भारतीय अर्थव्यवस्था में लुढ़कते शेयर बाज़ार के मायने
भारतीय शेयर बाज़ार पिछले एक दशक में अब तक की सबसे ज्यादा गिरावट की तरफ लगातार मुखातिब हैं। यह स्थिति तब है, जब पिछले तीन साल में भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है। जब कोविड का संकट चला था, तब नकारात्मक आर्थिक वृद्धि दर के बावजूद भारतीय शेयर बाज़ार कुलांचे भर रहा था। पर भारतीय शेयर बाज़ार की अब की जो स्थितियां है, उसमें पिछले चार-पांच महीने से बीएसई के सूचकांक में करीब दस हज़ार अंकों की गिरावट दर्ज हो चुकी है। अगर भारतीय अर्थव्यवस्था की घरेलू राजनीतिक आर्थिक परिस्थितियों की बात करें, तो विशेष रूप से मोदी सरकार के दस सालों के कार्यकाल के दौरान बीएसई सूचकांक बीस बाज़ार से अस्सी बाज़ार अंक को पार किया। मगर सवाल ये है कि इसी सरकार में अभी की स्थितियां पलटती क्यों दिख रही हैं? इस प्रश्न का जवाब ये है कि भारतीय शेयर बाज़ार अभी घरेलू आर्थिक राजनीतिक परिस्थितियों से ज्यादा विदेशी व अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों से प्रभावित हो रहे हैं। पिछले एक साल में इज़रायल तथा हमास व हिजबुल्लाह के बीच चले भीषण युद्ध तथा पिछले तीन सालों से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध, अमरीका में सत्ता परिवर्तन तथा अब नये राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा अपनायी जा रही व्यापारिक संरक्षण की नीतियों के साथ साथ अमरीकी डालर का अंतर्राष्ट्रीय विनिमय मुद्रा के रूप में लगातार मजबूत होते जाना भारतीय शेयर बाज़ार को प्रभावित करता चला गया है।
इन सभी परिस्थतियों के मद्देनज़र तत्काल में भारतीय शेयर बाज़ार को गिरावट की ओर जिस कारक ने प्रमुख रूप से ढकेला है, वह है विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा भारतीय शेयर बाज़ार से अपने निवेश का लगातार खींचते जाना। एक अनुमान के मुताबिक अक्तूबर 2024 से विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाज़ारों से अब तक 1.56 लाख करोड़ के निवेश खींच लिये हैं, जिसमें अकेले वर्ष 2025 के दौरान एक लाख करोड़ रुपये का निवेश वापिस खींचा गया है। अनुमान है कि भारत के ये सभी विदेशी निवेशक दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के बाज़ारों की ओर कूच कर रहे हैं। सवाल ये है कि ऐसा होने की वजहें क्या हैं? प्रमुख वजह यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था घरेलू रूप से ज्यादा बाह्य मोर्चे पर चुनौतियों का सामना कर रही है। अमरीकी डालर के मुकाबले भारतीय रुपया पहले भी कमज़ोर चल रहा था, परन्तु पिछले तीन महीने में यह ज्यादा तेज़ी से कमजोर हुआ है, जिसमें करीब चार रुपये की गिरावट आयी है। एक अमरीकी डालर की कीमत चार माह पूर्व 83 रुपये के आसपास थी जो बढ़कर अभी 87 रुपये पर जा चुकी है।
ये ठीक है कि अमरीकी डालर दुनिया की सभी प्रमुख व्यापारिक करंसी यूरो, पौंड, येन, युआान के मुकाबले भी ज्यादा मजबूत हुआ है, परन्तु भारतीय रुपये के मुकाबले कुछ ज्यादा ही मजबूत हुआ है। इसकी वजह से हमारा व्यापार घाटा लगातार बढ़ता रहा है या फिर स्थिर रहा है, लेकिन संतुलित होने की ओर यह बिल्कुल अग्रसर नहीं है। हमारी विकासमान अर्थव्यवस्था आयातित मशीनरी, तकनीक व कच्चे माल पर बुरी तरीके से निर्भर है, खासकर चीन जैसे देश पर। देखा जाए तो पिछले चार महीने से भारत का विदेशी मुद्रा कोष का आकार लगातार संकुचित हुआ है, जिसका सीधा असर भारत में डालर की बाज़ार आपूर्ति पर पड़ा है। चूंकि दुनिया का तीन चौथाई व्यापार डालर में होता है, उस वजह से भारत में डालर की मांग इसकी आपूर्ति से ज्यादा है जिसका सीधा नतीजा रुपये के अवमूल्यन से जुड़ता है। यह माना जाता है कि शेयर बाज़ार अर्थव्यवस्था की विकास दर व इसके निरंतर सुचारू रूप से चलने तथा मौजूदा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की आर्थिक प्रत्याशा से प्रभावित होते हैं। दूसरी बात कि शेयर बाज़ार दीर्घकालीन रूप से औसत के नियम से भी परिचालित होते हैं। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था की मैक्रो व माइक्रो स्थितियों पर निगाह डाली जाए तो अर्थव्यवस्था की विकास दर अनुमान से आधी फीसदी कम यानी पौने सात फीसदी से अब वास्तविक रूप से सवा छह फीसदी के करीब होने जा रही है। विदेशी मुद्राकोष का आकार भी अभी घटकर 630 बिलियन डालर पर आ चुका है, जो पिछले सितम्बर 2024 में 704 बिलियन डालर के रिकार्ड स्तर पर पहुंचा था। जाहिर है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपने बाह्य मोर्चे पर एक बड़ी चुनौती झेल रही है। मतलब यह है कि हम निर्यात के मोर्चे पर ज्यादा सफल नहीं हो पा रहे हैं। सेवाओं के निर्यात में हमे बढ़त व व्यापार अतिरेक की स्थिति प्राप्त है, परन्तु वस्तुओं के निर्यात में पिछले तीन माह से लगातार गिरावट दर्ज हुई है। जनवरी 24 में कुल निर्यात 37.3 अरब तथा कुल आयात 53.9 अरब डालर था, जो इस साल जनवरी 25 में गिरकर निर्यात 36.4 अरब डालर तो दूसरी तरफ आयात और बढ़कर 59.4 अरब डालर पर चला गया। ज़ाहिर है कि हमारी अर्थव्यवस्था आयात आधारित अर्थव्यवस्था बनी है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर