नये चुनाव आयुक्त की नियुक्ति
संसद द्वारा दिसम्बर 2023 में चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्तियों संबंधी बनाए गए कानून के अनुसार केन्द्र सरकार की ओर से केरल केडर के सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी ज्ञानेश कुमार को नया मुख्य चुनाव आयुक्त और हरियाणा केडर के सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है। अब भारत के तीन सदस्यीय चुनाव आयोग में श्री ज्ञानेश कुमार मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे और सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी उनके साथ आयुक्तों के रूप में सेवाएं निभाएंगे। बनाए गए नए कानून के अनुसार ये पहली नियुक्तियां हैं। इन नियुक्तियों के साथ ही इस संबंध में राजनीतिक और कानूनी विवाद भी शुरू हो गया है।
यहां वर्णनीय है कि चुनाव आयोग के सदस्यों की पहले केन्द्र सरकार द्वारा ही नियुक्ति की जाती थी, परन्तु फिर राजनीतिक क्षेत्रों में यह चर्चा शुरू हो गई थी कि चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष समिति होनी चाहिए, जिसमें समय की केन्द्र सरकार या दूसरे शब्दों में सत्तारूढ़ पार्टी का ज्यादा हस्तक्षेप न हो। चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में भी गया और सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2023 में इस संबंध में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय यह दिया कि भविष्य में चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति तीन सदस्यीय समिति द्वारा की जाएगी। इस समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल हुआ करेंगे। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई भी कमज़ोर व्यक्ति जो मौजूदा सरकार के समक्ष खड़ा न हो सके और निष्पक्षता से अपने फज़र् न निभा सके, वह चुनाव आयोग का सदस्य नहीं बनना चाहिए, मुख्य चुनाव आयुक्त सरकार के प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने संसद को यह भी छूट दी कि यदि वह चाहे तो इस संबंध में अपने तौर पर और उचित कानून भी बना सकती है परन्तु जब तक संसद इस संबंध में कोई नया कानून पारित नहीं करती, तब तक उसके द्वारा सुझाई गई तीन सदस्यीय समिति ही चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करेगी, परन्तु इसके बाद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने तेज़ी से कार्रवाई करते हुए संसद द्वारा दिसम्बर, 2023 में चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति संबंधी नया कानून पारित करवा लिया, जिसके अनुसार चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति तीन सदस्यीय समिति द्वारा किए जाने की व्यवस्था की गई। इस समिति के सदस्यों में प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त की गई केन्द्रीय कैबिनेट का एक सदस्य और विपक्ष के नेता को शामिल किया गया, परन्तु सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस समिति से बाहर कर दिया गया। विपक्षी पार्टियों और चुनाव संशोधनों के लिए काम करती कुछ संस्थाओं ने इस नये कानून द्वारा चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्तियों को केन्द्र सरकार द्वारा अपने अधिकार में लेने का आरोप लगाया। इस नए कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई और अब 19 फरवरी से सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दायर हुईं याचिकाओं की बकायदा सुनवाई शुरू कर दी है। इसी कारण विपक्ष के नेता राहुल गांधी जो 17 फरवरी को नए चुनाव आयुक्त और एक अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हुई बैठक में शामिल हुए थे ने यह कहा था कि, क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है इसलिए चुनाव आयोग के नए सदस्यों की नियुक्ति अभी जल्दबाज़ी में न की जाए। उन्होंने इस संबंध में इस बैठक में अपनी असहमति नोट भी दिया था, परन्तु प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली इस तीन सदस्यीय समिति में क्योंकि बहुमत केन्द्र सरकार के पास था, इसलिए उन्होंने नए मुख्य चुनाव आयुक्त श्री ज्ञानेश कुमार और एक अन्य आयुक्त विवेक जोशी की नियुक्ति कर दी और इस नई नियुक्ति के आधार पर श्री ज्ञानेश कुमार ने अपना पद भी ग्रहण कर लिया है।
हमारा इस संबंध में बड़ा स्पष्ट विचार है कि भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से करवाने के लिए चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति भी स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से ही होनी चाहिए। जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2023 के अपने फैसले में कहा था कि चुनाव आयोग के सदस्य ऐसे नहीं होने चाहिए जो सरकार का दबाव स्वीकार करने वाले हों। पिछले समयों में चाहे चुनाव आयोग ने अपनी कारगुज़ारी को बेहतर बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए हैं और बहुत-से चुनाव संशोधनों को भी क्रियान्वयन में लाया है, परन्तु फिर भी अनेक मुख्य चुनाव आयुक्तों पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वह समय की सत्तारूढ़ सरकार के प्रति नरम रवैया धारण करते रहे हैं। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार समय ऐसे ही आरोप नवीन चावला पर लगे थे और ऐसे ही आरोप अभी-अभी सेवानिवृत्त हुए राजीव कुमार पर भी लगते रहे हैं। जबकि स्वर्गीय मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. सैशन की उनकी निष्पक्ष और स्वतंत्र पहुंच के कारण बहुत प्रशंसा भी होती रही थी।
नि:संदेह भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकसभा, राज्यसभा और विधान सभाओं के चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से सफल करने के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रणाली का होना बहुत ज़रूर है। इसलिए नि:संदेह तीन सदस्यीय चुनाव आयोग में ऐसी ही शख्सियतें नियुक्ति की जानी चाहिएं, जो निष्पक्षता और दृढ़ता से अपने फज़र् निभा सके। उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार द्वारा दिसम्बर, 2023 में चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति संबंधी बनाए कानून को, जिन विभिन्न पक्षों द्वारा चुनौती दी गई है, उस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का आगामी समय में कोई ऐसा उचित फैसला ज़रूर आएगा, जो अब चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को और भी मज़बूत करने वाला होगा।