देश की सबसे ़गरीब पार्टी है कांग्रेस 

कांग्रेस पार्टी इस समय आर्थिक संकट से गुज़र रही है। पिछले 11 साल से केंद्र की सत्ता से बाहर होने और ज्यादातर राज्यों में चुनाव हारने की वजह से भी कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई है कि वह देश की एक दर्जन राष्ट्रीय और बड़ी प्रादेशिक पार्टियों में सबसे गरीब है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव्स के वेंकेटेश नायक की ओर से किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि पिछले साल के लोकसभा चुनाव में सबसे कम पैसे जुटाने वाली पार्टियों में से एक कांग्रेस है और चुनाव के बाद पार्टियों के खाते मे जो पैसा बचा है, उस लिहाज से भी कांग्रेस सबसे नीचे है। इस अध्ययन में पार्टियों के केंद्रीय मुख्यालय और राज्य कार्यालयों के फंड को शामिल किया गया है। एक दर्जन पार्टियों की सूची में बहुत भारी अंतर के साथ भाजपा सबसे ऊपर है और कांग्रेस सबसे नीचे है। बीच में तमाम प्रादेशिक पार्टियां हैं, जो सरकार में हैं या बरसों से सत्ता से बाहर हैं। हैरानी की बात है कि राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही बहुजन समाज पार्टी के पास भी कांग्रेस से तीन गुना से ज्यादा पैसा है। इस अध्ययन के मुताबिक पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के पास करीब 263 करोड़ रुपये का फंड था और चुनाव के बाद 134 करोड़ बचा। पिछले साल लोकसभा चुनाव शुरू हुआ था तो भाजपा का ओपनिंग बैलेंस करीब 5,922 करोड़ रुपये का था। जून में चुनाव खत्म होने के बाद भाजपा के खाते में 10,107 करोड़ रुपये बचे। 
‘ध्यानाकर्षण प्रस्ताव’ के लिए पैसा
संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के तो एक से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। सबसे बड़ा मामला 2005 में हुआ था, जब 11 सांसदों को संसद में सवाल पूछने के मामले में बर्खास्त किया गया था। उनमें से ज्यादातर भाजपा के सांसद थे। अब भाजपा के शासन वाले महाराष्ट्र में पैसे लेकर सवाल पूछने से भी ज्यादा बड़ा मामला सामने आया है। यह मामला है पैसे लेकर विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाने का। इसका भंडाफोड़ तो उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने किया है, लेकिन भाजपा सहयोगी नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता भी इससे सहमत दिख रहे हैं। उद्धव ठाकरे की शिव सेना के नेता भास्कर जाधव ने गत बुधवार को यह कह कर सनसनी मचा दी कि विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर के कार्यालय को पैसे देकर मैनेज किया गया है। उन्होंने सीधे स्पीकर पर आरोप नहीं लगाया, लेकिन कहा जा रहा है कि कई विधायकों ने उनके कार्यालय पैसे दिए और बदले में उन विधायकों के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। वे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए अलग-अलग मुद्दे उठा रहे हैं। निश्चित रूप से ये मुद्दे उठाने के पीछे उनका कोई हित होगा, जो जांच होने पर ही सामने आएगा। भाजपा की सहयोगी अजित पवार की एनसीपी ने इससे सहमति जताई है और कहा कि अचानक विधानसभा में ढेर सारे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव आने लगे हैं। ज्यादा ध्यानाकर्षण प्रस्ताव आने से विधायकों को बजट पर अपनी बात रखने का मौका नहीं मिल पा रहा है। अब देखना है कि इसकी जांच कैसे होती है या नहीं होती है! 
