सार्थक नैतिक मूल्यों की पहरेदारी

इस बार अमृतसर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का वर्ष 2025-26 का बजट पास करने के लिए बुलाया आम अधिवेशन बहुत ही तनावपूर्ण माहौल में हुआ। आम की तरह पेश बजट को पास तो कर दिया गया परन्तु इससे पहले बने हालात के कारण एक तरह से यह खानापूर्ति ही की गई, क्योंकि इससे कुछ दिन पहले 40 के करीब शिरोमणि कमेटी सदस्यों ने कमेटी को एक ज्ञापन दिया था, जिसमें पिछले समय में तीन तख्तों के सिंह साहिबान को अनियमित ढंग से हटाने का विरोध करते हुए उनकी दोबारा बहाली की मांग की गई थी। इस विवाद के कारण सिख पंथ में काफी रोष पैदा हुआ था। इस घटनाक्रम ने बहुत से अन्य मुद्दों को भी जन्म दिया है। जैसे कि उच्च धार्मिक पदों पर सुशोभित की जाने वाली शख्सियतों को नियुक्त करने, हटाने और इनके कार्य क्षेत्र संबंधी कोई विधिविधान बनाना बेहद ज़रूरी है ताकि वह अपने कार्यों को बिना किसी दबाव के स्वतंत्र रूप में पूरा कर सकें। इसके साथ-साथ ही उनके द्वारा धार्मिक क्षेत्र में विचरण करती सामाजिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कल्याण के लिए  किए जाने वाले अन्य कार्यों संबंधी भी स्पष्ट व्यवस्था करने की भी ज़रूरत है। 
पिछले लम्बे समय के बाद अकाली दलों के अलग-अलग गुट अपने-अपने बिखराव के कारण पुरातन परंपराओं की रोशनी में मामलों के हल के लिए श्री अकाल तख्त साहिब तक पहुंच करते रहे हैं। अक्सर इन पदों पर सुशोभित जत्थेदार इन झगड़ों में अपने ढंग-तरीके से दखल भी देते रहे हैं, जिस कारण वह समय-समय अनेक विवादों में भी घिरे नज़र आते रहे हैं। बड़ी समस्या यह है कि अकाली दल के गुट जब इन धार्मिक शख्सियतों के पास आपसी विवादों के मुद्दे लेकर जाते हैं और फिर इन मुद्दों के समाधान अपने हितों के अनुसार करवाने के लिए शिरोमणि कमेटी के माध्यम से या प्रत्यक्ष रूप में उन पर अपना प्रभाव डालने का यत्न करते हैं तो सिंह साहिबान की भूमिका संबंधी बड़े विवाद खड़े हो जाते हैं। आजकल भी ऐसा ही होता दिखाई दे रहा है, जबकि सिख धर्म का उपदेश चंहु वर्णों के लिए साझा है तथा इन शख्सियतों ने सिख सिद्धांतों पर चलते हुए पूरी मानवता को दिशा देनी है। इस संदर्भ में अब यह सोचना भी बेहद ज़रूरी हो गया है कि श्री अकाल तख्त साहिब तथा अन्य तख्तों के जत्थेदारों को राजनीतिक पार्टियों की उलझनों में कितना तथा किस सीमा तक हस्तक्षेप करना चाहिए? क्योंकि धार्मिक स्थानों पर नियुक्त शख्सियतों का कौम का समुचित नेतृत्व करने, सिख धर्म का प्रचार-प्रसार करने तथा भाईचारे में आई कमियों को चिन्हित करके उन्हें दूर करने का कार्य बेहद ऊंचा तथा महत्वपूर्ण है।  
शिरोमणि कमेटी की शुरुआत भी सिख ऐतिहासिक गुरुद्वारों की देखभाल और समूचे रूप में भाईचारे तथा समाज के नैतिक मूल्यों को ऊंचा करने की मंशा से हुई थी, परन्तु अक्सर राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने-अपने पक्ष में इसे भुगतने के यत्नों ने विगत लम्बे समय से इनकी आभा को कम करने तथा विवादपूर्ण बनाने का काम किया है। एक ओर शिरोमणि कमेटी का अधिवेशन चल रहा हो, दूसरी ओर भारी संख्या में कुछ धार्मिक संगठनों द्वारा कमेटी के कार्यों की आलोचना की जा रही हो तथा बर्खास्त सिंह साहिबान को उनके पदों पर पुन: सुशोभित करने की मांग उठ रही हो, ऐसी स्थिति भाईचारे तथा समाज को कमज़ोर करने में ही सहायक होती है। यदि लगातार ऐसे विवाद बने रहते हैं और कमेटी द्वारा किये जाने वाले कार्यों में उलझनें पैदा होती रहती हैं तो यह महान संस्था सिख पंथ की नज़रों में अपनी साख गंवा देगी।
जहां तक सिख समाज का संबंध है, आज इसमें हर तरफ से आया बड़ा अवसान देखा जा सकता है जिसे दूर करने की बहुत ज़रूरत है। ऐसा तभी सम्भव हो सकेगा यदि एक साझ की भावना से एकजुट होकर यत्न किया जाए। इससे ही अपनी परम्पराओं की रक्षा की जा सकेगी तथा समय के अनुसार चल कर ही आगे भी बढ़ा जा सकेगा। आज भाईचारे में उठ रहे दवंधों ने इसे बड़ी सीमा तक शक्तिहीन कर दिया है जिससे समूचे माहौल में एक उदासीनता बनी दिखाई देने लगी है, इसे हर हाल में दूर करने की ज़रूरत होगी। इस संदर्भ में पंथ के धार्मिक तथा राजनीतिक नेतृत्व को अपना आत्म-निरीक्षण करना पड़ेगा तथा त्याग एवं कुर्बानी की भावना से आगे आना पड़ेगा करना पड़ेगा।   

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द  

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