अपनी-अपनी राह पर ही चलेंगे अलग-अलग अकाली दल
पीरी ते मीरी दा रिश्ता रूह ते कलबूत दा,
पीरी झुक जाये तां मीरी झूठ ते हंकार है।
-लाल फिरोज़पुरी
राजनीति जब तक धर्म (मज़हब नहीं) की सीमा में रहती है, न्याय करती है और सच के आधार पर चलती है, परन्तु जब इसमें से धर्म जो दया भी है, न्याय भी है, निकल जाता है या राजनीति के आगे झुक जाता है तो राजनीति ज़ालिम, अहंकारी तथा झूठी हो जाती है। यही हालत इस समय विश्व भर की राजनीति की है। खैर, मैं बात सिर्फ अकाली राजनीति की करने लगा हूं। इसमें बात तो धर्म की, की जाती है, परन्तु वास्तविक अर्थों में धर्म आज की अकाली राजनीति में से मनफी दिखाई दे रहा है। नि:संदेह सिख धर्म में मीरी तथा पीरी के सुमेल का सिद्धांत माना जाता है और मीरी को पीरी से छोटा या पीरी के अधीन माना जाता है, परन्तु जब राजनीतिक पक्ष पीरी (धर्म) को अपनी मीरी (गद्दी या राजनीति) के लिए इस्तेमाल करते हैं तो यह शायद धर्म नहीं कुछ और ही हो जाता है।
चलो, धार्मिक बहस में नहीं पड़ते। वर्तमान अकाली दल के हालात की बात करते हैं। अब यह निश्चित हो गया है कि अकाली दल का बादल विरोधी गुट अब अलग अकाली दल बना ही लेगा। बेशक नया गुट अकाली दल बादल के नेताओं को श्री अकाल तख्त साहिब का भगौड़ा करार देगा और अकाली दल बादल वाले जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब के बयान का वह हिस्सा दिखाएंगे जहां वह अकाली दल की भर्ती शुरू किए जाने का स्वागत कर रहे दिखाई देते हैं।
हम समझते हैं कि इस हमाम में दोनों गुट ही राजनीति कर रहे हैं। एक गुट श्री अकाल तख्त साहिब के सहारे अपनी राजनीति तथा पार्टी बनाना चाहता है और दूसरा भी श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों की व्याख्या अपने हिसाब से कर रहा है। वैसे अच्छा होता यदि सुखबीर सिंह बादल को अध्यक्षता से हटाने के इच्छुक अपने बल से उन्हें अध्यक्षता से हटाते या उस समय ही अलग अकाली दल बना लेते, वे अब भी तो बना ही रहे हैं। इस पूरी लड़ाई में श्री अकाल तख्त साहिब की परम्परा तथा संस्था को कुछ नुकसान तो अवश्य पहुंचा है, परन्तु एक बात अच्छी है कि यह बहस शुरू हो गई है कि श्री अकाल तख्त साहिब तथा अन्य जत्थेदारों की योग्यता, नियुक्ति, हटाए जाने तथा उनकी शक्तियां एवं कर्त्तव्यों संबंधी शिरोमणि कमेटी द्वारा नियम बनाए जाएं। हम समझते हैं कि जब सुखबीर सिंह बादल ने सभी गलतियां स्वीकार कर ही ली थीं और श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा दी गई पूरी सज़ा भी बहुत सम्मान से पूरी कर ली थी तो अच्छा होता यदि वह अपने दल की भर्ती भी 7 सदस्यीय समिति की देखरेख में ही करवा लेते, परन्तु बादल दल के नेता इसे पार्टी की मान्यता रद्द होने के खतरे से जोड़ रहे हैं। परन्तु राजनीति में जो दिखाई देता है, वह होती नहीं। ़खैर, यह होता या वह होता, सिर्फ बातें हैं, अब तो निश्चत है कि दो ज़रूर गुट बनेंगे।
शाह मुहम्मदा गल्ल तां सोई होणी,
जिहड़ी करेगा खालसा पंथ मीयां।
समय ही बताएगा कि सिख पंथ किस पार्टी के साथ खड़ा होता है। वैसे अच्छा होता यदि श्री अकाल तख्त साहिब ने सिख पंथ की एकता ही करवानी थी तो सभी सिख राजनीतिक दलों को बुलाता। सिर्फ अकाली दल बादल की एकता की बात समझ में नहीं आती। अब नया अकाली दल वारिस पंजाब दे अपना अलग भर्ती अभियान चला रहा है, और अकाली दल अमृतसर तथा अन्य कई अकाली दल पहली की तरह अपनी-अपनी डफली बजा रहे हैं।
कौन होगा नए अकाली दल का अध्यक्ष
हालांकि यह अभी दूर की बात है। अभी तो 5 सदस्यीय समिति ने भर्ती अभियान शुरू भी नहीं किया। भर्ती होगी, सर्कल तथा ज़िला स्तर पर चुनाव होगा। डेलीगेट चुने जाएंगे। इसके बाद ही इस नये बनने वाले अकाली दल के अध्यक्ष का चुनाव होगा, परन्तु फिर भी राजनीतिक गलियारों में ‘सरगोशियां’ शुरू हैं कि इस नये अकाली दल का अध्यक्ष कौन होगा? हमारी जानकारी के अनुसार इस समय दो नामों की चर्चा सबसे अधिक है। इनमें मनप्रीत ंिसंह इयाली तथा सुरजीत सिंह रखड़ा के नाम हैं, परन्तु चर्चा में 5 सदस्यीय समिति के शेष सदस्यों के नाम भी हैं। इनमें से कोई भी नये अकाली दल का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। अभी अकाली दल बादल में से आए अन्य वरिष्ठ नेताओं का नाम कोई भी नहीं ले रहा। नए अकाली दल में शिरोमणि कमेटी चुनाव लड़ने के लिए बीबी जगीर कौर तथा 3 पूर्व जत्थेदार साहिबान को साथ लेने की बात चल रही है। ये तीनों पूर्व जत्थेदार, जिनके नाम चर्चा में हैं ज्ञानी हरप्रीत सिंह, भाई रणजीत सिंह तथा ज्ञानी मनजीत सिंह किसी न किसी तरह बादल विरोधी ही माने जाते हैं।
