रेल विकास : एक पहलू यह भी
भारतीय रेल विकास के नित्य नये अध्याय लिख रहा है। अनेक तीव्रगामी ट्रेन संचालित की जा रही हैं। मुम्बई-अहमदाबाद के मध्य तो हाई स्पीड रेल बुलेट ट्रेन चलने की योजना है। दिसम्बर 2023 तक बुलेट ट्रेन संचालन की तैयारी को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, परन्तु अभी तक इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है। इसकी अधिकतम गति 320-350 किमी प्रति घंटे की बताई जा रही है। इससे भी आगे बढ़ा कर 1300 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से हाइपर लूप चलाने का भी प्रस्ताव है। अनेक वंदे भारत सेमी हाई स्पीड गाड़ियां चल चुकी हैं। इसके अतिरिक्त नमो भारत रैपिड रेल जिसे पहले वंदे भारत मेट्रो के नाम से जाना जाता था, वह भी अहमदाबाद और भुज के बीच पहले से ही चल रही थी। अब दिल्ली, गाज़ियाबाद व मेरठ के बीच लगभग 180 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चल रही है। इसी तरह अनेक रेलवे स्टेशन का नवीनीकरण किया जा रहा है। अनेक प्रमुख रेल स्टेशन पर स्वचालित सीड़ियां लगाई गयी हैं। अनेक रेल स्टेशन पर एक प्लेटफार्म से दूसरे पर जाने के लिये लिफ्ट लगाई गयी हैं। भीड़-भाड़ वाले स्टेशन पर नए प्लेटफॉर्म बनाये गए हैं।
उधर रेल परिवहन क्षेत्र में भी बड़ी क्रांति हुई है जिसके तहत भारत के समर्पित मालवाहक गलियारे (डीएफसी) पर विशेष रेलवे ट्रैक निर्मित किये गए हैं। यह ट्रैक केवल माल परिवहन के लिए डिज़ाइन किये गए हैं जिनका मकसद माल ढुलाई की क्षमता और गति को बढ़ाना, माल परिवहन की दक्षता और गति में सुधार करना, मौजूदा रेल नेटवर्क पर ट्रेन की संख्या को कम करना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
परन्तु इन सब के बावजूद रेल यात्रियों की सुविधा, सुरक्षा व स्वास्थ्य आदि से जुड़े अनेक बुनियादी सवाल अभी भी उसी तरह बरकरार हैं। सरकार भले ही वंदे भारत, राजधानी व शताब्दी जैसी ट्रेनों के संचालन पर इतराती हो परन्तु हकीकत तो यह है कि देश की अधिकांश आम जनता इनके अतिरिक्त चलने वाली दूसरी लगभग तीन हज़ार सामान्य मेल व एक्सप्रेस गाड़ियों से ही यात्रा करती है। और इन गाड़ियों में यात्रियों को अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सबसे बड़ी समस्या तो बर्थ व सीट की उपलब्धता की ही है। लंबी दूरी की गाड़ियों में सामान्य कोच की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। न केवल यात्री लटक कर या दरवाज़ों पर खड़े होकर यात्रा करते हैं, बल्कि कभी-कभी तो यह यात्री शौचालय में घुसकर उसे भीतर से बंद कर अपनी यात्रा पूरी करते हैं। जिससे ट्रेन के अन्य यात्रियों को परेशानी होती है। जब यही भीड़ अनियंत्रित होती ही तो स्लीपर क्लास से लेकर एसी कोच तक में अनिधकृत रूप से घुस जाती है। ज़्यादा भीड़ देख कर टिकट निरीक्षक भी उन्हें अनदेखी कर देते हैं। परिणामस्वरूप आरक्षित यात्रियों व उनके सामन की सुरक्षा तो खतरे में पड़ जाती है।
दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र व दक्षिणी राज्यों से बिहार बंगाल की तरफ जाने वाली गाड़ियों में ए सी श्रेणी में उपलब्ध कराये जाने वाले कंबल व चादरों की तो दशा ही मत पूछिए। बहुत सौभाग्यशाली होता होगा वह यात्री जिसे धुली हुई चादर नसीब हो जाती हो अन्यथा पूर्व के यात्रियों द्वारा प्रयुक्त चादरें ही तह कर और वेंडर के खाकी लिफाफे में पैक कर उस पर टेप लगाकर पुन: दूसरे यात्रियों को दे दी जाती हैं । निश्चित रूप से इस तरह के कंबलों व चादरों का यात्रियों को आवंटित किया जाना यात्रियों के आराम व सुविधा देने से अधिक बीमारियों व संक्रमण को न्यौता ज़रूर देता है। रेल मंत्रालय को इस दुर्व्यवस्था से सख्ती से निपटने की ज़रुरत है। मेल एक्सप्रैस गाड़ियों में मांगने वाले तथा लुटेरा गिरोह भी सक्रिय रहते हैं। यह यात्रियों से पैसों की उगाही करते हैं।
एक और महत्वपूर्ण समस्या खानपान की आपूर्ति की है। चाहे वह चलती गाड़ी के कोच में यात्रियों को उपलब्ध कराया जाने वाला चाय, भोजन हो या फिर रेलवे प्लेटफॉर्म पर बिकने वाली खान-पीने की वस्तुएं भी स्तरीय नहीं होतीं। कभी भी आपको कोई यात्री ऐसा नहीं मिलेगा जो रेल में दी जाने वाली चाय या भोजन आदि की तारीफ करता नज़र आए, परन्तु लंबे सफर के कारण भूखा-प्यासा यात्री बार-बार ऐसी वस्तुओं को खरीदने के लिये मजबूर हो जाता है। ऐसे भी कई गाड़ियों में दिए जा रहे घटिया खाने की वीडियो भी वायरल हो जाते हैं।
ज़रा सोचिये कि जब प्रत्येक व्यक्ति रेलवे के इन कुप्रबन्धनों से भली भांति अबगत हैं तो क्या रेल विभाग इन बातों का पता नहीं होगा? रेलवे स्टेशनों का नवीनीकरण कर या उन्हें भगवा रंग देने से यात्रियों को बुनियादी परेशानियों से निजात नहीं मिलने वाली। रेल यात्रियों को सर्वप्रथम टिकट के बदले सीट, उनकी सुरक्षा, सफाई व शुद्ध एवं साफ भोजन चाहिये। रेल विकास का ढोल पीटने वालों को रेल यात्रियों की परेशानियों से जुड़े इन पहलुओं पर भी गौर करना चाहिये तथा इनका यथाशीघ्र समुचित समाधान भी किया जाना चाहिये।