रेखा गुप्ता के ज़रिये भाजपा ने दिल्ली में साधे हैं कई निशाने

सदस्य संख्या की दृष्टि से भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। साथ ही इस समय भाजपा देश के विभिन्न राज्यों में सत्ता की दृष्टि से भी सबसे बड़ी पार्टी है। मौजूदा समय में देश के 13 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में उसकी सरकार है, लेकिन किसी भी प्रांत में कोई कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं थी। सच बात तो यह है कि पिछले सात सालों से भाजपा का यह बॉक्स खाली था। वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा की आख़िरी मुख्यमंत्री थीं, जो अपने दूसरे कार्यकाल में 13 दिसम्बर, 2013 से 11 दिसम्बर 2018 तक राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं। उनके बाद अब रेखा गुप्ता इस रिक्त स्थान को भरेंगी। रेखा गुप्ता भाजपा की अब तक की पांचवीं महिला मुख्यमंत्री होंगी—सुषमा स्वराज, उमा भारती, आनंदी बेन पटेल और वसुंधरा राजे के बाद। भाजपा ने पहली बार दिल्ली में ही 12 अक्तूबर, 1998 में सुषमा स्वराज को अपनी पहली मुख्यमंत्री बनाया था, दुर्भाग्य से जो सिर्फ 53 दिनों तक ही मुख्यमंत्री रह सकी थीं,12 अक्तूबर 1998 से 3 दिसम्बर, 1998 तक। उन्हें देश में अब तक सबसे ज्यादा समय तक महिला मुख्यमंत्री रहीं कांग्रेस की शीला दीक्षित ने सत्ताच्युत किया था। इस समय देश के कुल 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में से अकेली महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी थीं। अब देश को दो महिला मुख्यमंत्री मिल गये हैं।
एक ऐसे दौर में जब राजनीतिक गलियारों में वोटिंग पैटर्न को लेकर कहा जा रहा हो कि महिलाएं सत्ता में आने और बने रहने के लिए निर्णायक हो गई हैं, साथ ही बहुप्रतीक्षित और कई दशकों तक संसदीय बहस का मुद्दा रहा विधानसभा और संसद में महिलाओं की 33 फीसदी आरक्षण का विधेयक भी पास हो गया है और 2029 से आम चुनाव के साथ ही यह कानून ज़मीन में भी उतर जायेगा। ऐसे में शेष बचे महज 4 सालों में हर राजनीतिक पार्टी को यह बुनियादी कवायद तो शुरू करनी ही है कि 4 साल बाद जब 33 फीसदी महिला उम्मीदवार लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उतारने होंगे, तो उसकी एक मजबूत परम्परा तो शुरू होगी। कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि दिल्ली में भाजपा ने अगर 12 दिनों के मंथन के बाद रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री के रूप में चुना है, तो इसके पीछे कई कारण हैं या यूं कहिये कि भाजपा ने इस एक तीर से अनेक निशाने साधे हैं।
मगर सवाल है भाजपा ने जिस तरह अपना सब कुछ दांव पर लगाकर दिल्ली की सत्ता जीती नहीं बल्कि चुनावी रणभूमि में छीनी है, वैसी स्थिति में क्या रेखा गुप्ता भाजपा की उन सभी रणनीतियों और वायदों को सकारात्मक सक्रियता के साथ पूरी कर पाएंगी, जो वायदे और सब्जबाग भाजपा ने दिल्ली के मतदाताओं को दिखाये हैं? भाजपा ने दिल्ली में महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वायदा किया है। हालांकि महाराष्ट्र और पंजाब की तरह दिल्ली का खजाना न तो इस कदर खाली है और न ही दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली में आय की समस्या है। इसलिए भाजपा ईमानदारी से चाहेगी तो इस वायदे को बिना किसी आर्थिक दबाव के पूरा कर सकती है और अगर भाजपा एक महिला मुख्यमंत्री के ज़रिये इसे डिलीवर करेगी, तो दिल्ली की यह डिलीवरी उसे अगले कई विधानसभाओं के लिए सकारात्मक गारंटी बनेगी, लेकिन अगर हम यह मान लें कि महज चुनावी रणनीति के लिए ही रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया है तो यह सही नहीं होगा। 
देश की चुनावी राजनीति में पिछले दो लोकसभा चुनावों के दौरान से बार बार यह साबित हो रहा है कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा ठोस वोट बैंक के रूप में उभर रही हैं और महिलाएं जाति व धर्म की पहचान से ऊपर उठकर राजनीतिक रूप से एकजुट हो रही हैं। ऐसे में रेखा गुप्ता भाजपा के लिए दिल्ली में मुख्यमंत्री पद हेतु ज़रूरी चयन बन गई थीं, साथ ही उनका संघ और एवीबीपी के साथ गहरा जुड़ाव उनकी और स्थिति मज़बूत कर रहा था। यही वजह है कि भाजपा ने बहुत सारे कशमकश के बाद दिल्ली में प्रवेश वर्मा की दावेदारी की जगह रेखा गुप्ता की दावेदारी को ठोस माना। दिल्ली में वैश्य समाज का वोट एक महत्वपूर्ण वोट है और केजरीवाल की तरह रेखा गुप्ता भी वैश्य समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसे में केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा पर संभवत: इसलिए भी रेखा गुप्ता भारी पड़ी कि दिल्ली का वैश्य समाज इस बात से खुशी महसूस करे कि केजरीवाल के बाद भी दिल्ली में उसी समाज की राजनीतिक प्रमुखता कायम है।
लेकिन प्रवेश वर्मा के न चुने जाने के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि भाजपा आमतौर पर मुख्यमंत्रियों के बेटों को मुख्यमंत्री बनाने से बचती है। जैसे हिमाचल प्रदेश में उसने अनुराग ठाकुर की जगह जयराम ठाकुर को चुना था; क्योंकि अनुराग के पिता प्रेम कुमार धूमल भी हिमाचल के मुख्यमंत्री रह चुके थे। ठीक वैसे ही जैसे 26 फरवरी, 1996 से 12 अक्तूबर, 1998 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा रहे थे। वास्तव में भाजपा प्रवेश वर्मा को हर तरफ से उनके उपयुक्त उम्मीदवार माने जाने के लोकप्रिय विश्वास को पचा नहीं पा रही थी। हालांकि सही बात यह भी है कि भाजपा एक नहीं कई बार इस संदर्भ में सोच भी रही थी, क्योंकि दिल्ली में जिस तरह से किसान आंदोलन हुआ था, उसमें भाजपा काफी नकारात्मक चिन्हित हो चुकी थी और माना जा रहा था कि जाट उससे नाराज़ हैं और प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर जाटों को खुश किया जा सकता था। 
अगर ऐसा होता तो भाजपा इस एक तीर से सिर्फ  दिल्ली के जाटों को न पस्त करती बल्कि हरियाणा और राजस्थान में भी उस पर जाटों के साथ भेदभाव करने का जो आरोप लगता है, वह नहीं लगता। मगर इन लोकप्रिय निष्कर्षों से अपने को प्रभावित होने से दूर रखा और अपनी ही राजनीतिक थिसिस को आगे बढ़ाते हुए रेखा गुप्ता का चुनाव किया।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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