‘मेक इन इंडिया’ का लक्ष्य अभी दूर

जनधन खाते से लेकर हर साल युवाओं के लिए दो करोड़ नौकरियां पैदा करने तक 2014 से भाजपा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सभी प्रचार-प्रसार एक बड़ी विफलता साबित हुए हैं। पिछले कुछ सालों में भी भाजपा की चुनावी मशीनरी या आधिकारिक एजंसियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इन दो वायदों का कभी ज़िक्र नहीं किया, लेकिन उनका सबसे चर्चित और महत्वाकांक्षी कार्यक्रम मेक इन इंडिया था, जिसकी घोषणा केंद्र में उनके कार्यभार संभालने के तुरंत बाद की गयी थी। 
23 अरब अमरीकी डॉलर की उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, जो 2021 में मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशन्स (एमआईआई) कार्यक्रम का प्रमुख कार्यक्रम है, के बारे में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप 2025 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक होने के साथ भारत दुनिया का उत्पादन केंद्र बन जायेगा। अब 2025 आ गया है, लेकिन सरकार ने बिना किसी आधिकारिक घोषणा के चुपके से ‘मेक इन इंडिया’  के लिए बनायी गयी 23 अरब डॉलर की पीएलआई योजना को समाप्त कर दिया है। 
इस योजना का विस्तार 14 पायलट क्षेत्रों से आगे नहीं किया जायेगा और उत्पादन की समय सीमा नहीं बढ़ायी जायेगी। सरकार की विफलता बहुत बड़ी थी। मेक इन इंडिया और संबंधित पीएलआई योजना की नीतियों को तैयार करने में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा दिया गया नेतृत्व कंपनियों को प्रेरित करने और नियामक और नौकरशाही बाधाओं को दूर करने में पूरी तरह विफल रहा। इसका एक मुख्य उद्देश्य चीन से आने वाले अमरीकी और अन्य विदेशी निवेशों में से कुछ को भारत में स्थानांतरित करना था। उद्देश्य न केवल अपूर्ण रहा, बल्कि प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार 2025 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का हिस्सा 25 प्रतिशत के वादे के विपरीत अभी 14.3 प्रतिशत पर अटका हुआ है। विरोधाभास यह है कि पीएलआई योजना की शुरुआत के समय सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का हिस्सा 15.4 प्रतिशत था। इसलिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा पीएलआई योजना के पिछले चार वर्षों के मुकाबले कम हो गया। 
पिछले दिनों भारतीय उद्योग के लिए बुरी खबर आई. जिसके कारण विदेशी निवेशकों और प्रतिस्पर्धियों, खासकर चीन की ओर से तत्काल प्रतिक्त्रिया आयी। गत बुधवार तक सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर पीएलआई योजना की समाप्ति पर कोई बयान जारी नहीं किया गया, हालांकि पूरे भारतीय उद्योग के लोग इसके प्रभाव का आकलन कर रहे हैं। पीएलआई योजना में भाग लेने वाले कई लोगों ने कार्यक्रमों को फिर से शुरू करने पर काम करना शुरू कर दिया है। जानकारी के अनुसार कार्यक्रम में भाग लेने वाली कई फर्में उत्पादन शुरू करने में विफल रहीं, जबकि विनिर्माण लक्ष्य को पूरा करने वाली अन्य फर्मों ने पाया कि भारत सब्सिडी का भुगतान करने में धीमा है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा संकलित कार्यक्रम के विश्लेषण के अनुसार अक्तूबर 2024 तक भाग लेने वाली फर्मों ने कार्यक्रम के तहत 151.93 अरब डॉलर मूल्य के सामान का उत्पादन किया था, जो मोदी सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य का 37 प्रतिशत था। पता चला है कि भारत ने केवल 1.73 बिलियन डालर का प्रोत्साहन जारी किया था, जो आवंटित धन का 8 प्रतिशत से भी कम है।
भारतीय व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि अत्यधिक लाल फीताशाही और नौकरशाही की सावधानी ने पीएलआई योजना की प्रभावशीलता को बाधित करना जारी रखा है। एक विकल्प के रूप में भारत संयंत्र स्थापित करने के लिए किये गये निवेश की आंशिक रूप से प्रतिपूर्ति करके कुछ क्षेत्रों का समर्थन करने पर विचार कर रहा है, जिससे फर्मों को दूसरे के उत्पादन और बिक्री की प्रतीक्षा करने की तुलना में लागत को तेज़ी से वसूलने की अनुमति मिलेगी। नवीनतम निर्णय भारत और अमरीका के बीच नई दिल्ली में व्यापार वार्ता के संदर्भ में हुआ है, जो भारतीय वस्तुओं पर पारस्परिक शुल्क लगाने की ट्रम्प की धमकी की छाया में है। पीएलआई योजना की जगह लेने वाली वैकल्पिक योजना को वैश्विक स्तर पर नये व्यापार युद्ध की स्थिति को ध्यान में रखना होगा। विदेश व्यापार के एक प्रमुख विशेषज्ञ बिस्वजीत धर का मानना है कि पीएलआई योजना भारत के पास देश के विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का संभवत: आखिरी मौका था। उनके अनुसार यदि इस तरह की बड़ी योजना विफल हो जाती है, तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कुछ भी सफल होने वाला है?
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का योगदान केवल 13 प्रतिशत है, जो चीन के 26 प्रतिशत और वियतनाम के 24 प्रतिशत से काफी कम है। अंग्रेज़ी दैनिक ग्लोबल टाइम्स का विश्लेषण बताता है कि ये आंकड़े एक गहरी प्रणालीगत अस्वस्थता को दर्शाते हैं। भारत के विनिर्माण विकास की वास्तविकता यह दर्शाती है कि मानवीय कारक निर्णायक बना हुआ है जिसके लिए औपनिवेशिक संस्थाओं और वैचारिक ढांचों से प्रस्थान की आवश्यकता है, जिसमें संस्थागत समायोजन और नवाचार भी शामिल है। गत वर्ष 22 अक्तूबर को रूसी शहर कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शीजिनपिंग के बीच हुई बातचीत के बाद से भारत-चीन संबंधों में सुधार हुआ है। (संवाद)

#‘मेक इन इंडिया’ का लक्ष्य अभी दूर