केन्द्र सरकार पुनर्वास के लिए ठोस योजना बनाए
गैर-कानूनी प्रवासियों की वापसी का मामला
रंज-ओ-गम, दर्द-ओ-आलम, ज़िल्लत-ओ-रुसवाई है,
हमने ये दिल लगाने की सज़ा पाई है।
़िफदा कड़वी का यह शे’अर अमरीका में ़गैर-कानूनी तरीके से पहुंचे भारतीयों तथा अन्य देशों के नागरिकों पर चरितार्थ होता है। नि:संदेह उन्हें दु:ख-दर्द एवं अपमान सब कुछ उनकी अच्छा जीवन जीने की चाहत के लिए अपना जीवन व पैसा दोनों हथेली पर रखने के बदले पर मिल रहा है। हम तो अभी सैन्य विमानों में हथकड़ियां एवं बेड़ियां लगा कर भेजे जा रहे भारतीयों एवं पंजाबियों की स्थिति से परेशान एवं उदास हो रहे हैं, परन्तु अब अमरीका ने ़गैर-कानूनी प्रवासियों को निकालने का जो रास्ता अपना लिया है, वह मुसीबत में फंसे अभाग्यशाली प्रवासियों के लिए और भी चिन्तित करने वाला है। अमरीका ने अब लगभग 10 देशों, जिनमें भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, श्रीलंका तथा ईरान जैसे एशियाई देश शामिल हैं, के 300 नागरिकों को उनके देशों में भेजने की बजाय पनामा भेज दिया है। जहां से वे कहां जाएंगे, कैसे जाएंगे?, बारे अभी कुछ पता नहीं। बेशक वे 300 प्रवासी न तो कैद हैं और न ही आज़ाद। उन्हें पनामा के एक होटल में रखा गया है, जहां वे बाहर नहीं निकल सकते। इनमें से 128 व्यक्तियों ने किसी भी कीमत पर अपने देशों को लौटने से इन्कार किया है। जबकि 171 व्यक्ति अपने-अपने देशों में वापिस जाने के लिए तैयार हैं। नि:संदेह इस समय संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संस्था उन्हें किसी तीसरे देश में बसाने की कोशिशें कर रही है, परन्तु वे किस देश को स्वीकार होंगे और वहां जीवन कैसा होगा, किसी को नहीं पता। शेष शरणार्थियों के लिए उनके देश की सरकारें क्या करती हैं, इसका भी कुछ पता नहीं। बेशक हम सिख धर्म के ‘सरबत दा भला’ के सिद्धांत के अनुसार सबके लिए चिन्तित हैं, परन्तु एक भारतीय होने के नाते कम से कम अपनी भारत सरकार को यह कहे बिना नहीं रह सकते कि वह कम से कम अपने नागरिकों को भारत लाने के लिए स्वयं कोई नीति बनाए।
वास्तव में बात बहुत बड़ी है
यह सिर्फ 3-4 सौ लोगों की बात नहीं है, फिलहाल अभी तो सिर्फ 18000 भारतीयों पर डिपोर्ट करने की तलवार लटक रही है, परन्तु यह संख्या वास्तव में लाखों में हो सकती है। अमरीका के डिपार्टमैंट आफ होमलैंड सिक्योरिटी के अनुसार अमरीका में इस समय 2 लाख, 20 हज़ार भारतीय बिना दस्तावेज़ों के रह रहे हैं, परन्तु अमरीकी सरकार जिन 3 संस्थाओं के आंकड़ों को मान्यता देती है, उनमें से 2 तो यह संख्या 5 से 7 लाख के बीच बता रही हैं। इनमें एक पीयू रिसर्च सैंटर, जिसे अमरीका में एक थिंक टैंक का दर्जा हासिल है, अमरीका में रहते ़गैर-कानूनी भारतीयों की संख्या लगभग 7 लाख, 25 हज़ार बताती है। यदि इन सभी को डिपोर्ट करने की बात चलती है तो यह भारत के लिए एक आपदा (डिज़ास्टर) जैसी स्थिति होगी। यह वास्तव में भारत सरकार के लिए सोचने का समय है कि इन लोगों को लाने एवं इनके पुनर्वास के लिए क्या नीति बनाने का ज़रूरत है।
वैसे पीयू रिसर्च सैंटर की रिपोर्ट अधिक सटीक प्रतीत होती है, क्योंकि अमरीका के डिपार्टमैंट आफ होमलैंड सिक्योरिटी की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका में 5 लाख, 60 हज़ार भारतीय ़गैर-कानूनी या दस्तावेज़ों के बिना थे, जो अब कम होते होते 2 लाख, 20 हज़ार रह गए हैं, परन्तु शेष सूत्रों के अनुसार 2016 के बाद अमरीका में भारतीयों का ़गैर-कानूनी प्रवास बढ़ा है, घटा नहीं। फिर कनाडा तथा ब्रिटेन से भी ़गैर-कानूनी प्रवासियों को डिपोर्ट करने की संभावनाएं बढ़ गई हैं और ऐसे समाचार आस्टे्रलिया से भी आ रहे हैं। सो, आवश्यक है कि भारत सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए कोई रणनीति बनाए और फंड का प्रबंध करे। नहीं तो जिस प्रकार की ज़िल्लत भारतीय नागरिकों को उठानी पड़ सकती है, वह देश के स्वाभिमान के लिए ठीक नहीं और न-काबिले बर्दाश्त भी है। प्रसिद्ध शायर अब्बास दाना के एक शे’अर के अनुसार—अणख तो भिखारियों में भी होती है, वे भी जिस दरवाज़े पर उन्हें ज़िल्लत (अपमान) मिलती है, उस दरवाज़े पर जाना बंद कर देते हैं। यह मामला तो खैर लाखों रुपये खर्च कर अच्छे जीवन की तलाश में गए हुए हमारे नागरिकों का है।
अना के सिक्के होते हैं ़फकीरों की भी झोली में,
जहां ज़िल्लत मिले उस दर पे जाना छोड़ देते हैं।
