पूर्वी तथा पश्चिमी पंजाब की संगीतमय व अकादमिक साझ

मैंने अपनी आयु के पहले 14 वर्ष अखंड भारत का आनन्द लिया है। यह बात अलग है कि वर्ष 1947 तक मैंने लाहौर, सियालकोट, गुजरावालां, शेखूपुरा तथा रावलपिंडी नहीं देखे थे। इनका ज़िक्र मैंने अपने बुज़ुर्गों तथा उनके साथियों से सुना था या पाठ्य-पुस्तकों में ही पढ़ा था। ये तथा ऐसे अन्य अनेक स्थान मैंने विगत 25-30 वर्षों में देखे हैं। इन वर्षों की पाकिस्तान यात्राओं में मुझे उस तरफ के निवासियों की मुहब्बत तथा मेहमान नवाज़ी ने बहुत प्रभावित किया है। उनके सलाम का कोई जवाब नहीं। वे बायां हाथ सीने पर रख कर दायें हाथ से सलाम कहते हैं और मेहमानों का मन मोह लेते हैं। इस मुहब्बत का बड़ा कारण 1947 में एक-दूसरे से टूटना भी है। 
चाहे सन् सैंतालीस के विभाजन को पौनी सदी हो चुकी है। इस तरफ वाले भी उस पंजाब को किसी न किसी रूप में याद करते रहते हैं। विशेषकर पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला तथा चंडीगढ़ स्थित पंजाब कला परिषद् के माध्यम से पंजाब की संगीत परम्परा, विरसा, वर्तमान तथा भविष्य को समर्पित मार्च माह की तीन दिवसीय कांफ्रैंस इसका ताज़ा परिणाम है। इसमें विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. कर्मजीत सिंह सहित डा. नीरा ग्रोवर, निवेदिता सिंह, नरेन्द्र कौर मुल्तानी ही नहीं, कनाडा से पहुंचे रुपिन्द्र सिंह मल्ही तथा पाकिस्तान की नबीला रहमान ने भी शमूलियत की। यहां पंजाबी संगीत की अलग-अलग सिनफों के हवाले से पंजाब की संगीत परम्परा की उत्तमता उजागर करते हुए वर्तमान पीढ़ी को इससे भलीभांति अवगत करवाने पर ज़ोर दिया गया। विशेष मेहमान के रूप में उपस्थित हुए प्रसिद्ध लोक गायक पम्मी बाई ने विश्वविद्यालय की ओर से विरासती संगीत तथा लोक नाच संबंधी की गई खोज का विशेष रूप से ज़िक्र किया। नबीला रहमान ने कहा कि आवाज़ तथा खुशबू को रोका नहीं जा सकता। उन्होंने संगीत तथा इससे जुड़े अकादमिक कार्यों की बेहतरी के लिए दोनों प्रांतों के शैक्षणिक तथा अनुसंधान संस्थानों को संस्थागत स्तर पर साझ कायम करने की ज़रूरत पर बल दिया। 
जिस सत्र में पंजाब की शास्त्री संगीत परम्परा पर चर्चा हुई, वहां कोलकाता से पहुंचे पटियाला घराने के कलाकार विदुषी अंजना नाथ ने शास्त्री गायन की पेशकारी भी की। इस सत्र में विशेष व्याख्यान देने के लिए डा. मुहम्मद ज़़फर, पंजाबी विश्वविद्यालय, लाहौर ने विभाजन के बाद पाकिस्तान में शास्त्री संगीत तथा संगीतकारों को दरपेश समस्याओं बारे चर्चा की। 
कांफ्रैंस का यह सत्र पंजाब की वादन संगीत परम्परा थी जिसमें तबला वादन से जोड़ी वादन के प्रयोग को श्री गुरु अर्जन देव के समय से जोड़ कर बहुत तर्कपूर्ण विचार प्रकट किए गए। यहां परम्परागत शास्त्री पक्ष में क्रियात्मक रूप में तबले तथा पखावज के खुले वादन बारे भी विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई। इस कांफ्रैंस में पंजाब की गुरमति संगीत परम्परा, लोक संगीत परम्परा तथा सूफी संगीत परम्परा का गुणगान भी खूब हुआ। 
