फिर दोराहे पर

पंजाब में किसानों को धरपकड़ करने से एक बार फिर प्रदेश में अशांति वाले हालात बन गये हैं। प्रदेश के सामने पहले ही अनेक दुश्वारियां खड़ी हैं। इस समय पंजाब में 37 के करीब किसान संगठन सक्रिय हैं। चाहे इनमें से बहुत सारे दो किसान मोर्चों में लामबंद होकर संघर्ष करते हैं परन्तु इसके साथ-साथ यह अलग-अलग रूपों में भी अपने-अपने समर्थकों को साथ लेकर विभिन्न मामलों पर प्रशासन व अन्य वर्गों पर अपना दबाव बनाती रहती हैं। समय-समय पर अलग-अलग उठते इन सुरों ने बड़े स्तर पर दिशाहीनता भी पैदा की है। मिसाल के तौर पर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चे ने अपनी मांगों को लेकर गत वर्ष 12 फरवरी से हरियाणा के साथ लगती सीमाओं शम्भू और खनौरी पर धरने लगाए हुए हैं। इस पूरे समय में हरियाणा सरकार अडिग रही है कि वह एक साथ पंजाब के बड़ी संख्या में किसानों को दिल्ली जाने के लिए ट्रैक्टरों के ज़रिये सीमा पार नहीं करने देगी, जिस कारण पंजाब और दिल्ली के बीच का सड़क यातायात बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है। 
पंजाब और दिल्ली के बीच की अंतर्राज्यीय सड़कों से प्रतिदिन लाखों वाहन गुज़रते हैं। यह राजमार्ग बंद होने के कारण गांवों में से गुजरती बेहद छोटी सड़कें, जिन पर पहले ही गड्ढ़े पड़े हुए हैं, से यह वाहन गुजरने के लिए मज़बूर हैं। लोगों के लिए यह बेहद परेशानी वाली बात बन गई है। इस कारण प्रतिदिन उनके जहां कई-कई घंटे इस मुश्किल सफर में बर्बाद होते हैं, वहीं लम्बे और मुश्किलों भरे रास्तों से गुजरते हुए पैट्रोल और डीज़ल की होती अधिक खपत के कारण ही अब तक लोगों के करोड़ों नहीं अरबों रुपये का अतिरिक्त नुकसान हो चुका है। लेकिन यह मामला ज्यों का त्यों बरकरार है। इस दौरान संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के मरणव्रत पर बैठने से भी प्रदेश का माहौल बेहद तनावपूर्ण बना हुआ है। डल्लेवाल को मरणव्रत पर बैठे 100 दिन हो गये हैं। इस पूरे समय दौरान दूसरे संयुक्त किसान मोर्चे से संबंधित संगठन सामूहिक तौर पर और कभी-कभी अपने-अपने तौर पर भी गतिविधियां करती रही हैं। इन संगठनों पर आधारित संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं ने जगजीत सिंह डल्लेवाल के नेतृत्व वाले मोर्चे के साथ एक सुर होकर चलने के लिए कई बैठकें की हैं, पर वह अभी इसमें सफल नहीं हो सके। इस स्थिति में संयुक्त किसान मोर्चे के इन नेताओं ने अपनी मांगों को लेकर एक सप्ताह के लिए चंडीगढ़ में धरना देने का ऐलान किया था। इस संबंधी सरकार द्वारा उनके साथ एक बैठक भी की गई पर कोई परिणाम नहीं निकल सका। इस कारण अब सरकार और इस मोर्चे से संबंधित संगठन आमने-सामने आ खड़े हुए हैं।
दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियों ने प्रदेश में पैदा हुई इस स्थिति से लाभ उठाने के लिए अपनी राजनीतिक शतरंज बिछा दी है। उन्होंने इन आंदोलनों के मद्देनज़र  सरकार की आलोचना की है और बयान द्वारा उसको कटघरे में खड़ा करने का यत्न किया है। समूची स्थिति टकरावपूर्ण बनती नज़र आ रही है। पहले कभी खुशहाल रहा यह प्रदेश बुरी तरह पिछड़ गया नज़र आता है। अपने पड़ोसी राज्य और देश के अन्य प्रदेशों से बहुत पिछड़ गया है। इसकी आर्थिकता बर्बाद हो रही है। अमन कानून की स्थिति बेहद बिगड़ चुकी है, नौजवान बड़ी निराशा में हैं और उनको अपना भविष्य बेहद धुंधला दिखाई दे रहा है। अब सब पक्षों को अपने पार्टी हितों से ऊपर उठकर प्रदेश को बेहतर बनाने के लिए गम्भीरता और ईमानदारी से एकजुट होने की ज़रूरत होगी। शायद इसी के साथ ही प्रदेश में अपने पांव फैलाती बड़ी निराशा को किसी हद तक घटाया जा सकेगा।

    —बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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