(अना—अणख)
धामी का इस्तीफा
मेरे हालात को बस यूं समझ लो,
परिंदे पर शजर रखा हुआ है।
शूजा ़खावर का यह शे’अर मुझे उस समय याद आया जब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की अध्यक्षता से इस्तीफा देने वाले एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी से हालात समझने के लिए बात कर रहा था। शजर का अर्थ पेड़ होता है और मुझे उनकी हालत उस पक्षी जैसी ही प्रतीत हुई जो पेड़ पर बैठे हुए नहीं अपितु सारा पेड़ उस पर रख दिया गया हो। वह सचमुच ही हालात के बोझ के दबाव से बहुत परेशान प्रतीत हुए, परन्तु धामी के इस्तीफे ने अकाली दल, सिख राजनीति तथा सिख धार्मिक स्थिति की हालत को और उलझा दिया है।
अकाली दल धामी को इस्तीफा वापिस लेने के लिए मनाने के यत्न कर रहा है, परन्तु इस बात की उम्मीद अब बहुत कम प्रतीत होती है कि अब इस्तीफा वापिस लेंगे। दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि शिरोमणि कमेटी की कार्यकारिणी उनका इस्तीफा स्वीकार न करे, परन्तु जिस प्रकार का प्रभाव उनसे बात करने से बना है, उससे तो यही प्रतीत होता है कि इस्तीफा अस्वीकार होने की स्थिति में भी वह शायद पुन: पद नहीं संभालेंगे। यह भी देखने वाली बात होगी कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार स. हरजिन्दर सिंह धामी के इस्तीफे पर सिंह साहिबान द्वारा अकाली दल की नई भर्ती के लिए बनाई गई 7 सदस्यीय समिति के संकट संबंधी क्या दृष्टिकोण अपनाते हैं?
हमारी जानकारी के अनुसार इन परिस्थितियों में एक तरीका तो यह है कि उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाए। इससे शिरोमणि कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रघुजीत सिंह विर्क स्वयं ही कार्यकारी अध्यक्ष बन जाएंगे। हालांकि पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह द्वारा उन पर लगाए गए गम्भीर आरोपों के बाद यह भी आसान नहीं रहा या फिर एक अन्य रास्ता है कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष रघुजीत सिंह विर्क की अध्यक्षता में शिरोमणि कमेटी की कार्यकारिणी की बैठक बुला कर शिरोमणि कमेटी के किसी आम सदस्य को कार्यकारिणी में शामिल कर लिया जाए और नये कार्यकारी सदस्य सहित कार्यकारिणी के किसी सदस्य को कार्यकारिणी का नया अध्यक्ष चुन लिया जाए। ऐसा अकाली दल बादल तथा सर्वहिन्द अकाली दल के पुन: विलय के समय भी हुआ था जब प्रो. कृपाल सिंह बडूंगर के स्थान पर जत्थेदार गुरचरण सिंह टौहरा को शिरोमणि कमेटी का पुन: अध्यक्ष बनाया गया था। नहीं तो वरिष्ठ उपाध्यक्ष विर्क को यदि एक बार कार्यकारी अध्यक्ष बना लिया गया तो फिर वह अगले चुनाव तक कार्यकारी अध्यक्ष ही रहेंगे। उसके बाद नया अध्यक्ष चुनने के लिए जनरल हाऊस ही बुलाना पड़ेगा।
सिरसा का मंत्री बनना
हालांकि इस बात की भी बहुत आशा थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व को यह संदेश देने के लिए कि भारत में अल्पसंख्यकों को बहुत सम्मान दिया जाता है, एक सिख को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना सकते हैं, क्योंकि उनके पास एक भी मुसलमान विधायक नहीं। उल्लेखनीय है कि आज़ादी के बाद दिल्ली के दूसरा मुख्यमंत्री एक सिख गुरसिख निहाल सिंह थे और दिल्ली के मेयर भी लगभग एक दशक एक सिख बाबा वचित्र सिंह रहे। जो विदेश से आने वाले नेताओं को प्रोटोकाल के तहत हवाई अड्डे पर लेने जाते रहे और उनकी तस्वीरें देश के धर्मनिरपेक्ष होने का प्रचार करती रहीं, परन्तु शायद भाजपा के लिए आ रहे बिहार विधानसभा चुनावों के दृष्टिगत एक हिन्दू महिला रेखा गुप्ता का मुख्यमंत्री बनना अधिक लाभदायक है। फिर यह समुदाय अरविंद केजरीवाल के साथ अधिक जुड़ा हुआ माना जाता है। इसलिए केजरीवाल की राजनीति खत्म करने के लिए भी रेखा गुप्ता शायद भाजपा हाईकमान को अधिक ठीक लगी होंगी। हालांकि केजरीवाल की तीव्र राजनीति का जवाब देने में मनजिन्दर सिंह सिरसा अधिक हाज़िर जवाब माने जाते हैं। वैसे भी भाजपा के पास कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं थीं, परन्तु फिर भी खुशी की बात है कि भाजपा ने एक सिख मनजिन्दर सिंह सिरसा को दिल्ली में कैबिनेट मंत्री बनाया है, नहीं तो ‘आप’ तथा केजरीवाल ने तो दिल्ली सरकार में सिखों को दृष्टिविगत किया हुआ था। यह भी अच्छी बात है कि सिरसा ने अपने पद का शपथ पंजाबी में ली है।
-मो. 92168-60000