति देश के सभी राज्यों में आम लोगों और गैर-भाजपा राजनीतिक दलों को ‘आप’ की ओर आकर्षित करना जारी रखेगी। पंजाब, गोवा और गुजरात जैसे राज्यों में गैर-भाजपा मतदाताओं के पास आप का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। इस प्रकार दिल्ली में सत्ता खोने से भी ‘आप’ की राष्ट्रीय आकांक्षाएं प्रभावित नहीं होंगी।
कांग्रेस की राजनीतिक हार से ‘आप’ की राष्ट्रीय आकांक्षाएं व मजबूत होंगी। कांग्रेस लगभग उन सभी राज्यों में हार गयी जहां उसका सीधा मुकाबला भाजपा से था। जिन प्रमुख राज्यों में पार्टी हारी, वे छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा थे। महाराष्ट्र और दिल्ली के हालिया चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन दयनीय रहा। जिस कटुता के साथ कांग्रेस और ‘आप’ ने दिल्ली चुनाव लड़ा, वह निकट भविष्य में उन्हें हाथ मिलाने से रोकेगा। ‘आप’ उन राज्यों में अपना ध्यान केंद्रित करने की पूरी कोशिश करेगी जहां कांग्रेस की राजनीतिक ताकत कम हो रही है। कांग्रेस दिल्ली और पंजाब में अपनी राजनीतिक किस्मत बदलने की स्थिति में नहीं है। ‘आप’ के पास दिल्ली में वापसी करने और पंजाब में बढ़त बनाये रखने की पूरी संभावना है।
जहां तक इंडिया ब्लॉक की बात है, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (यूबीटी) और तृणमूल कांग्रेस जैसे प्रमुख गैर-कांग्रेसी सहयोगी ‘आप’ का समर्थन कर रहे थे। वास्तव में देश का कोई भी राजनीतिक दल दिल्ली या पंजाब में ‘आप’ और केजरीवाल को नज़रअंदाज नहीं कर सकता। दोनों राज्यों में ‘आप’ कांग्रेस पर अपना दबदबा बनाये रखना चाहती है। दिल्ली में भाजपा के मुख्य विपक्षी दल के रूप में आप की प्रासंगिकता बरकरार है। (संवाद)

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