बांग्लादेश के बदलते सुर से भारत को सतर्क रहना चाहिए

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने भारत और बांग्लादेश के संबंधों पर कहा कि हमारे रिश्ते बेहद मज़बूत हैं। बस कुछ गलतफहमियां हैं, जिन्हें दूर करने की कोशिश की जा रही है। यूनुस किन रिश्तों के मज़बूत होने की बात कर रहे हैं और किन गलतफहमियाें की बात कर रहे हैं? यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार ने भारत से दूरियां बढ़ाने की कोई कसर नहीं छोड़ी। वहां हिन्दुओं एवं मन्दिरों पर कहर बरपाया गया, पाकिस्तान के साथ दोस्ती बढ़ाने की कवायद करते हुए भारत को डराने की कोशिशें हुई, कट्टरपंथी एवं जिहादी ताकतों को सहयोग, समर्थन और संरक्षण दिया गया। ऐसे हालात पैदा कर अब यूनुस किन रिश्तों की बात कर रहे हैं। बांग्लादेश का भारत-विरोधी रवैया दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, बल्कि विडम्बनापूर्ण बना है। भारत का विरोध बांग्लादेश को कितना महंगा पड़ रहा है, इसका अनुमान बांग्लादेश की बिगड़ती अर्थ-व्यवस्था, शांति-व्यवस्था एवं अराजकता को देखते हुए सहज ही लगाया जा सकता है। बांग्लादेश में अराजकता, हिंसा एवं जर्जर होते हालात को मोहम्मद यूनुस सरकार नियंत्रित नहीं कर पा रही है। मुल्क अभी भी भीड़ की हिंसा की उन घटनाओं से उबर नहीं रहा है, जो शेख हसीना को सत्ता से हटाने वाले आंदोलन के बाद शुरू हुई थीं। यूनुस से क्षेत्र में शांति व सद्भाव की जो उम्मीदें थी, उसमें उन्होंने मुस्लिम कट्टरपंथियों को आगे करके निराश ही किया है। यदि भारतीय प्रधानमंत्री बैंकाक में यूनुस से वार्तालाप करते हैं तो उन्हें उनके इरादों को लेकर सतर्क रहने की ज़रूरत है। 
भारत प्रारंभ से बांग्लादेश का सहयोगी एवं हितैषी रहा है, इसी कारण उसने पिछले डेढ़ दशकों में जो आर्थिक तरक्की की, छह फीसदी से अधिक दर से जीडीपी को बढ़ाया और 2026 तक विकासशील देशों के समूह में शामिल होने का सपना देखा, उन सब पर मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार की संकीर्णतावादी एवं दुराग्रही सोच के कारण काली छाया मंडराने लगी है। बांग्लादेश में भारत विरोधी वातावरण तैयार किया जा गया, वहां हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले की घटनाओं पर भारत की चिंताओं के बावजूद गंभीरता नहीं दिखाई गयी और अल्पसंख्यक हिन्दुओं के दमन को रोकने के लिए ज़रूरी कदम नहीं उठाए गए। इन सब स्थितियों के कारण आज वहां कानून-व्यवस्था के सामने समस्या पैदा हो गई है, बांग्ला राष्ट्रवाद की वकालत करने वालों पर खतरा मंडराने लगा है, प्रगतिशील मुस्लिमों एवं अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं और बंगबंधु व मुक्ति संग्राम के इतिहास को मिटाने का प्रयास हो रहा है। 
बांग्लादेश की यह हालत इसलिए हुई है, क्योंकि मोहम्मद यूनुस सरकार आम जन की अपेक्षाओं के अनुरूप चुनौतियों से लड़ पाने में नाकाम रही है और भारत से टकराव पैदा करके उन्होंने अपने पांवों पर खुद कुल्हाड़ी चलाई है। बांग्लादेश के शासकों और विशेषत: यूनुस सरकार ने विवाद के नये-नये मुद्दे तलाश कर दोनों देशों के आपसी संबंधों को नेस्तनाबूद किया है। आज वहां संवैधानिक, राजनीतिक वैधता का संकट तो गहराया ही है, साथ ही लोकतांत्रिक मूल्य भी धूमिल हो रहे हैं। 
बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद वहां की अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे मोहम्मद यूनुस भले ही नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हो, लेकिन उनकी सोच एवं कार्य-पद्धति में कट्टरवाद एवं भारत-विरोधी मानसिकता है। भले ही वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से वार्ता करके भारत से दोस्ती का नाटक करें, लेकिन उनकी नीयत पर भरोसा नहीं किया जा सकता। चीन के प्रभाव में आकर बांग्लादेश उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन है। चीन ने वहां महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है और वह बांग्लादेशी सेना के हथियारों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।

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