देश में साइबर ठगों का भारी कहर, हर दिन 7920 लोग हो रहे शिकार
रेडियो, फोन, सोशल मीडिया और टेलीविजन चैनलों में दिन रात साइबर ठगों से सावधान रहने के लिए किये जा रहे प्रचार के बावजूद देश में साइबर ठगों का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। हाल में वित्त मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में साइबर धोखाधड़ी के पेश आंकड़ों के मुताबिक पिछले दस महीने में यानी अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 तक डिजिटल धोखाधड़ी की 24 लाख घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं, जिनमें ठगों ने लोगों से 4245 करोड़ रुपये ठग चुके हैं। इस तरह देखें तो गृह मंत्रालय के युद्ध स्तर पर साइबर धोखाधड़ी के विरूद्ध चलाये जा रहे सजगता अभियान के बावजूद साइबर स्कैमर्स के हौसले बुलंद हैं, जिस कारण इतने प्रचार प्रसार के बावजूद डिजिटल धोखाधड़ी के मामलों में पूरी तरह से रोक आने की बात तो दूर है, जरा भी मामले कम नहीं हो रहे उल्टे लगातार बढ़ रहे हैं। साल 2022-23 में जहां पूरे एक साल में साइबर धोखाधड़ी की कुल 20 लाख घटनाएं दर्ज की गई थीं, वहीं साल 2023-24 में पूरे एक साल में ये घटनाएं बढ़कर 28 लाख हो गईं।
साल 2022-23 में जहां कुल 2537 करोड़ रुपये की ठगी हुई थी, वहीं साल 2023-24 में ठगी का आंकड़ा बढ़कर 4403 करोड़ रुपये हो गया, जबकि इस साल तो अभी दस महीने ही गुजरे हैं और अपराधियों द्वारा ठगी गई रकम 4245 करोड़ रुपये हो चुकी है, जो कि साल 2022-23 के मुकाबले 67 प्रतिशत अधिक है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गृह मंत्रालय द्वारा हाल में गठित साइबर प्रकोष्ठ की तमाम सक्रियता के बावजूद किस तरह अपराधियों के सिर में डर की जूं तक नहीं रेंग रही। भारतीय रिजर्व बैंक ने डिजिटल भुगतान धोखाधड़ी निगरानी करने के लिए सेंट्रल पेमेंट्स फ्रॉड इनफॉर्मेशन रजिस्ट्री लागू की है, जिसमें बैंक, नॉन बैंक प्री पेड पेमेंट, इंस्ट्रूमेंट जारीकर्ता और नॉन बैंक क्रेडिट कार्ड कार्यकर्ता धोखाधड़ी की घटनाओं की रिपोर्ट करते हैं। इसका मकसद तत्काल रिपोर्टिंग के जरिये ठगों को धन निकालने से रोकना है और अब तक इस प्रयास के जरिये 13 लाख शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही करके बैंक नेटवर्क ने 4386 करोड़ रुपये बचाये भी हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस, जांच एजेंसियाें और बैंकों की साझी सतर्कता के बावजूद धोखेबाजों का कहर इन सब पर भारी पड़ रहा है। आरबीआई ने इस संबंधी आर्टिफिशियल इंटलीजेंस के एक खास टूल ‘म्यूल हंटर डॉट एआई’ का सहारा ले रही है। इस सबके बावजूद अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे सब पर भारी पड़ रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में नेशनल पेमेट्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया में यूपीआई लेनदेन की सुरक्षा को भी कई स्तरों तक बढ़ा दिया है, क्योंकि इस पर भी धोखाधड़ी की घटनाएं किसी भी तरह से घटने की बजाये लगातार बढ़ रही है।