पंजाब की हालत
पंजाब की बर्बादी देख कर स्वयं पर भी तरस आता है। देश में प्रत्येक पक्ष से पहले स्थान पर रहने वाला राज्य अब 16वें स्थान पर बताया जा रहा है। पहले 10-15 वर्ष हम खाड़कूवाद तथा सरकारी ज़ुल्म के शिकार रहे, जिसने हमारी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी। अब विगत कुछ वर्षों से किसान आन्दोलन ने पंजाब में अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारने की बात की है। हम नहीं कहते कि किसानों की मांगें अनुचित हैं। बहुत-सी मांगें पंजाब के पक्ष में हैं, चाहे कुछेक पंजाब से अधिक दूसरे राज्यों के किसानों के लिए लाभदायक होंगी, परन्तु प्रतिदिन के प्रदर्शन, प्रतिदिन सड़कें जाम, रेलगाड़ियां रोकना पंजाब के लोगों को भी परेशान कर रहा है। पंजाब की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इससे पंजाब में निवेश करने वाले ही दूर नहीं रह रहे, अपितु पंजाब के अपने उद्योग भी परेशान हैं और नुकसान सहन कर रहे हैं। हम कहते हैं कि सरकारें किसानों को बदनाम करती हैं। फिर हम सरकारों को बदनाम करने का अवसर ही क्यों दे रहे हैं? हमारी किसान संगठनों से अपील है कि वे अपनी लड़ाई लड़ने के लिए नए राह व तरीके सोचें जो पंजाब का नुकसान न करें। यदि दिल्ली के खिलाफ प्रदर्शन करना ही है तो इकट्ठे होकर जाने की क्या ज़रूरत है। अकेले-अकेले पहुंच कर भी तो वहां इकट्ठे होकर रोष प्रदर्शन किया जा सकता है। पंजाब की सड़कों को प्रतिदिन बंद करना उचित नहीं।
केन्द्रीय बजट सत्र और पंजाब
केन्द्रीय बजट सत्र का दूसरा भाग 10 जून को शुरू हो रहा है। हमारी पंजाब के सभी राज्यसभा एवं लोकसभा के 20 सांसदों तथा 21वें चंडीगढ़ के लोकसभा सांसद मुनीष तिवारी से अपील है कि वे सभी पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर पंजाब के लिए एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाएं। उल्लेखनीय है कि पहले एक बार पंजाब के मामलों बारे राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी ने सभी पार्टियों के पंजाब के सांसदों को खाने पर बुलाकर विचार-विमर्श किया था और उसमें एक सहमति भी बनी थी कि पंजाब के मुद्दों पर पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर बात करनी चाहिए। हमारी इन सभी सांसदों से अपील है कि पंजाब की हालत सुधारने के लिए राज्य के मामले संसद में जोरशोर से उठाने के लिए आपसी सहमति से बैठकें करके कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाएं और संसद में पंजाब के बनते अधिकार, पाकिस्तान से पंजाब के माध्यम से व्यापार खोलने, पंजाब के किसानों, पंजाब के सीमांत राज्य होने के कारण प्रदेश को कोई विशेष पैकेज देने तथा पंजाब के पानी की रायल्टी, चंडीगढ़ तथा अन्य मुद्दों की खुल कर बात करें। वे बिहार तथा तमिलनाडु को दी विशेष आर्थिक सहायता की तरह पंजाब के लिए भी मांग तो उठाएं।
आर्थिक विश्व युद्ध तो शुरू हो चुका है
नि:संदेह अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक ओर स्वयं को शांति का मसीहा सिद्ध करने के यत्न में हैं और वह हर हाल में, हर उचित-अनुचित दबाव डाल कर भी रूस-यूक्रेन युद्ध बंद करवाकर रूस से मित्रता करने को प्राथमिकता दो रहे हैं, दूसरी ओर उन्होंने टैरिफ हमले के माध्यम से व्यापारिक विश्व युद्ध तो शुरू कर ही दिया है, वे तो अपने निकटवर्ती देशों को भी नहीं बख्श रहे। उन्होंने अपने मित्र एवं सलाहकार एलन मस्क की सलाह से प्रत्येक वर्ष अमरीका का 500 बिलियन डॉलर बचाने का लक्ष्य तय किया है। हमारे सामने है कि चीनी दूत ने अमरीका में साफ शब्दों में कहा है, ‘यदि अमरीका युद्ध ही चाहता है तो युद्ध ही सही। फिर व्यापार हो या किसी दूसरी तरह का युद्ध, हम आखिर तक लड़ने के लिए तैयार हैं।’
भारत को अमरीकी रणनीति तथा बदलते वैश्विक समीकरणों में भारी नुकसान हो सकता है, परन्तु यदि भारत इस स्थिति में दबाव में आने की बजाय अपने पत्ते ध्यान से खेले तो उसके लिए यह स्थिति रहमत भी बन सकती है।
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