टीबी के खिलाफ तेज़ करनी होगी जंग

भारत काफी लंबे समय से टीबी (तपेदिक) नामक रोग से जंग लड़ रहा है। लेकिन अब टीबी को लेकर एक भयावह स्टडी सामने आई है। जर्नल प्लस मेडिसीन की स्टडी के मुताबिक भारत में अनुमान है कि 2021 से 2040 तक टीबी के 6 करोड़ केस और 80 लाख मौतें हो सकती है। स्टडी के मुताबिक भारत को इस बिमारी के चलते न सिर्फ  जन हानि होगी बल्कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को 146 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होने की संभावना है। लंदन स्कूल ऑफ  हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन यूके के रिसर्चर ने कहा कि इसके कारण कम आय वाले मध्यम वर्ग परिवार ज्यादा संकट में है। उनको स्वास्थ्य संबंधी बोझ झेलना पड़ सकता है जबकि अमीर परिवारों को आर्थिक बोझ झेलना पड़ सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वैश्विक क्षय रोग (टीबी) रिपोर्ट 2024 जारी किया है। जिसमें 2024 में दुनिया की 99 प्रतिशत से अधिक आबादी और टीबी के मामलों वाले 193 देशों के डाटा की रिपोर्ट को शामिल किया गया है। यह रिपोर्ट वैश्विक, क्षेत्रीय और देश स्तर पर टीबी महामारी एवं रोग की रोकथाम, निदान और उपचार में प्रगति का व्यापक व अद्यतन मूल्यांकन प्रदान करती है। रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष के अनुसार 2023 में भारत में लगभग 25.2 लाख टीबी के मामले सामने आये थे। जो 2022 में 24.2 लाख मामलों से अधिक थे।
भारत में वर्ष 2015 से 2023 के मध्य टीबी के मामलों में 18 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2025 तक 50 प्रतिशत कमी के लक्ष्य से बहुत कम है। इसी प्रकार टीबी से संबंधित मौतों में 75 प्रतिशत के लक्ष्य के मुकाबले केवल 24 प्रतिशत की कमी आई है। वैश्विक स्तर पर 2023 में 82 लाख लोगों में टीबी के नए मामलें देखे गए। यह वर्ष 1995 में डब्ल्यूएचओ द्वारा निगरानी शुरू करने के बाद से सबसे अधिक संख्या है। 2023 में टीबी कोविड-19 को पीछे छोड़ते हुए पुन: प्रमुख संक्रामक रोग बन गया है।
यह रोग लोगों के खांसने, छींकने या थूकने से फैलता है। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से में फैल सकता है। इस रोग का इलाज तो है बशर्ते पीड़ित लोग नियमित रूप से दवा लें। हर वर्ष 24 मार्च को पूरी दुनिया में विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है। इस दिन टीबी यानि तपेदिक रोग के बारे में लोगों को जागरूक किया जाता है। 
एक अनुमान के मुताबिक भारत में रोजाना करीब आठ सौ लोगों की मौत टीबी की वजह से हो जाती है। भारत में टीबी के करीब 10 प्रतिशत मामले बच्चों में हैं, लेकिन इसमें से केवल छह प्रतिशत मामले ही सामने आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में टीबी के केवल 58 प्रतिशत मामले ही दर्ज होते हैं। एक तिहाई से ज्यादा मामले या तो दर्ज ही नहीं होते हैं या उनका इलाज नहीं हो पाता है। इसका बड़ा कारण यह है कि गैर-सरकारी सेक्टर के अस्पतालों में टीबी को दर्ज किए जाने का अब तक कोई सिस्टम नहीं बना पाना है। संगठन का ऐसा अनुमान है कि ऐसे तकरीबन दस लाख और टीबी मरीज़ देश में है जिन्हें पहचाना ही नहीं जा सका है। टीबी का संबंध पोषण से जुड़ा रहता है। भूखे पेट रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। इसलिए टीबी की बीमारी के शिकार गरीब तबके के लोग ज्यादा होते हैं। पोषण से मतलब संतुलित भोजन से माना जाना चाहिए। इसलिए यहां पर केवल टीबी का इलाज मुहैया करा भर देने से टीबी का खात्मा संभव नहीं है। यह तब मुमकिन होगा जबकि देश में लोगों को रोग प्रतिरोधक ताकत बनाए रखने के लिए संतुलित आहार भी मिले। टीबी के प्रति लोगों को सचेत करने के लिये देश भर में टीबी जागरूकता कार्यक्रम चलाने होंगे। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केन्द्रो की संख्या बढ़ाकर ही टीबी पर काबू पाया जा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार को इस क्षेत्र में एक ठोस अभियान शुरू करना चाहिए।
सरकार ने टीबी रोग को मिटाने के लिये जो प्रतिबद्धता जतायी है उस पर तुरन्त अमल करने की ज़रूरत है। विश्व क्षय रोग दिवस 2025 की थीम है ‘हां हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं।’ यह दिवस टीबी को समाप्त करने के लिए चल रहे प्रयासों पर विचार करने और स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत प्रतिबद्धता को प्रोत्साहित करने का अवसर प्रदान करता है जिसमें दवा प्रतिरोधी टीबी के बढ़ते खतरे का मुकाबला करना भी शामिल है।

#टीबी के खिलाफ तेज़ करनी होगी जंग