टैरिफ वृद्धि के कारण अमरीकी दवा बाज़ार में मची है उथल-पुथल

न्यूयॉर्क में क्या भारत भी चीन की तर्ज पर भारतीय वस्तुओं पर अमरीकी शुल्क के विरुद्ध जवाबी टैरिफ लगा सकता है, क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने दोस्ताना संबंधों के बावजूद सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि अमरीकी उत्पादों पर भारतीय टैरिफ सबसे अधिक हैं, इसलिए क्यों नहीं भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाये जायें। भारत चीन नहीं है और चीन भारत नहीं है, हमें यह स्पष्ट रूप से समझना चाहिए। सबसे पहले चीन एक साम्यवादी देश है, जिसका देश की नीतियों पर पूर्ण नियंत्रण है और उसे किसी भी तरह का विरोध नहीं करना पड़ता, जबकि भारत एक लोकतंत्र है, जहां सत्ता में बैठे राजनीतिक नेता लोगों और विपक्षी दलों के प्रति जवाबदेह हैं, जो सार्वजनिक हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह आशंका है कि भारत के शीर्ष उद्योगपति गौतम अडानी और मुकेश अंबानी जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का लाभार्थी बताया जाता है, जिनका विनिर्माण से लेकर बुनियादी ढांचे और सूचना प्रौद्योगिकी तक के उद्योग में व्यापक प्रभाव है, अमरीकी टैरिफ से बुरी तरह प्रभावित होंगे, हालांकि भारत के शीर्ष बैंक एसबीआई का दावा है कि भारतीय उद्योग पर अमरीकी टैरिफ का प्रभाव सीमित होगा।
एसबीआई रिसर्च का कहना है कि यूएस टैरिफ भारतीय निर्यात में केवल 3-3.5 प्रतिशत की कटौती कर सकते हैं। भारत के विविध निर्यात यूएस टैरिफ प्रभाव को कम करेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत यूएस पारस्परिक टैरिफ के प्रभाव को अवशोषित करने के लिए अच्छी स्थिति में है। रिपोर्ट के अनुसार विनिर्माण और सेवाओं में भारत के बढ़ते निर्यात पारस्परिक टैरिफ के प्रभाव को नकार देंगे। जो भी हो, यदि ट्रम्प भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाते हैं, तो लाखों अमरीकियों को दवाओं की लागत में उछाल देखने को मिल सकता है। अगले महीने भारत पर डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ के साथ, लाखों अमरीकियों को अधिक चिकित्सा बिलों का सामना करना पड़ सकता है। अमरीका में ली जाने वाली लगभग आधी जेनेरिक दवाएं अकेले भारत से आती हैं। जेनेरिक दवाएं-जो ब्रांड-नाम वाली दवाओं के सस्ते संस्करण हैं- भारत जैसे देशों से आयातित हैं, जो अमरीका में 10 में से नौ नुस्खों में उपयोग किया जाते हैं। इससे वाशिंगटन को स्वास्थ्य सेवा लागत में अरबों की बचत होती है। 
विशेषज्ञों का कहना है कि व्यापार समझौते के बिना ट्रम्प के टैरिफ कुछ भारतीय जेनेरिक दवाओं को अव्यवहारिक बना सकते हैं, जिससे कंपनियों को बाजार के एक हिस्से से बाहर निकलने के लिए मज़बूर होना पड़ सकता है और मौजूदा दवा की कमी और बढ़ सकती है। येल विश्वविद्यालय की दवा लागत विशेषज्ञ डा. मेलिसाबारबर का कहना है कि टैरिफ ‘मांग-आपूर्ति असंतुलन को और खराब कर सकते हैं’ और बीमा रहित और गरीब लोगों दुष्प्रभावित होंगे। इसका असर कई तरह की स्वास्थ्य स्थितियों से पीड़ित लोगों पर पड़ सकता है। भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) द्वारा वित्तपोषित इक्विआअध्ययन के अनुसार अमरीका में उच्च रक्तचाप और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के लिए 60 प्रतिशत से अधिक नुस्खे भारतीय निर्मित दवाओं से भरे जाते हैं।
