शम्भू और खनौरी सीमाओं का खुलना

लगभग पिछले 13 महीनों से हरियाणा के साथ लगती शम्भू और खनौरी की सीमाएं बंद रहने के बाद अब खोले जाने से लोगों ने सुख की सांस ली है। इस समय में जहां सीमाओं के साथ लगते दर्जनों ही गांव और शहर बुरी तरह प्रभावित हुए थे, वहीं यातायात में आ रही अनेक कठिनाइयों व ठप्प हुए कारोबार ने लोगों के नाक में दम करके रखा था। तंग और बेहद खराब सड़कों से लम्बा रास्ता तय करते हुए दिल्ली को जाने और वहां से इधर आने को कई बार जहां चार घंटों से भी अधिक समय लगता रहा, वहीं इस समय में लोगों ने करोड़ों का अतिरिक्त डीज़ल और पैट्रोल भी खप्त किया है। पंजाब के उद्योग और व्यापार पर भी इसका बेहद विपरीत प्रभाव पड़ा देखा गया।
विगत लम्बी अवधि से प्रदेश बड़ी आर्थिक और  अन्य अनेक तरह की चुनौतियों का सामना करता रहा है। इसके मूलभूत ढांचे का विकास लगभग बंद हो चुका था। यहां अमन-कानून की व्यवस्था भी बुरी तरह बिगड़ी रही है। नशे की भरमार ने जीवन की चाल ही बदल दी है। प्रदेश सरकार ने नई योजनाबंदी करके नशे के बढ़ते प्रचलन और हर तरह के होते अपराधों पर नकेल डालने के लिए कड़े कदम ज़रूर उठाए हैं। इसी क्रम में दो किसान संगठनों द्वारा अपनी दर्जन भर मांगों को लेकर शम्भू और खनौरी में आरम्भ किया गया आन्दोलन भी प्रदेश के विकास और यातायात के लिए एक चुनौती बना हुआ था। इन मांगों के संबंध में केन्द्र और पंजाब सरकार के प्रतिनिधियों की इन दो किसान संगठनों के साथ वर्ष में कई बार बैठकें होती रही हैं परन्तु बात किसी परिणाम पर नहीं पहुंची।
विगत दिवस चंडीगढ़ में हुई बैठक भी बेनतीजा रही, जिसके बाद प्रदेश प्रशासन हरकत में आया। पुलिस ने योजनाबद्ध ढंग से बल प्रयोग करके इन दोनों सीमाओं पर बैठे किसानों को वहां से हटा दिया और दोनों मोर्चों के वरिष्ठ नेताओं को भी उस समय गिरफ्तार कर लिया जब वे चंडीगढ़ से केन्द्र और पंजाब के मंत्रियों की किसानों की मांगों पर विचार करने के लिए 19 मार्च को हुई बैठक में भाग लेने के उपरांत चंडीगढ़ से वापस शम्भू और खनौरी की सीमाओं की ओर जा रहे थे।  इसके साथ ही हरियाणा सरकार द्वारा आन्दोलनकारी किसानों को अपने प्रदेश में दाखिल होने से रोकने के लिए लगाए गए भारी और कड़े अवरोधों को भी तुरंत हटा दिया गया, जिससे भी आम लोगों को सुख की सांस मिली है। दूसरी तरफ दोनों किसान मोर्चों से संबंधित किसानों में उन्हें शम्भू और खनौरी की सीमाओं से ज़बरन उठाने के विरुद्ध भारी रोष पाया जा रहा है। ज्यादातर विपक्षी पार्टियों और उनके नेताओं ने भी किसानों के पक्ष में और सरकार के विरुद्ध बयान दिए हैं और यह भी कहा है कि सरकार को इस आन्दोलन को बातचीत से खत्म करवाने के लिए बड़े कदम उठाने चाहिएं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां और नेताओं ने इस आन्दोलन का अपने-अपने ढंग से लाभ लेने का यत्न किया है। हालात को एक दिशा देने की बजाए उसे अपने-अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने का यत्न करते हुए वह प्रदेश और आम लोगों के हितों से अनभिज्ञ हुए दिखाई  देते रहे हैं। जहां तक किसान आन्दोलन का संबंध है, उन्हें अपनी मांगों के लिए आन्दोलन करने का तो पूरा-पूरा अधिकार है परन्तु उन्हें यह भी देखना चाहिए था कि शम्भू और खनौरी की सीमाओं पर आन्दोलन वर्ष से अधिक समय तक चलते रहने से पंजाब के समूचे हितों पर कैसे प्रभाव पड़ रहे हैं। उन्हें पैदा हुईं स्थितियों के अनुसार अपनी रणनीति और पहुंच में बदलाव करना चाहिए था। नि:संदेह किसान देश के लिए अनाज पैदा करता है। उसकी फसल का उचित मूल्य मिलना और कृषि के व्यवसाय को उत्साहित करना संबंधित सरकारों का अहम कर्त्तव्य होना चाहिए, क्योंकि पीढ़ी-दर-पीढ़ी किसान परिवारों में ज़मीनों के कम होने और  शहरीकरण ने बड़ी सीमा तक कृषि योग्य ज़मीनों को कम कर दिया है और कृषि भूमि भी छोटी हो गई है, जिससे अनेक तरह की समस्याएं दरपेश हुई हैं।
कृषि एक ऐसा व्यवसाय है जिसने व्यापक स्तर पर दशकों तक देश को अनाज सुरक्षा और किसानों एवं मज़दूरों को रोज़गार उपलब्ध करवाया है। इस क्षेत्र में तत्कालीन सरकारों को समूची स्थितियों को देखते हुए ऐसी योजनाबंदी करने को प्राथमिकता देनी पड़ेगी जो प्रदेश के किसानों को सन्तुष्ट करने में सहायक हो सके और किसान वर्ग में पैदा हुई बेचैनी को भी दूर किया जा सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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