शांति व भाईचारक साझ का त्योहार ‘ईद-उल-िफतर’

ईद-उल-िफतर पर विशेष

भारत देश अलग-अलग धर्मों, जातियों, भाषाओं आदि का गुलदस्ता है। यहां प्रत्येक धर्म के लोग अपने त्योहारों को आज़ादी से मनाते हैं। देश के इस गुलदस्ते का एक अहम हिस्सा मुस्लिम समुदाय है। इस समुदाय के लोग यहां अपने त्योहार श्रद्धा व उत्साह से मनाते हैं। ईद-उल-़िफतर मुस्लिम समुदाय का प्रमुख त्योहार है।
ईद अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है त्योहार या दावत तथा ईद-उल-़िफतर से अभिप्राय है रोज़ों को मुकम्मल करने वाला त्योहार। यह त्योहार पहली बार अरब के मदीना शहर में हज़रत मुहम्मद (स.) तथा उनके अनुयायियों ने 624 ई. में मनाया था। यह त्योहार अरबी माह (जो हमारे देशी महीनों की तरह ही चांद के अनुसार होते हैं) में पूरे रमज़ान माह के रोज़े रखने के बाद आगामी माह सवाल का चांद देख कर सवाल के पहले दिन मनाया जाता है। ईद-उल-़िफतर से पहले रमज़ान का पूरा एक महीना मुस्लिम पुरुष तथा महिलाएं रोज़ा रखते हैं जो सुबह सूर्य उदय से लगभग डेढ़ घंटा पहले अर्थात लगभग चार बजे से शुरू होकर सूर्य अस्त तक यानी शाम सात बजे तक चलता है। रोज़े के दौरान कोई भी रोज़ेदार जहां कुछ खा या पी नहीं सकता, वहीं कोई भी ऐसा कार्य करने से बचते हैं जिससे अल्लाह नाराज़ होता है। जो मुसलमान रोज़ा के पूरे माह की तपस्या से अपने शारीरिक अंगों अर्थात दिमाग, आंखों, ज़ुबान, हाथ-पांवों तथा कानों को इस्लाम के सिद्धांतों के दायरे में रख कर पूरा दिन व्यतीत करके अनुशासन में रखने की कोशिश करके ईद मनाता है, उसकी खुशी तो अलग स्तर की होती है।
ईद-उल-़िफतर में सिर्फ अमीर ही नहीं, अपितु गरीब लोग भी समान रूप में शामिल हो सकें, इसलिए ईद की नमाज़ अदा करने से पहले पहला सदका तुल फितर दान (फितराना) देना प्रत्येक मुसलमान के लिए ज़रूरी होता है। यह फितराना रोज़े के दौरान हुई गलतियों की पूर्ति के लिए परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए लगभग दो किलो अनाज या इस के बराबर की कीमत गरीबों, मस्कीनों, मुहताजों को देना वाजिब (ज़रूरी) है। एक बार हज़रत मुहम्मद साहिब ईद की नमाज़ पढ़ने के लिए जा रहे थे कि मदीने की गलियों में नये कपड़े पहने बच्चे खेल रहे थे और उनके पास ही एक बच्चा फटे पुराने कपड़ों में उदास खड़ा था। हज़रत मुहम्मद साहिब ने उससे पूछा कि बेटा तू खुशी क्यों नहीं मना रहा तो उसने कहा कि मैं कैसे खुशी मनाऊं। मेरे माता-पिता इस दुनिया में नहीं हैं। हज़रत मुहम्मद साहिब उसे अपने साथ घर ले आए और उसे नहलाया तथा नये कपड़े पहना कर कहा कि आज से मुहम्मद (स) की पत्नी आयशा तेरी मां तथा मुहम्मद तेरे पिता हैं।
हज़रत मुहम्मद फरमाते हैं कि ईद रब की ओर से रोज़ा रखने वालों के लिए एक विशेष ईनाम है। ईद के दिन अल्लाह अपने बंदों के बारे फरिश्तों को इरशाद फरमाते हैं, ऐ फरिश्तो! उस मज़दूर की मज़दूरी क्या होनी चाहिए जो अपना काम (रमज़ान के रोज़े) पूर्ण कर लेता है? फरिश्ते जवाब देते हैं, उस का बदला यह है कि उसे पूरी-पूरी मज़दूरी दी जाए। तब अल्लाह ताअला फरमाते हैं, ऐ मेरे फरिश्तो! आप गवाह रहना कि मैं अपने बंदों को उनके रोज़ों, जो उन्होंने रमज़ान के महीने के दौरान रखे और उन नमाज़ों, जो उन्होंने रमज़ान के महीने के दौरान रात को पढ़ीं, के बदले अपनी रज़ामंदी तथा मग्गफिरत (माफी) से नवाज़ता हूं।
ईद-उल-फितर के दिन सभी मुसलमान पुरुष, महिलाएं तथा बच्चे नये कपड़े पहनते हैं। सभी मुसलमान पुरुष गांव या शहर से बाहर ईदगाह के खुले मैदान में इकट्ठे होकर ईद की नमाज़ अदा करते हैं। भारत में ईद की विशेष नमाज़ पढ़ने के बाद आपसी भाईचारे, साझ, प्यार-मुहब्बत तथा देश के विकास के लिए जहां दुआ की जाती है, वहीं आपस में एक दूसरे के गले मिला जाता है जिसमें मुसलमान ही नहीं, अपितु दूसरे धर्मों के लोग भी अपने मुसलमान भाइयों और मित्रों को ईद की मुबारकबाद देने के लिए गले मिलते हैं। इस त्योहार के अवसर पर बने विशेष मीठे पकवान मिल-जुल कर खाते हैं। इसलिए ईद-उल-फितर को मीठी ईद का त्योहार भी कहा जाता है। अंत में कह सकते हैं कि ईद-उल-़िफतर का त्योहार जहां परहेज़गारी, सब्र तथा रब पर रखे विश्वास का अल्लाह ताअला की ओर से मिला विशेष तोहफा है, वहीं आपसी भाईचारक साझ, प्यार-मुहब्बत तथा शांति का भी त्योहार है, जो सभी धर्मों के लोगों के साथ मिल कर खुशियां तथा मिठाइयां बांट कर मनाया जाता है। 
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