चीनी आयात पर अपने टैरिफ के कारण ट्रम्प पहले से ही अमरीकी अस्पतालों और जेनेरिक दवा निर्माताओं के दबाव का सामना कर रहे हैं। अमरीका में बेची जाने वाली 87 प्रतिशत दवाओं के लिए कच्चा माल देश के बाहर स्थित है और मुख्य रूप से चीन में केंद्रित है जो वैश्विक आपूर्ति का लगभग 40 प्रतिशत पूरा करता है। ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद से चीनी आयात पर टैरिफ में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है तथा दवाओं के लिए कच्चे माल की लागत पहले ही बढ़ गयी है। ट्रम्प चाहते हैं कि कंपनियां उनके टैरिफ से बचने के लिए विनिर्माण को अमरीका में स्थानांतरित करें।
इंडिया फार्मास्यूटिकल एसोसिएशन (आईपीए) के सुदर्शन जैन कहते हैं, ‘भारत में विनिर्माण अमरीका की तुलना में कम से कम तीन से चार गुना सस्ता है।’ कोई भी त्वरित स्थानांतरण असंभव होगा। लॉबी समूह पीएचआरएमए के अनुसार एक नई विनिर्माण सुविधा बनाने में ़2 बिलियन तक की लागत आ सकती है और इसे चालू होने में 5 से 10 साल लग सकते हैं। भारत वार्षिक लगभग -12.7 बिलियन मूल्य की दवाओं का निर्यात करता है, जिस पर लगभग कोई कर नहीं देना पड़ता है। हालांकि भारत में आने वाली अमरीकी दवाओं पर 10.91 प्रतिशत शुल्क लगता है। इससे 10.9 प्रतिशत का ‘व्यापार अंतर’ रह जाता है। जीटीआरआई के अनुसार अमरीका द्वारा कोई भी पारस्परिक टैरिफ जेनेरिक दवाओं और विशेष दवाओं दोनों की लागत बढ़ायेगा। यह फार्मास्यूटिकल्स को उन क्षेत्रों में से एक के रूप में चिन्हित करता है जो अमरीकी बाज़ार में मूल्य वृद्धि के लिए सबसे अधिक असुरक्षित हैं। भारतीय कंपनियां जो बड़े पैमाने पर जेनेरिक दवाएं बेचती हैं, वे पहले से ही कम मार्जिन पर काम करती हैं और वे भारी कर व्यय वहन नहीं कर पायेंगी। वे प्रतिस्पर्धी साथियों की तुलना में बहुत कम कीमतों पर दवा बेचते हैं और दुनिया के सबसे बड़े फार्मा बाज़ार में हृदय, मानसिक स्वास्थ्य, त्वचाविज्ञान और महिलाओं के स्वास्थ्य दवाओं में लगातार प्रभुत्व हासिल कर चुके हैं।
भारतीय उत्पाद कम प्रतिस्पर्धी हो जायेंगे, जिससे बाजार में गिरावट आएगी। निर्यात राजस्व में कमी और नौकरी का नुकसान, खासतौर पर श्रम-प्रधान उद्योगों में। रसायन, धातु, आभूषण, ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स, कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य उत्पादों सहित महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की उम्मीद है।
मोदी सरकार ने इस धारणा को कम करने में तेज़ी दिखाई है कि वह अमरीकी दबाव के आगे झुक गई है। लेकिन ट्रम्प की टिप्पणी से भारतीय नीति निर्माताओं में गहन आत्ममंथन की शुरुआत हो सकती है। भारत ने अपने घरेलू उद्योगों, खास तौर पर कृषि, ऑटोमोबाइल व इलेक्ट्रॉनिक्स की रक्षा के लिए लंबे समय से टैरिफ का इस्तेमाल किया है। टैरिफ कम करने से ये उद्योग भयंकर आयात प्रतिस्पर्धा के सामने आ सकते हैं, जिससे स्थानीय व्यापार और नौकरियों को खतरा हो सकता है। (संवाद)

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