हद तो यह है कि साइबर ठगों ने पिछले एक साल के भीतर ठगी के अपने तौर तरीको में कोई एक दो चार दस या सौ नहीं बल्कि एक हजार से ज्यादा नये तरीकों का इस्तेमाल किया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वास्तव में साइबर अपराधी कितने जुनून और बेखौफ अंदाज में अपनी कारगुजारियों को अंजाम दे रहे हैं। सवाल है आखिर हर तरह की कोशिशों और सजगताओं के बावजूद साइबर धोखाधड़ी की घटनाएं किसी भी कीमत पर रूकने की बजाये आखिर बढ़ती ही क्यों जा रही हैं? दरअसल इसमें बैंकिंग सिस्टम में जो लूप होल्स हैं, वो तो हैं ही, उससे कई गुना ज्यादा आम लोग जो डिजिटल बैंकिंग सुविधाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे बार-बार बताने, समझाने के बावजूद लापरवाहियों से बाज नहीं आ रहे। आज की तारीख में डिजिटल डिवाइस इस्तेमाल करने वाला शायद ही कोई इंसान हो, जो दिन में कम से कम चार बार डिजिटल धोखाधड़ी से सावधान रहने के लिए आह्वान करने वाले विज्ञापनों, सलाहों को न सुनता हो।
लेकिन विभिन्न रिपोर्टें और लगाये गये डिजिटल अनुमान बताते हैं कि अभी भी ऑनलाइन बैंकिंग या किसी भी तरह के लेनदेन का इस्तेमाल करने वाले 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग न सिर्फ अपने आपके ठगे जाने की चिंता से रहित हैं बल्कि उन्हें इसे जानने, समझने की कोई ज़रूरत ही नहीं महसूस होती। दिन रात डिजिटल लेनदेन करने वाले कई लोग भी ऑनलाइन सुरक्षा के प्रति बेहद लापरवाही बरतते हैं और सबकुछ जानने के बावजूद ठगी का शिकार हो जाते हैं। उदाहरण के लिए ऑनलाइन अरेस्ट या डिजिटल अरेस्ट अथवा साइबर अरेस्ट जैसे मसले को ही लें, पिछले एक साल से इस संबंध में हजारों तरह से आगाह किये जाने की हर संभव कोशिशें हुई हैं।
ठगों द्वारा बार-बार ठगी की अपनी बदली जा रही तकनीक से भी वह पुलिस और जांच एजेंसियों को गच्चा देने में कामयाब हो रहे हैं। मगर इससे भी बड़ी बात यह है कि देश में इतने बड़े पैमाने पर डिजिटल जीवनशैली जीने वाले हमारे देश में ज्यादातर लोगों की डिजिटल साक्षारता 50 प्रतिशत भी नहीं है। आम लोगों में से शायद ही किसी ने अपनी ऑनलाइन गतिविधियों के लिए कहीं से कुछ सीखा हो। आमतौर पर हमारे यहां लोग कोई भी सीख किसी तरह ठोकरें खाते हुए सीखने की आदत का शिकार हैं और इस डिजिटल साक्षारता के मामले में भी लोग ऐसा ही उदासीन रवैय्या इख्तियार किये हुए हैं, जिस कारण सरकार या संचार माध्यम जितना भी चीख चीखकर लोगों को इस संवेदनशील तकनीक के इस्तेमाल के प्रति आगाह करें, लेकिन लोग तब तक इस सबके प्रति जरा भी सजग होने की ज़रूरत नहीं समझते, जब तक कि खुद भारी धोखा न उठाएं। यह अकारण नहीं है कि अपने यहां हर घंटे 330 लोग और हर मिनट में करीब 5.5 लोग और लगभग हर 11 सेकंड में कोई न कोई व्यक्ति डिजिटल धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है।
हैरानी की बात तो यह है कि कोई हैरान करने वाली घटना घटती है और सरकार तथा जांच एजेंसियां उसे आधार बनाकर लोगों को आनन फानन में ऐसी घटनाओं से बचने की ट्रनिंग और टिप्स दे रहे होते हैं, उसी दौरान न सिर्फ वैसी ही बल्कि अगले कुछ दिनों के भीतर ऐसी ही घटनाओं को और भी नये तौर तरीके से चकमा देने वालों की झड़ी लग जाती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस दौर में अपराधी, पुलिस और जांच एजेंसियों के डाल-डाल के मुकाबले, सिर्फ पात-पात में ही नहीं है बल्कि उससे भी कहीं ज्यादा तीव्र है। अत: ज़रूरी है कि देश में डिजिटल धोखेबाजों और अपराधियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सिर्फ सरकारों और पुलिस व जांच एजेंसियों के भरोसे रहना समझदारी नहीं है, हम नागरिकों को खुद भी अपने को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उठानी होगी और ऑनलाइन धोखेबाजों को सबक सिखाना होगा वर्ना सजगताओं की बारिश भी होती रहेगी और साइबर अपराधियों का कहर भी जारी रहेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर