न्याय मिलने पर जल उठते हैं उम्मीद के चिराग
अन्तत: भारतीय न्यायालय ने सज्जन कुमार को आरोपी करार दिया है। वह 1984 में घटित सिख विरोधी दंगों में कसूरवार ठहराए गए। पूरा भारत 1984 के अमानवीय क्रूर, सिख विरोधी दंगों के दोषियों के प्रति कठोर राय रखता है। इन दंगों की जगह हमला शब्द ज्यादा मुनासिब है। मैं दिल्ली और कुछ अन्य शहरों में हज़ारों मासूम सिख भाईयों की निर्ममता पूर्ण हत्या कर दी गई थी। बड़ी बेरहमी से उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। नष्ट कर दिया गया। देश की राजधानी दिल्ली में ही तीन हज़ार से अधिक सिख भाइयों को यातनाएं देकर अकाल मृत्यु की तरफ धकेल दिया गया। वह और भी दु:ख की बात है कि लम्बे समय तक केन्द्र में बनती कांग्रेस की सरकारें या उनके सहयोग से बनती सरकारों द्वारा ऐसी निर्मम हत्या की घटनाओं पर एक तरह से असंवेदनशीलता बनी रहीं और शीघ्र न्याय दिलाने में दिलचस्पी को नहीं बनाए रखा।
हालांकि विभिन्न न्यायिक संगठन बार-बार अपनी आवाज़ बुलंद करते रहे और शीघ्र न्याय की मांग करते रहे लेकिन पुलिस द्वारा अनेक मामलों को अनट्रेस (नहीं मिल रहा) कह कर बंद कर दिया। जिन संगठनों ने न्याय के हक में आवाज़ बुलंद की उनमें पीपल्ज़ यूनियन फॉर डैमोक्रेटिक राइटज़, पीपल्ज़ यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ के नाम प्रमुख हैं। इन संगठनों ने कत्लेआम की साफ-सुथरी रिपोर्टें प्रकाशित की और दंगे भड़काने वाले कांग्रेसी नेताओं के नाम भी दर्ज किए। सज्जन कुमार ही नहीं जगदीश टाइटलर जैसे नेताओं को सत्ता से कुछ ऐसी ढील मिलती रही जिस कारण वह बचते रह गए। लेकिन सभी दिन एक जैसे नहीं होते साफ देखने में आ रहा है। 2014 के बाद मोदी सरकार बनने के बाद सैकड़ों बंद कर दिए मामलों पर भी 2015 में विशेष जांच टीम का गठन हुआ और लम्बे समय से लटकते आ रहे मामलों पर ध्यान दिया गया। पुनर्निरीक्षण के बाद ऐसे 114 मामले सामने आए।
कांग्रेस सरकारों पर लोकतांत्रिक शक्तियों का आरोप है कि उन्होंने अनेक ऐसे मामलों को टाल देने या दबा देने का कार्य किया है। सज्जन कुमार का ही राजनीतिक जीवन देखें। वह दिल्ली के एक पार्षद थे। दिल्ली कांग्रेस के महासचिव भी रहे। उन्हें संजय गांधी का करीबी माना जाता रहा। बीस सूत्रीय कार्यक्रम के दिनों व्यवस्था के लिए यह बात शायद उल्लेखनीय हो। दिक्कत तब शुरू होती है जब सिख विरोधी दंगों में भी उनका नाम आने पर भी कांग्रेस उन्हें टिकट देती रही। वर्ष 1980 में वह लोकसभा के सदस्य भी बने। 1991 में और 2004 में यही क्रम दुहराया गया। कांग्रेस पार्टी को उन पर लग रहे गम्भीर आरोपों का जरा भी ध्यान नहीं आया। अप्रैल 2013 में दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने उसके 5 साथियों को तो दोषी ठहराया था परन्तु उसे बरी कर दिया गया। फिर 2018 में उन्हें एक मामले में दोषी करार दिया गया।
इसके बाद पार्टी से त्याग पत्र दिया। पिछले दिनों उन्हें जसवंत सिंह और उसके पुत्र तरुणदीप सिंह को मारने के आरोप और भीड़ को भड़काने के आपोप में दोषी करार दिया गया है। सज्जन कुमार को दोषी करार दिए जाने से भारतीय न्याय व्यवस्था की प्रशंसा हुई है। कुछ संगठनों ने इसका स्वागत किया है।