भूमिहीन तथा पट्टेदार किसानों की हालत में सुधार लाया जाए

कृषि गम्भीर संकट में है। किसानों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है। बड़े किसानों की आर्थिक मंदहाली के कारण तो सामाजिक एवं विवाह-शादियों आदि पर अपनी समर्था से अधिक खर्च करना तथा स्वयं कृषि के काम करना बिल्कुल छोड़ देना और युवा पीढ़ी के कृषि को छोड़ कर नशों के आदी होकर प्रतिदिन शहरों के चक्कर लगाना एवं विदेश जाने के सपने लेते रहना आदि हैं। छोटे किसानों के लिए तो समूचे रूप में ही कृषि व्यवसाय लाभदायक नहीं। उनके खेत छोटे हैं। उनकी कृषि मशीनरी, जिसमें ट्रैक्टर तथा महंगे औज़ार शामिल हैं तथा अन्य साधनों पर काफी लागत लगी हुई है। फिर उनके पास नये अनुसंधान का कृषि विज्ञान भी नहीं पहुंचा, जिस कारण कृषि से उनकी शुद्ध आय कम होती जा रही है। कृषि सामग्री की कीमतें लगातार बढ़ने तथा फसलों के दाम स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर न मिलना भी उनकी कमज़ोर आर्थिक हालत के लिए ज़िम्मेदार हैं। भूमिहीन खेत मज़दूरों, कृषि क्षेत्र में रोज़ी कमा रहे श्रमिकों एवं पट्टेदारों की हालत तो और भी दयनीय है।
जिन छोटे तथा भूमिहीन किसानों ने ज़मीन ठेके पर ली हुई है, उनकी हालत बहुत गम्भीर है। वह 50 से 60 हज़ार रुपये प्रति एकड़ का ठेका दे रहे हैं। इस श्रेणी के कृषि करने वालों संबंधी गत शताब्दी के 50वें दशक से जब प्रदर्शन प्रणाली शुरू की गई थी, उसके बाद कोई विशेष भूमि सुधार नहीं हुआ। ठेके पर ज़मीन लेने वालों को कोई कानूनी दस्तावेज़ नहीं मिलता, जिसके आधार पर वे बैंकों से कज़र् ले सकें। वे आढ़तियों तथा बड़े साहूकारों, ज़िमींदारों पर निर्भर हैं। जहां इन्हें ऊंची ब्याज दरों पर कृषि संबंधी ज़रूरतें पूरी करने के लिए कज़र् लेना पड़ता है। वे सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडियां भी नहीं ले रहे। इस श्रेणी के किसान अपनी मशीनरी भी नहीं खरीद सकते और किराए पर मशीनरी लेने की सुविधाएं उन्हें उपलब्ध नहीं। इसलिए उनका उत्पादन भी कम है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘पानी के तुपके से अधिक फसल (मोर क्रोप पर ड्राप)’, ‘हर खेत को पानी’ आदि कार्यक्रम बुलंद किए, परन्तु इस श्रेणी के किसान तो इस राहत से भी वंचित रहे। 
गत शताब्दी के दौरान सब्ज़ इंकलाब के आगाज़ के तुरंत बाद मुख्य बैंक स्टेट बैंक ऑफ पटियाला ने इस श्रेणी को बैंकिंग एवं कज़र् की सुविधाएं उपलब्ध करने के लिए पटियाला के निकट ननाणसू गांव को अपनाकर गांव के सभी किसानों, जिनमें भूमिहीन एवं ठेके पर ज़मीन लेने वाले भी शामिल थे, को कज़र् की सुविधाएं (दोनों घरेलू एवं कृषि खर्च के लिए) उपलब्ध करने संबंधी एक योजना ‘ननाणसू प्रोजैक्ट’ बनाकर इस श्रेणी के किसानों को सुविधाएं उपलब्ध कीं थी। पंचायत की शामलाट ज़मीन भूमिहीन किसानों को ठेके पर दिलाकर उन्हें रोज़गार उपलब्ध करवाया था। पंजाब राज्य बिजली बोर्ड के सहयोग से प्रत्येक खेत को सिंचाई के लिए ट्यूबवैल का पानी उपलब्ध किया गया। 
प्रोजैक्ट के तहत दवाइयां, खाद-बीज एवं छिड़काव की सुविधाएं उपलब्ध की गईं। दूसरे वर्ष ही उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। गांव के किसानों की आय बढ़ गई। ननाणसू प्रोजैक्ट के तहत लिए गए गांवों की हालत में सुधार आया। सब्ज़ इंकलाब के संस्थापक केन्द्र के कैबिनेट मंत्री सुब्रमणियम ने ‘ननाणसू वे ऑफ फाइनांस’ का समर्थन करते हुए दूसरे बैंकों को ऐसे कज़र् देने की सिफारिश की। इस प्रोजैक्ट से भारत सरकार के कृषि आयुक्त स्वर्गीय डा. अमरीक सिंह चीमा तथा राज्य के कृषि निदेशक डा. गुरचरण सिंह कालकट लगातार जुड़े रहे और ननाणसू प्रोजैक्ट के आसपास वाले 11 अन्य गांवों को इस प्रोजैक्ट का लाभ पहुंचाया गया। कृषि प्रसार सेवा एवं विकास के लिए यह प्रोजैक्ट एक मॉडल बन कर उभरा, जिसके बारे कृषि बैंक के पूर्व चेयरमैन ननाणसू गांव के नम्बरदार जगजीत सिंह कहते हैं कि यदि कोआप्रेटिव बैंक भी ननाणसू प्रोजैक्ट जैसे प्रोजैक्ट बनाकर गांवों में शुरू करे तो गांवों का स्वरूप बदल सकता है। 
 परन्तु समय बीतने के साथ बैंकों का यह मॉडल प्रोजैक्ट बैंकों में ही ईर्ष्या एवं जलन के कारण बन कर खात्मे की ओर बढ़ गया। आज ज़रूरत है कि गांवों के कलस्टर एवं ग्रुप बना कर ननाणसू जैसे प्रोजैक्ट शुरू किए जाएं और प्रोजैक्ट में वर्तमान के अनुसार आवश्यक संशोधन करके छोटे एवं भूमिहीन किसानों, जो गरीबी के बोझ के नीचे दबे हुए हैं, की हालत में सुधार लाया जाए। इसके लिए उचित नीति अपनाने की ज़रूरत है।
इस श्रेणी की हालत में सुधार लाने के लिए ज़मीन के ठेके के नियम बनाए जाएं और किसानों को दस्तावेज़ उपलब्ध करवाए जाएं। इन दस्तावेज़ों को बैंक अपनी कज़र् प्रणाली में दस्तावेज़ के रूप में अपनाएं तथा इस श्रेणी को ज़रूरत अनुसार कज़र् देकर उनकी कृषि में सुधार लाएं। इस श्रेणी को कृषि सामग्री, मशीनरी, लाभदायक मंडीकरण तथा भंडारण की सुविधाएं भी उपलब्ध करने की ज़रूरत है और कृषि विभाग की प्रसार सेवा को इस श्रेणी तक ज्ञान एवं विज्ञान तथा नये बीज एवं तकनीक पहुंचा कर उनकी आर्थिक हालत में सुधार लाने की कोशिश करनी चाहिए। सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी एवं अर्थिक सहायता भी इस श्रेणी को विशेष तौर पर उपलब्ध करवाई जाए।

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