फिर इफ्तार की बहार 
रमज़ान के महीने में राजनेताओं द्वारा इफ्तार की दावतें आयोजित करने का चलन पुराना है। एक समय था, जब अटल बिहारी वाजपेयी और दूसरे भाजपा नेता भी इफ्तार की दावतों में जालीदार टोपी लगा कर शरीक होते थे। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद यह चलन काफी हद तक कम हो गया, लेकिन इस साल दिल्ली से लेकर पटना और मुम्बई तक इफ्तार की धूम है। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के अलावा भाजपा भी इफ्तार की दावत दे रही है और उसके नेता भी खुल कर इनमें शामिल हो रहे हैं। इनमें सबसे चर्चित इफ्तार दावत भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे की थी। इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में दी गई इस दावत में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी शामिल हुईं तो केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू भी शामिल हुए। इफ्तार के बाद रेखा गुप्ता ने कहा कि रमजान में राम और दिवाली में अली आता है। उन्होंने भारत की सर्वधर्म समभाव वाली संस्कृति की बात कही। उधर मुम्बई में भाजपा के सहयोगी अजित पवार ने इफ्तार की दावत दी और कहा कि मुस्लिम भाइयों को आंख दिखाने वालों को छोड़ेंगे नहीं। बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं तो वहां चारों तरफ  इफ्तार की धूम है। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने मुख्यमंत्री आवास में दावत रखी, जिसमें भाजपा के उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी सहित तमाम नेता शामिल हुए तो दूसरी ओर लालू प्रसाद ने दावत देकर मुस्लिम जमात में अपना समर्थन दिखाया। कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने दिल्ली में इफ्तार की दावत दी, जिसमें राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हुए। 
कहां सुरक्षित है बोलने की आज़ादी?
मुम्बई में स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के खिलाफ हो रहे मुकद्दमों और उनका स्टूडियो तोड़े जाने के खिलाफ खूब आवाज़ें उठ रही हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा के शासन में बोलने की आज़ादी सुरक्षित नहीं है, लेकिन सवाल है कि क्या बोलने की आज़ादी पर खतरा सिर्फ भाजपा शासित राज्यों में ही है या दूसरी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में भी यही स्थिति है? चेन्नई में एक यूट्यूबर के घर पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया क्योंकि उस यूट्यूबर ने स्वच्छता और पेयजल के विभाग की पोल खोली थी। कुणाल कामरा की स्टैंडअप कॉमेडी भी यूट्यूब के लिए ही थी। उसी तरह चेन्नई के यूट्यूबर ने सरकारी विभाग में घोटाले की पोल खोलने वाला वीडिया बनाया तो दर्जनों लोगों की भीड़ ने घर पर हमला कर दिया। परिवार के सदस्यों को डराया, धमकाया और तोड़फोड़ की। उसके बाद यह धमकी देकर लौटे कि अगर अगली बार ऐसे वीडियो आए तो सबको घर में बंद करके आग लगा देंगे। संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रही एम.के. स्टालिन की सरकार चुप है। ऐसे ही तेलंगाना में दो यूट्यूबर्स को कथित रूप से सरकार विरोधी वीडियो डालने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। अदालत ने उनको ज़मानत दे दी, लेकिन मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की इस बात का कोई प्रतिकार नहीं है कि अगर उनकी सरकार पर इस तरह के हमले हुए तो नंगा करके सड़क पर परेड करवा देंगे। कुछ समय पहले ममता बनर्जी का कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट की गिरफ्तारी की खबर भी आई थी।
कर्नाटक में भाजपा के आका
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को भाजपा आलाकमान ने भले ही अनौपचारिक तौर पर सक्रिय राजनीति से अलग कर घर बैठा दिया हो, लेकिन वह जब तक यह साबित करते रहते हैं कि कर्नाटक भाजपा के तो बॉस वह ही है, उनका और उनके बेटे कर्नाटक के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र का विरोध करने वाले वरिष्ठ नेता बासनगौड़ा पाटिल यतनाल को अनुशासनहीनता की कार्रवाई करते हुए छह साल के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया है। अभी सिर्फ  एक ही नेता के खिलाफ  कार्रवाई हुई है, लेकिन इसके ज़रिए उन का साथ देने वाले सभी नेताओं को संदेश दे दिया गया है। 
असल में विधानसभा का चुनाव हारने के बाद से ही कर्नाटक भाजपा के कई नेताओं ने येदियुरप्पा और उनके बेटे के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। बसनगौड़ पाटिल यतनाल इस विरोध का चेहरा है, लेकिन पर्दे के पीछे से इसमें भाजपा के संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष और पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का भी नाम लिया जा रहा है। इसके अलावा पार्टी के विधायक रमेश जरकिहोली भी इसमें शामिल बताए जाते हैं। अभी इनमें किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। लेकिन बसनगौड़ा यतनाल को पार्टी से निकाल भाजपा नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि कर्नाटक में कम से कम अभी तो वही होगा, जो येदियुरप्पा चाहेंगे। अब देखना है कि उनके बेटे को पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर बनाए रखा जाता है या नहीं। इस विवाद की वजह से ही कर्नाटक में भाजपा संगठन का चुनाव लंबित है।

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