अंतिम दिन पंजाबी गायकी में नये रूझानों की बात करते हुए साहित्यिक गायकी तथा प्रगतिशील गायकी बारे भी चर्चा हुई। विशेषकर अस्थायी तथा बाज़ारू गायकी के मुकाबले साहित्यिक गायकी को प्रचारित करने की ज़रूरत व्यक्त करके तथा अत्याधुनिक तकनीक के कारण गायकी के हो रहे नुकसान का हवाला देकर पाकिस्तान से आए जनाब मसूद मल्ली ने रेडियो लाहौर के हवाले से सूफी गायकी के प्रसार बारे विवरण दिया तथा खुशी व्यक्त की कि दोनों पंजाबों के मध्य संगीत के हवाले से ऐसा संवाद हो रहा है। कांफ्रैंस के विदायगी सत्र में पंजाब के विरासती संगीत को सम्भालने में आकाशवाणी की भूमिका का ज़िक्र करते हुए प्रसिद्ध गायिका डौली गुलेरिया ने आकाशवाणी की सार्थक भूमिका की प्रशंसा करते हुए आकाशवाणी केन्द्रों में कार्यशील कर्मियों की कम हो रही संख्या बारे चिन्ता व्यक्त की। तेज़ तर्रार निंदर घुगियाणवी ने पंजाबी गायकी से जुड़े रोचक किस्से साझा किए।
संगीत विभाग से डा. ज्योति शर्मा ने कांफ्रैंस रिपोर्ट प्रस्तुत की और डा. जसबीर कौर ने कांफ्रैंस में शामिल होने वालों का प्रतिनिधित्व करते हुए अपने विचार पेश करते हुए बताया कि कांफ्रैंस में कुल 150 से अधिक पेपर पढ़े गए और पंजाब व पंजाब से बाहर से आए अध्यापकों तथा बुद्धिजीवियों ने इस कांफ्रैंस में भाग लिया। यह अपनी किस्म की पहली संगीतक कांफ्रैंस होकर सम्पन्न हो गई।
इस अवसर पर पंजाब कला परिषद्, चंडीगढ़ के चेयरमैन स्वर्णजीत सिंह सवी तथा सदस्य अमरजीत ग्रेवाल ने कांफ्रैंस के सफल आयोजन के लिए पंजाबी विश्वविद्यालय के संगीत विभाग को बधाई दी और पंजाब के नव-सृजन संबंधी इसको एक सार्थक कदम बताया। पंजाब के नव-सृजन के महोत्सवों के अधीन करवाई गई इस कांफ्रैंस के सात अकादमिक सत्रों में लगभग पंजाब के विशेष व्याखानकारों तथा मेहमानों ने शमूलियत की। पंजाब के संगीत के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर बड़ी संख्या में पेपर प्रस्तुत किए गए। इस कांफ्रैंस के माध्यम से यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ कि कला एवं संस्कृति के हवाले से पूर्वी तथा पश्चिमी पंजाब के बीच संवाद तथा आदान-प्रदान का बेहतर तरीका होना बेहद ज़रूरी है। इसलिए कलाकारों, संगीत के विद्वानों तथा अनुसंधानकर्ताओं के दोनों ओर आने-जाने का ज़रिया आसान बनाया जाए तथा ऑनलाइन विधि के स्थान पर आपसी मेल-मिलाप को प्राथमिकता दी जाए। दोनों पंजाबों के गुरमति संगीत एवं भाषा विकास से जुड़ी डा. जसबीर कौर एक प्रकार से इस कांफ्रैंस की रूह-ए-रवां भी हो गई। 
अंतिका 
(तरसेम सफरी)
गम बड़े, हंझू बड़े, सदमे बड़े,
दिल मेरा धनवान बणदा जा रिहै। 

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