दो पाटन के बीच साबुत रहा न कोय
मानवीय फितरत निर्माण की है, ध्वंस या तबाही की नहीं। युद्ध आम आदमी का पसंदीदा मार्ग नहीं। शोषक वर्ग, अहंकारी लोग, राजशाही से जुड़े लोग तबाही लाते हैं। मामूली आदमी इसका शिकार होता है। बेबस-सा होकर घरों की, शहर की, पुलों की तबाही का मंजर देखता रहता है। ताकतवर अपनी जय यात्रा में अपने अहंकार में रौंधता चला जाता है। उसकी ताकत की मदमस्ती और विलासिता गरीब की आह नहीं सुनती। जब जंगल राज से सभ्य संसार की तरफ जाने का सफर आरम्भ हुआ था तब यह अनिवार्य शर्त थी कि अब आवाम पर युद्ध नहीं लादा जाएगा, लेकिन इसकी तहरीर बार-बार याद करवाने योग्य है। यही मनुष्य की पवित्र आत्मा पर बोझ बना रहा है।
इसी क्रम में इज़रायल और हमास के युद्ध को देखा जा सकता है। यह युद्ध पिछले 17 माह से लगातार तबाही की तरफ बढ़ता जा रहा है। मकानों की तबाही, इन्सानी बस्तियों की तबाही, जीवन शक्ति का कत्ल, सड़कों पर बिखरा खून, मलबा बनती इमारतें क्या यही सब इन्सानी सपने का अंतिम पड़ाव है? इस जलती आग में अब तक लगभग पचास हज़ार बच्चे, बूढ़े और महिलाओं तथा मासूम निरपराध फिलस्तीनियों के प्राणों की आहूति देनी पड़ी है।
उनके घर खण्डहर में तबदील हो चुके हैं। हर रोज़ उनका काम है कि जान का ख़ौफ इधर से उधर-उधर से इधर भटकते फिरें। न जाने कब ज़िन्दगी का चिराग बुझ जाये। अतीत की तरफ नज़र डालें। अरब देशों के निकट फिलिस्तीनियों की ज़मीन पर इज़रायल खड़ा कर दिया गया। बेदखल होकर गाज़ा पट्टी पर सीमित रहने का विकल्प दिया गया या फिर अन्य देशों में पलायन कर जाने का। मानवीय जीवन की यह बड़ी त्रासदी अंकित हुई। विश्व की बड़ी ताकतों ने इस त्रासदी के मंजर की तरफ अपनी आंखें बंद रखीं। अनेक रक्त-रंजित घटनाओं के बावजूद बरसों-बरसों तक कोई न्यायपूर्ण समाधान नहीं प्रस्तुत किया गया। हमास संगठन लगातार इज़रायल की तबाही का सपना देखता रहा। पिछले एक अर्से से गाज़ा पट्टी पर नियंत्रण भी स्थापित किया। गाज़ा पट्टी समुद्र के साथ लगती है। इस पट्टी के छोटे से खंड पर गालिबन पच्चीस लाख फिलिस्तीनी जैसे-तैसे अपना जीवन चलाने के लिए मजबूर रहे हैं। हमास को नि:संदेह अन्य मुल्कों से सहायता प्राप्त है। और लम्बे समय से ताकत बटोरे हुए है। ज़ाहिर-सी बात है कि इस संगठन की प्रत्येक गतिविधि इज़रायल की आंखों में खटकने वाली है। हमास गोरिल्लाओं ने 7 अक्तूबर, 2023 को इज़रायली सीमा पार कर वहां के लगभग 1200 नागरिकों को मार दिया था और वहां से 251 इज़रायली नागरिकों तथा कुछ अन्य देशों से संबंधित लोगों को नज़रबंद करके गाज़ा पट्टी ले आए थे। उसके बाद इज़रायल ने गाज़ा पट्टी पर भयानक बमबारी की, परिणामस्वरूप गाजा पट्टी के फिलिस्तीनी अवाम के अनेक निर्माण खण्डहर में बदल दिए गए। मासूम आबादी पर टैंक से हमला कर बदला लेने की कार्यवाही पूरी की। पूरा विश्व इस खूनी व्यवहार के प्रति आम तौर पर चुप ही बना रहा। युद्ध की विभीषिका झेलते हुए एक अन्य शहर शूजाया में भी लोगों ने गुस्से का इज़हार किया। दरअसल वहां के लोग रोज-रोज की बमबारी, ध्वंस और सड़कों पर बढ़ते खूनी कारनामों से तंग आ चुके हैं।