जीवन है तो प्रेम है

पिछले दिनों कितने ही प्रेम करने वाले लड़के लड़कियां प्रेम के नाम पर मारे गए। निराशा में आत्महत्या कर गए या फिर अस्वीकार्य होने के नाते कत्ल कर दिए गए। ऐसे में अगर लड़के-लड़की में से एक मुस्लिम वर्ग से हो या दलित हो तो एक अलग तरह की राजनीति देखने में आई है। जिसे मीडिया ने भी खुद दिलचस्पी लेकर खंगाला है और दूर तक विस्तार दिया है। प्रेम को अनेक विद्वानों ने पवित्र और उदार करार दिया है और मानवीय दृष्टिकोण से देखा है लेकिन क्या यह दुर्लभ है? क्या यह सिर्फ कुछ सौभाग्यशाली लोगों के नसीब में होता है? हममें से कितने हैं जो प्रेम को उसके वास्तविक रूप में समझते हैं।
ऐसा नहीं है कि लोग प्रेम को महत्वपूर्ण न समझते हों। वे तो भूखे हैं प्रेम के लिए। जाने कितनी सुखांत और दुखांत प्रेम-कथाएं छोटे पर्दे या बड़े पर्दे पर देखते हैं। जाने कितने प्रेम गीत अपने खाली समय में सुनते हैं लेकिन बहुत कम लोग होंगे जिन्हें लगता हो कि प्रेम के बारे में कुछ जानने सीखने की ज़रूरत है। प्रेम को लेकर बनने वाली धारणाओं में बदलाव आया है। प्रेम तो आज भी अपनी जगह अपने अस्तित्व के साथ अटल है। इस बदलाव में जाहिर है कि एक बड़ा हाथ बाज़ार का भी है। प्रेम की आज़ादी में आर्थिक आज़ादी का भी बड़ा हाथ है। इसे बड़ी उम्र के स्त्री-पुरुषों के प्रेम के सन्दर्भ में भी देखा जा सकता है। हालांकि इसमें भू-मंडलीकरण या कहें बाज़ार ने जो एक चमकते हुए समाज की संरचना प्रकट की उसने भी प्रेम को नए सिरे से देखने समझने की समझ को और उत्साह दिया है।
प्रेम ने सदा जीवन को जीने लायक बनाया है। प्रेम के बिना जीवन नीरस है। प्रेम से स्नेह मिलता है। जीवन मूल्य के रूप में प्रेम का उल्लेखनीय योगदान है।
बिलगाव प्रेम का सबसे मुश्किल ठहराव है। एरिक ने प्रेम के अनेक पक्षों का गहरा अध्ययन किया है। कहा कि विलगाव की भावना घहराहट से जन्म लेती है। दरअसल बिलगाव ही हर तरह की चिंता और घबराहट का स्त्रोत है। बिलगाव का मतलब है कट जाना, अपनी मानवीय शक्तियों का उपयोग करने में अक्षम होना, इसलिए बिलगाव का मतलब हुआ असहायता, दुनिया को पकड़ पाने में, नियंत्रण कर पाने में असमर्थता-चीज़ों को, लोगों को, गतिविधियों को, दूसरे शब्दों में कहें तो यह डर कि मेरे पास दुनिया के प्रहार का जवाब देने की क्षमता नहीं है। इसलिए बिलगाव अक्षीय स्रोत तो है साथ ही यह लज्जा और अपराध-बोध को भी जन्म देता है। बताया कि मनुष्य की सबसे गहरी ज़रूरत अपने बिलगाव को दूर करने की ज़रूरत है। अकेलेपन के कारावास से मुक्त होने की ज़रूरत है। यह पागलपन की तरफ धकेल सकता है। तकनीकी क्रांति सारे मानवीय संबंधों व भावनाओं को डाटा मात्र में बदलने के चक्कर में है। वह इन प्रेम शब्द के अर्थों, रिश्तों व भावों को ही नष्ट कर देना चाहती है ताकि पूंजी और मनुष्य के श्रम और प्रेम के बीच बढ़ रहे अंतर्विरोधी ही खत्म हो जायें। अति तकनीकीकरण, चिपकरण और मशीनीकरण के यह उत्तर आधुनिक युग में हमें प्रेम के मूल उदार रूप की बहाली का अवसर भी देता है। वह हाशिए पर डाल दिए गए भावों को भी बराबर की जगह देता है।
जो दुनिया हमारे सामने है उसमें जीने और रहने के लिए सबसे ज़रूरी है प्रेम। प्रेम हमें उदार बनाता है। प्रेम से हमें पूरा जगत सुंदर लगता है लेकिन प्रेम हथियार नहीं है। कभी भी कोई प्रेम को हथियार की तरह इस्तेमाल न करे। प्रेम योजनाबद्ध ढंग से नहीं हो सकता। दोनों दिल जब तक स्वीकृति न दें तब तक प्रेम की कामना व्यर्थ है।
 

#जीवन है तो प्रेम है