कांग्रेस को महंगी पड़ रही राहुल की अपरिपक्वता
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में 99 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस भले ही लोकसभा में सबसे बड़ा विपक्षी राजनीतिक दल बन गया हो, लेकिन यह सभी जानते हैं कि कांग्रेस के 99 सीटों में अखिलेश यादव समेत इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य कई क्षेत्रीय दलों की भी अहम भूमिका रही है। ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि राहुल गांधी ‘इंडिया’ गठबंधन के सभी सहयोगी राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श कर चुनाव से कम से कम 6-7 महीने पहले ही रणनीति तैयार कर लेते।
राहुल गांधी के लिए यह तय करना भी ज़रूरी है कि किस राज्य में कौन-सा राजनीतिक दल कांग्रेस का विरोधी है और किस राज्य में कौन-सा राजनीतिक दल कांग्रेस के साथ है। दिल्ली में आखिरी समय तक राहुल गांधी यह तय ही नहीं कर पा रहे थे कि केजरीवाल साथी है या विरोधी है? पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया था और एक बार फिर उन्होंने राज्य में अकेले ही वर्ष 2026 का विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करके कांग्रेस पर हावी होने की कोशिश की है। दूसरी तरफ राहुल गांधी को देखिए कि वह तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि ममता बनर्जी से लड़ना है या दोस्ताना संबंध रखने हैं।
लोकसभा में विपक्ष के नेता की जिस कुर्सी पर इस बार राहुल गांधी बैठे हैं, उसी कुर्सी पर पिछली लोकसभा में कांग्रेस के लोकसभा सांसद अधीर रंजन चौधरी बैठा करते थे। चौधरी पश्चिम बंगाल में लगातार कांग्रेस पार्टी को मज़बूत बनाने की बात किया करते थे और सिर्फ इस वजह से ममता बनर्जी उनसे इतनी ज्यादा नाराज़ हो गई कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित किया की अधीर रंजन चौधरी 2024 का चुनाव जीतकर फिर से लोकसभा सांसद नहीं बन पाएं। चौधरी 2024 में लोकसभा चुनाव हार गए और राहुल गांधी व कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें पूरी तरह से अकेला छोड़ दिया हैं। जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला हो या फिर बिहार में लालू यादव, कांग्रेस की लगभग सभी सहयोगी पार्टियां राहुल गांधी की अपरिपक्वता का फायदा उठाने का प्रयास करती रहती हैं। इसलिए यह सवाल बार-बार उठाया जाने लगा है कि क्या राहुल गांधी की यह अपरिपक्वता कांग्रेस को राजनीतिक रूप से डूबो देगी।
गौरतलब है कि हाल ही में कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में ज़ीरो की हैट्रिक लगाई है। पिछले साल भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने केंद्र में सरकार बनाई और नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन लगभग छह दशकों तक केंद्र में सत्ता का आनंद लेने वाली कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय राजधानी में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में लगातार तीसरी बार एक भी सीट नहीं जीत सकी। पिछले तीन चुनावों में दिल्ली के मतदाताओं ने कांग्रेस को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है। यहां पार्टी का राष्ट्रीय मुख्यालय है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस के निवास स्थान हैं। राहुल गांधी कांग्रेस के सर्वोच्च नेता, पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस पार्टी में कोई निर्वाचित स्थानीय नेता नहीं है।
राहुल गांधी कहते रहे कि कांग्रेस पार्टी दलितों और अल्पसंख्यक मतदाताओं की आवाज़ है, लेकिन यह विश्वास नहीं दिला सके कि कांग्रेस सत्ता में आएगी। परिणामों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कांग्रेस ने दिल्ली में दलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक खो दिया था। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का स्टार प्रचारक कौन है, इसे लेकर अंत तक काफी असमंजस की स्थिति बनी रही। राहुल की दो रैलियां और प्रियंका की एक। अगर गांधी परिवार की दिलचस्पी नहीं है तो बाकी नेता खुद को प्रचार में क्यों लगाएंगे? राहुल खुद अचानक 15 दिन के लिए विदेश दौरे पर चले गए। कांग्रेस अपने दम पर दिल्ली चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं थी। केजरीवाल द्वारा आम आदमी पार्टी के अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद भी कांग्रेस ने गठबंधन बनाने की कोशिश की, लेकिन ‘आप’ ने कांग्रेस को गंभीरता से नहीं लिया।
लोकसभा में कांग्रेस के 100 सांसद हैं, लेकिन दिल्ली में पार्टी का प्रदर्शन शून्य है। देश के चार राज्यों में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। आंध्र प्रदेश में विधानसभा में 175 सीटें हैं। वहां वह एक भी सीट नहीं जीत सकी। पश्चिम बंगाल विधानसभा में भी कांग्रेस शून्य है। सिक्किम विधानसभा में 32 सीटें हैं। सिक्किम कभी कांग्रेस का गढ़ था। अब उस विधानसभा में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। नागालैंड विधानसभा में 60 सीटें हैं। फरवरी 2023 में चुनाव हुए थे। कांग्रेस को वहां एक भी सीट नहीं मिली। मेघालय और मिज़ोरम में कांग्रेस के केवल एक-एक विधायक हैं। मणिपुर और पुडुचेरी, जहां अतीत में कांग्रेस का प्रभाव था, में केवल दो विधायक हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का यही हाल रहा तो बिहार विधानसभा में भी पार्टी की हालत बुरी होने से कोई नहीं रोक सकता ।
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